आई बी सक्सेना. रूस के राष्ट्रपति मिखाइल गोर्वाचोव ने अपनी भारत यात्रा के दौरान १६ नवम्बर १६८८ को , रूस , चीन के साथ अपने सम्बन्ध सुधार रहा है और भारत को भी अब चीन के साथ अपने सम्बन्ध सुधार लेने चाहिएं , आज यह बात कही है लेकिन मैंने आज से १६ वर्ष पूर्व ६ नवम्बर १ ९ ६ ९ के अंक ६२ में पृष्ठ २ पर यह बात अपने शीर्षक में लिख दी थी कि : ‘ आहिस्ता – आहिस्ता चीन व रूस निकट । ” आ जायेंगे।
२६ अगस्त १ ९ ७१ के अंक १७५ में पृष्ठ ३ पर हमारा दूसरा शीर्षक ‘ गा । भारत रूस चीन एक हो सकते हैं । और आज वही बात होने जा रही है । मैंने अपने लेखों में अनेक स्थानों पर यह संकेत भी दिया है कि समय आने पर भविष्य में चीन भारत का विश्व में सबसे बड़ा मित्र साबित होगा । समय आने पर मेरी यह भविष्यवाणी भी समय की कसौटी पर एक दम खरी उतरेगी । समय का इन्तजार को जिए । इस प्रकार विश्व नेता की हर भविष्यवाणी सदा सत्य सिद्ध होती रही है और भविष्य में भी एक दम सत्य सिद्ध होकर रहेगी । आज भी यह बात मैं दावें के साथ कहता हूँ ।
क्या भारत शमशान बनेगा ?
अंग्रेज भारत से जरूर चले गये परन्तु ब्रिटिश का शासन तो भारत से नहीं गया । दो सौ वर्षों के शासन काल में अंग्रेजों ने भारत के अन्दर अपने जो समर्थक पैदा किये थे वह भी भारत के ही अन्दर हैं । भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का संस्थापक जब एक अंग्रेज था तब कांग्रेस के आन्दर ब्रिटिश के समर्थकों का होना भी एक स्वभाविक बात ही है और क्रान्तिकारी नेता भी जब इसी कांग्रेस के अन्दर शामिल हो गये थे तब नर्म और गर्म दोनों विचार धाराओं के नेताओं का कांग्रेस में होना कोई अजीब बात नहीं है और वह गम दल के लोग नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के समर्थक न हों ऐसा हो ही नहीं सकता । उनमें से जो मारे गये उनको छोड़कर बचे – खुचे नेतागण कांग्रेस ( आइ . ) के अन्दर हैं हो सकता है सभी गर्म विचार धारा के न हों इस लिये मतभेदों का रहना भी एक जरूरी ही बात है ।
ब्रिटिश भारत के अन्दर जो भी षड्यन्त्र रचता है वह अपने समर्थकों के बल पर ही रचता है । धनवान या पूजीपति ही व्यापारी होता है जिसे राजनैतिक भाषा में हम पत्रकार लोग साम्राज्यवादी कहते हैं इसी कारण अमेरिका एवं ब्रिटेन जैसे पूंजीपति देशों को भी साम्राज्यवादी कहा जाता है । जिनका विश्व में साम्राज्य आज लोकतन्त्र के नाम से चल रहा है और वह उसे आगे भी लचाये रखना चाहते हैं ।
जिन पूजीपतियों के विरोधी निर्धन गरीब , मजदूर और किसान भाई ही होते हैं । इस लिये पूंजीपति साम्राज्यवादी देश नहीं चाहते कि गरीबों की संख्या इतनी बढ़ जाय कि जिसका मुकाबला उनकी पुलिस और सेना भी न कर सके । इसलिये जन – संख्या इतनी बढ़ने ही देना नहीं चाहते जिसपे कि निर्धन , गरीब और किसान आदि लोगों की संख्या एक विशाल सेना का रूप धारण कर सकें । परिवार नियोजन की एक योजना को छोड़कर इस योजना की और भी बहुत सी कड़ी ऐसी हैं जो जन संख्या को केवल कम ही नहीं करेंगी बल्कि जन – संख्या को धीरे – धीरे इतना कम कर देंगी जबकि भारत में ब्रिटिश को आने से रोकने वाला , कोई भारतीय ही , भारत में न होगा ।
भारत के लोगों को जो खाने पीने की हर चीज में मिलावट करके दी जा रही है वह मिलावट धीमी गति का एक ऐसा विष है । जो भारत के लोगों को दिन रात कमजोर और रोगी बना रहा है । जनता नये से नये रोगों की शिकार हो रही है और कभी – कभी महामारी जैसे रोग भी फैल जाते हैं । भारत के नेता इन बनावटी , मिलावटी वस्तुओं और विदेशी खाद एवं दवाईयों के ऐक्शन को देखते हैं उनके रिऐक्शन को नहीं देख रहे हैं।
खेतों में विदेशी खाद डालकर पैदावार बढ़ाने की योजना का एक दिन वही अन्जाम होगा , कि जो मर्गी एक अंडा रोज दिया करती थी व्यापारी ने जब मुर्गी का पेट चीरकर सारे अंडे एक ही दिन में निकाल लेने का प्रयास किया तो अंडे और मुर्गी दोनों से ही हाथ धो बैठा था । खेतों के अन्दर विदेशी खाद के डालने का एक अन्जाम तो भारत की जनता के सामने आ ही चुका है कि हर खाने की वस्तु का स्वाद हो बदल गया है ।
सब्जी हो या अनाज , तेल हो या घी कोई भी चीज खाने में अच्छी ही नहीं लगती न पेट में पचती ही है । भारत के अन्दर नामक और हींग दो ही चीजें ऐसी थी जो भोजन को पचाती थीं । जिनमें से पूंजीपति टाटा का जो नामक खाने को मिल रहा है वह तो बनावटी है ही । रही हीरा हींग की बात , वह तो भारत से नापैद हो चुकी है क्योंकि सरकार ने उसका आना ही बन्द कर दिया है ।
इन दोनों चीजों के न मिलने के कारण भारत में घर – घर के अन्दर हर व्यक्ति के पेट में गैस का रोग है । अंग्रेजी डाक्टरों को छोड़कर भारत का कोई भी हकीम , वैद्य या होम्योपैथिक डाक्टर मेरी इस बात का विरोध नहीं कर सकता । भारत के पूंजीपति व्यापारी ऐसी चीजों को क्यों बना रहे या भारत में क्यों ला रहे हैं इसका एक वही कारण है जिसे पहले ही बताया जा चुका है कि जन – संख्या कम हो ।
भारत के कुछ मुट्ठी भर स्वार्थी लोग धन कमाने के लोभ में सिग्रेट , शराब , लाटरी जुआ – सट्टा आदि के व्यापार करके और इन वस्तुओं का अपने कारखानों में निर्माण करके पूरे देश की जनता की जान से एक खिलवाड़ तो कर ही रहे हैं साथ ही में भारत की भूमि को भी बंजड़ बनाने का एक प्रयास कर रहे हैं ।
हमारे देश में बातें भारत की उन्नति एवं विकास की होती हैं लेकिन भारत के नाम की आड़ में उन्नति और विकास पूंजीपतियों के काम – धंधों एवं धन सम्पत्ति का होता है और गरीब दिन प्रतिदिन महंगाई के बेझ तले दबता ही चला जा रहा है । कांग्रेस ( आई ० ) के नेताओं ने समय रहते यदि इन बातों की ओर कोई ध्यान न दिया और इनकी रोक – थाम न की तो एक न एक दिन भारत रोगों से शमशान बन जायेगा ।
वर्तमान लोकतन्त्रीय सरकार के शासकों ने घर – घर के अन्दर चुला जलाने की गैस के सलेंडर रखने की जनता को आज्ञा जरूर दे दी है यह जानते हुए भी कि युद्ध के समय में अगर किसी देश के ऊपर बम बारी हो रही हो और घरों में गैस के सलेंडर रक्खे हों तो उस देश का हाल क्या होगा । पूरा देश जल कर राख हो जायेगा । और भारत जैसा वह देश जिसे पाकिस्तान से हर समय युद्ध का खतरा बना रहता है तथा १६६६ में साम्राज्यवादी ब्रिटेन व अमेरिका से युद्ध लड़ना पड़ सकता है उस भारत के अन्दर वर्तमान शासकों द्वारा घर – घर में मैस के सलेंडरों का रखवाना क्या सिद्ध करता है और हमारे नेता क्या सोच रहे हैं ।
नई पीढ़ी एवं आने वाली पीढ़ी को क्या देना चाहते हैं । कुछ समझ में नहीं आता । खाने के लिए मिलावट रूपी विष , पीने के लिए अंग्रेजी दवाओं का मिलावटी पनी , जीने के लिए युद्ध का वातावरण , मरने के लिए गैस क्यों देना चाहते हैं ? क्या इन बातों का अनुमान लगाया है किसी ने या विदेशों से आई इन योजनाओं का रिएक्शन क्या है इसे समझा है किसी ने । इस गैस की योजना से भोपाल आदि शहरों में कितने मरे और आगे कितने और मरेंगे । भारत की आबादी अगर इसी तरह से कम होती रही तब साम्राज्यवादियों की योजना का कामयाब होना क्या रुक सकेगा ?
इसी प्रकार धरती जिन चीजों के बल के ऊपर खड़ी है यदि उन सब चीजों को समुद्र एवं धरती के नीचे से निकाल कर धरती को नीचे से खोखला कर दिया जायेगा । तब क्या एक न एक दिन यह धरती नीचे नहीं धंस जायेगी , जैसा कि अनेक स्थानों पर हो भी चुका है । यह सारी की सारी विदेशी योजनायें सोने की चिड़िया नामक भारत से सब कुछ लेकर उसे खोखला , बेकार , बंजड़ बनाकर बर्बाद करने का एक भीषण विदेशी पडयन्त्र नहीं है तो और क्या है ?
मनुष्य ने विज्ञान से चाहे कितनी भी चीजें क्यों न बना ली हों परन्तु यह एकदम सत्य है कि इस धरती को मनुष्य ने कदापि नहीं बनाया है और इस धरती को जिसने भी बनाया है वही सम्पूर्ण विश्व की धरती का मालिक भी है । जो स्वयं अखण्ड है और संसार में उसकी धरती भी अखण्ड है जिसे कुछ मुट्ठी भर परिवार संसार के अन्दर आपस में बोटने के लिये छोटे – छोटे देशों के रूप में विभाजित कर घरती का मालिक बनने के लिये मनुष्य को मनुष्य से लड़ाते हैं । और भूखा मानव रोटी की खोज में चन्द पैसों के लिये अपने ही प्राकृतिक भाई बहनों और माता – पिता पर इन का सैनिक बनकर गोली चला रहा है परन्तु धरती फिर भी अखण्ड की अखण्ड ही रहती है उसके टुकड़े कोई नहीं कर पाता । हाँ दोनों ओर मानव के हाथों से सैनिक नामक गरीब जरूर मर जाते हैं और कुछ चतुर मानव शासक जरूर बन जाते हैं ।
यही विश्व में अशान्ति का एक मात्र कारण है । संसार के सैनिक इस धरती को जिसने बनाया है अगर उसी को इस धरती का मालिक रहने दें और इन मुट्ठी भर परिवार के लोगों को इस धरती का स्वामी बनाने की चेष्टा करना छोड़ दें तो आज ही विश्व में शांति आ सकती है अन्यथा विश्व में युद्ध चलता ही रहेगा कोई इसे नहीं रोक सकता और राम कृष्ण चरित्र मानस सुभाष जैसे देवता अन्याय के विरुद्ध धरती की रक्षा करने के लिए धर्म युद्ध करते ही रहेंगे तथा अन्त में विजय भी इन्हीं की होगी यह निश्चित है ।