पद्मश्री डॉ के के अग्रवाल का निधन किसी व्यक्ति का निधन नहीं बल्कि मॉडर्न स्वास्थ्य प्रणाली के अंत की शुरुआत है। डॉ अग्रवाल वास्तविक रूप से डॉक्टर थे, यही कारण है कि कोरोना से उनकी मृत्यु पर पूरा देश हतप्रभ और निराश है। उन्होंने करोड़ों लोगों की जान बचाई और अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक वे लोगों को कोरोना महामारी से बचने के सुझाव देते रहे।
मुझे विश्वास है कि उनके इस योगदान के लिये देश उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित करेगा। उनके सुझावों पर विश्वास और अमल कर आज करोड़ों लोग ज़िंदा हैं परन्तु यह अत्यंत दर्दनाक और दु:खद है कि आज डॉ अग्रवाल हमारे बीच नहीं हैं।यह अचंभित करने वाली बात है कि जिस कोरोना से बचने के विभिन्न उपाय डॉ अग्रवाल लोगों को बता रहे थे वे कोई भी उपाय उन्हें नहीं बचा पाये !
कोरोना के कारण डॉ अग्रवाल के निधन में किसी प्रकार के ज्ञान, वैक्सीन, डॉक्टर, हॉस्पिटल स्टाफ़, दवा, इन्जेक्शन, बेड, ऑक्सीजन, वेन्टीलेटर, कोविद एप्रॉप्रियेट विहैवियर इत्यादि की कोई कमी नहीं थी जो आज एक आम नागरिक झेल रहा है, परन्तु फिर भी, डॉ अग्रवाल हमारे बीच नहीं हैं। इससे मॉडर्न मेडिसिन सिस्टम की कोरोना संक्रमण में सार्थकता पर सवाल खड़ा होता है। यदि मॉडर्न मेडिसिन सिस्टम का पूरा इन्फ़्रास्ट्रक्चर डॉक्टर अग्रवाल को नहीं बचा सका तो देश की साधारण जनता को कोरोना महामारी से कौन बचा पायेगा ?
पिछले एक साल से कोरोना को समाप्त करने का अथक प्रयास चल रहा है। ऑक्सीजन, वेन्टीलेटर, हॉस्पिटल बेड, मास्क, 2 गज दूरी, लॉकडाउन, वैक्सिनेशन, स्टेरॉय्ड्स, रेमडिसवीर, आइवरमेक्टिन, फेवीफ्लू, एच सी क्यू एस, आरसेनिकम एलबम-30, कोवीहाल्ट, फैविपिराविर, कोविफॉर इत्यादि…, बिना दवा के लाखों के बिल, दवाओं और उपकरणों की कालाबाज़ारी, अंग व्यापार, जनता को ग़लत चीज़ें बताकर गुमराह करना इत्यादि ये सब सिर्फ़ लक्षण कंट्रोल करने और दहशत फैलाने में मददगार हो सकते हैं पर कोरोना को कंट्रोल नहीं कर पायेंगे।
मेरे विचार निर्मूल नहीं हैं। कोरोना की शुरुआत से ही मैं यह बार-बार लिख रहा हूँ कि कोरोना की कभी भी कोई दवा नहीं बन पायेगी, थिरैपी कारगर नहीं होगी और ना ही कभी कोई कारगर वैक्सीन बन पायेगी क्योंकि कोरोना या तो अपने स्ट्रेन स्वयं बदल रहा है या फिर इसके नये प्रारूप वातावरण में रिलीज़ किये जा रहे हैं। कुछ दिनों पहले ही आई सी एम आर (ICMR) ने कोरोना के लिये बहुचर्चित और बहुप्रचलित प्लाज़्मा थिरैपी के प्रयोग पर यह कहते हुये रोक लगा दी कि यह लाभकारी नहीं है। मुझे उम्मीद है कि कुछ समय बाद दवाओं तथा वैक्सीन के लिये भी यही कहा जायेगा।
नेताओं द्वारा मीडिया मैनेज करने के करोड़ों के विज्ञापन में सरासर झूठे वक्तव्य देना भी एक जघन्य अपराध है, परन्तु इन वक्तव्य की कोई ज़वादेही नहीं होती। माननीय न्यायपालिका भी इन बातों के मद्देनज़र कुछ ऐसे आदेश जारी कर रही है जो प्रकृति के अनुरूप नहीं है। इंसान यदि शुद्ध हवा नहीं लेगा तो उसके फेफड़े ख़राब होंगे, एनर्जी लेवल डाउन होगा, इम्यूनिटी कमजोर होगी और यही कारण है कि कोरोना की दूसरी लहर में अधिकतर मरीज़ों की ऑक्सीजन का लेवल सबसे बड़ी समस्या बनकर उभरी है।
कोरोना को मात देने का एकमात्र उपाय इम्यूनिटी बढ़ाना है और यह मास्क लगाकर संभव नहीं है। पहले व्यक्तिगत इम्यूनिटी और फिर हर्ड इम्यूनिटी यही एकमात्र उपाय है कोरोना से निजात पाने का और इसे हासिल करने के लिये किसी दवा की ज़रूरत नहीं बल्कि इंसान को प्रकृति के नियमों का पालन करना होगा। हमारे देश की 138 करोड़ जनसंख्या के लिये समूचे विश्व की स्वास्थ्य सुविधायें बौनी पड़ जायेंगीं और कोई भी मदद ऊँट के मुँह में जीरे के समान होगी।
वैक्सीन जिसे कोरोना से बचाने के लिये सबसे बड़ा हथियार माना जा रहा है उसे भी पूरे देशवासियों को लगाने में पाँच से छह साल का समय लग जायेगा। इस दौरान देश की एक तिहाई जनसंख्या समाप्त हो जायेगी।
वैसे तो मीडिया में यह प्रोपेगैंडा बहुत तेज़ी से फैलाया जा रहा है कि वैक्सीन नये स्ट्रेन में भी कारगर है, परन्तु यह सत्य नहीं है और वैक्सीन का कोई भी प्रिंसिपल इसकी पुष्टि नहीं करता। अत: सुरक्षा की दृष्टि से नये स्ट्रेन पर नया वैक्सीन लेना लाज़मी होगा। इस तरह वैक्सीन का सिलसिला कभी भी समाप्त होता नहीं दिख रहा।
यदि देश और देशवासियों को बचाना है तो तरीक़ा बदलना होगा। नेचुरल तरीक़े से सभी की इम्यूनिटी बढ़ानी होगी और सभी देशवासियों को संक्रमित होने देना होगा, जिससे हर्ड इम्यूनिटी डेवलप होगी और देश मौजूदा संकट सहित आगे आने वाली सभी वेव से बच जायेगा। परन्तु इस प्रक्रिया को बहुत ही सुनियोजित ढंग से क्रियान्वयन करना होगा और सभी देशवासियों को कर्तव्यनिष्ठा से इसका पालन करना होगा जिससे हर्ड इम्यूनिटी डेवलप होने की प्रक्रिया में कम से कम छति हो।
मेरा सरकार से विनम्र निवेदन है कि पूर्ण रूप से कोरोना में विफल मॉडर्न मेडिसिन सिस्टम का दामन छोड़ नई सोच पर विचार-विमर्श करें और औपचारिक रूप से इसे क्रियान्वित करें जिससे हिन्दुस्तान को बचाया जा सके।
कमान्डर नरेश कुमार मिश्रा
फाउन्डर ज़ायरोपैथी
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