विपुल रेगे । विधानसभा चुनाव प्रचार के इस दौर में राजनीतिक दलों की असभ्य भाषा चर्चा का विषय बन गई है। मध्यप्रदेश के बैतूल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जुबान फिर फिसल गई। उन्होंने कांग्रेस नेता और सांसद राहुल गांधी को ‘मूर्खों का सरदार’ बता दिया। चुनाव प्रचार में सभी दल एक दूसरे के विरुद्ध तीखी बयानबाज़ी करते ही हैं और पांच विधानसभा चुनावों के प्रचार अभियानों में भी ऐसे बयान दिए जा रहे हैं। हालांकि देश के सजग चुनाव आयोग को केवल वे ही शिकायतें दिखाई देती हैं, जो विपक्षी दलों के विरुद्ध की जा रही है।
विगत चौबीस घंटों में दो नेताओं को चुनाव आयोग ने नोटिस जारी किया है। भारतीय जनता पार्टी की शिकायत पर चुनाव आयोग ने आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा को नोटिस भेज दिया है। विगत बुधवार को आम आदमी पार्टी के आधिकारिक एक्स हैंडल से एक वीडियो पोस्ट किया गया था। इस वीडियो में बताया गया था कि ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश की जनता के लिए नहीं, बल्कि अडानी के लिए काम करते हैं।’ इसके बाद भाजपा ने चुनाव आयोग में शिकायत की और बिजली की गति से केजरीवाल को नोटिस भेज दिया गया।
इसी बुधवार को भाजपा ने चुनाव आयोग के माध्यम से एक शिकार और कर डाला। कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने मध्यप्रदेश के इंदौर के विधानसभा क्षेत्र सांवेर में एक भाषण दिया था। इस भाषण में उन्होंने कहा था ‘मोदी जी जो यह बीएचईएल था, जिससे हमें रोजगार मिलते थे, जिससे देश आगे बढ़ रहा था, इसका आपने क्या किया, किसको दे दिया, बताएं मोदी जी किसको दे दिया, अपने बड़े-बड़े उद्योगपति मित्रों को क्यों दे दिया।? यदि विपक्षी दल चुनाव आयोग पर भाजपा को मदद का आरोप लगाते हैं, तो वह कारण आज के परिदृश्य में स्पष्ट दिखाई देते हैं।
भाजपा के फायर ब्रांड नेता नरेंद्र मोदी की जुबान भी भाषणों के दौरान बहुत फिसलती है। इसी मंगलवार को नरेंद्र मोदी मध्यप्रदेश के बैतूल में चुनावी सभा को संबोधित कर रहे थे। सभा में मोदी ने राहुल गांधी को निशाने पर लेते हुए उन्हें ‘मूर्खों का सरदार’ कह डाला। इस असंसदीय संबोधन पर शिकायत होगी, तो चुनाव आयोग को दिखाई नहीं देगी। विगत कुछ वर्ष से देखा जा रहा है कि भाजपा नेताओं की असंसदीय भाषा पर न मीडिया को दिक्कत होती है और न उनके विरुद्ध केस दर्ज किया जाता है। यदि प्रधानमंत्री के बयानों को देखे, तो शुरु से ही वे असंसदीय भाषा का इस्तेमाल अपने भाषणों में करते रहे हैं।
उन्होंने सन 2019 में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के लिए ‘रेनकोट’ वाला बयान दिया था और इसके लिए उनकी आलोचना भी हुई थी। सन 2012 में मोदी ने कांग्रेस नेता थरुर पर ‘पचास करोड़ की गर्लफ्रेंड’ वाला कटाक्ष किया था। विधानसभा चुनावों में भाजपा की हालत पतली है और इसे संभालने के लिए प्रधानमंत्री अंधाधुंध रैलियां कर रहे हैं। सत्ता में आने के दस साल होने आए हैं लेकिन मोदी के भाषण केवल और केवल कांग्रेस को कोसने तक ही सीमित रहे हैं। इन चुनाव प्रचारों में भी निशाना कांग्रेस पर है, जबकि डबल इंजन की सरकार अपने काम ही नहीं गिना पा रही है।
मध्यप्रदेश जैसे राज्य में भाजपा अपने ही बागी नेताओं से जूझ रही है। अठारह वर्ष की एंटी इंकम्बेंसी, व्यापक भ्रष्टाचार और नेताओं में आपसी फूट के चलते भाजपा राज्य में हार की कगार पर आकर खड़ी है। वास्तविकता मोदी भी समझ रहे हैं। अब उनके पास कांग्रेस पर प्रहार करने के आलावा कोई रास्ता नहीं है। इसी के चलते मोदी कांग्रेस के नेताओं पर कड़े प्रहार कर रहे हैं और बयानों की सीमाएं भी पार करते दिखाई देते हैं। ऐसे में चुनाव आयोग का भेदभाव जनता स्पष्ट देख रही है।
मोदी के प्रति चुनाव आयोग का छुपा हुआ प्रेम अब बाहर छलक रहा है। मोदी और उनके समर्थकों को शायद पता नहीं कि देश में हवा बदल रही है। देश धीमे-धीमे समझने लगा है कि जिसको वे महामानव बनाकर लाए हैं, वह नितांत आम नेता है और उनकी बयानबाज़ियां कभी-कभी नुक्कड़ स्तर के नेता होने का भान कराती रहती है।