द वायर मीडिया के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन ने आई पी एस अधिकारी एम नागेश्वर राव के उस ट्वीट पर निशाना साधा है जिसमे उन्होने भारतीय सभ्यता और संस्कृति को वामपंथी इतिहासकारों द्वारा मिटाये जाने, भारत के इतिहास से जुडे बहुत से तथ्यों को छिपाकर या फिर उन्हे तोड़ मरोड कर इस प्रकार से प्रस्तुत करने का कि हिंदू धर्म की लोगों के मन में एक नकारात्मक् और अति रूढिवादी सोच वाले धर्म की छवि बने, का आरोप लगाया है.
आई पी एस आंफिसर एम नागेश्वर राव ने शनिवार. 25 जुलाई को इस संबंध में ट्वीट किये थे. इन ट्वीट्स में उन्होने कहा कि किस प्रकार भारत के इतिहास को बड़ी ही चालाकी से विकृत करके वामपंथी इतिहासकारों ने हिंदू सभ्यता का एब्राहमाज़ेशन किया.
उन्होने अपने ट्वीट्स में इस बात को उठाया कि किस प्रकार वामपंथी इतिहासकारों ने हिंदू धर्म की एक गलत छवि प्रस्तुत की है. और किस प्रकार मौलाना अबुल कलाम आज़ाद से लेकर फकरुद्दीन अली अहमद के समय तक जानबूखकर ऐसे शिक्षा मंत्री नियुक्त किये गये जो कि स्वभाव से बिल्कुल धर्मांध थे यानि इस्लाम के अंधभक्त थे. और इन्होने भारत के इतिहास की स्कूल और कांलेज में पढाई जाने वाली किताबों को पूरी तरह से हिंदू धर्म के प्रति ज़हर से भर दिया. और मुस्लिम शासकों की बर्बरता को छिपा कर उन्हे महिमामंडित किया.
नागेश्वर राव जी ने अपने ट्वीट में इस बात पर भी ज़ोर दिया कि किस प्रकार उच्च शिक्षा संस्थानों में और शोध संस्थानों में वामपंथी शिक्षाविदों को संरक्षण दिया गया और हिंदुत्व्वादी राष्ट्रवादी विद्वानों को दरकिनार कर दिया गया. फिर उन्होने यह भी बताया कि किस प्रकार से 1980 के दशक में ‘रामजन्मभूमि द्वार’ के उदघाटन और रामायण और लव कुश जैसे धारावाहिकों के प्रसारण से हिंदुओं की पुन: सांस्कृतिक जागृति हुई.
नागेश्वर राव जी ने अपने ट्वीट्स द्वारा इस बात पर भी ज़ोर दिया है कि किस प्रकार से मीडीया और मनोरंजन जगत में से भी हिंदू धर्म और सभ्यता का रेप्रेज़ेंटेशन गायब हो गया है यानि टी वी फिल्मों में धारावाहिक में या तो हिंदू सभ्यता और संस्कृति की छवि बिल्कुल प्रस्तुत ही नही की जा रही है और यदि की जा रही है, तो बड़ी ही नकारात्मक और गलत छवि प्रस्तुत की जा रही है.
और यह तो हम अपने आसपास के माहौल में खुद भी देख सकते हैं कि किस प्रकार से हिंदू धर्म के धर्म ग्रंथों का मखौल उडाना, हिंदू धर्म के भगवानों के नाम पर मज़ाक करना, यह सब आज की हिंदू पीढी के लिये एक फैशन स्टेट्मेंट जैसा बन गया है. वह यह सब करके यह दिखाना चाहते हैं कि वह सेक्यूलर और उदारदादी हं और धार्मिक रूप से कट्ट्र्पंथी नहीं हैं. और यह सारा वामपंथ का ही सिखाया पढा है. नागेश्वर जी इस बात पर भी चिंता व्यक्त करते हैं कि इस सब से किस प्रकार से हिंदुओं के भीतर अपनी पहचान को लेकर शर्मिंदगी पैदा की जा रही है.
इस पर लेफ्ट्स्ट मीडिया आउट्लिट द वायर के संस्थापक सिद्धार्थ वरदराजन का ट्वीट आया कि उन्हे यकीन नहीं हो रहा है कि एक वरिष्ठ आई पी एस अधिकारी इस प्रकार धार्मिक असहिष्णुता का माहौल तैयार कर रहा है. फिर वरदराजन ने कहा कि निश्चित तौर पर ही मोदी और शाह के ‘नये भारत’ की यह मांग है कि इससे जुड़े लोग आर एस एस की चाटुकारिता में लीन हों और मुस्लिम विरोधी प्रोपोगैंडा करें.
तो यहां पर जिस प्रकार से सिद्धार्थ वरदराजन ने एक वरिष्ठ आई पी एस अधिकारी पर जिस प्रकार से आरोपों की झडी लगाई और जिस प्रकार की भाषा का इस्तेमाल किया, वह एक क्लासिक लेफ्ट लिबरल प्रहार का प्रोटोटाइप यानि नमूना है. किसी भी व्यक्ति ने जो मुद्दे उठाये हैं, बिना उन्हे संबोधित करें, बिना उस व्यकित के तर्कों को काटने के लिये उस मुद्दे से जुडे कुछ तथ्यों को पेश किये, एक वामपंथी आलोचक सीधे सीधे पूर्वाग्रहों की झड़ी लगा दूसरे इंसान की बात को पूरी तरह से दबाने की कोशिश करता है. यानि उस पर ऐसे ऐसे आरोप लगा देता है कि चूंकि उसने यह बात कही है इसीलिये वह नान सेक्यूलर है, चूंकि उसने यह बात कही है इसीलिये वह धार्मिक असहिष्णुता फैला रहा है कि व्यक्ति के विरुद्ध एक नैतिक धरातल पर एक महौल तैयार हो जाये और फिर उस व्यक्ति की कोई बात ही न सुने. यानि चित्त् भी मेरी पट्ट भी मेरी. ठीक ऐसा हे सिद्धार्थ वरदराजन ने वरिष्ठ आई पी एस अधिकारी नागेश्वर राव के ट्वीट पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए किया है.
यदि सिद्धार्थ वरदराजन नागेश्वर राव जी के ट्वीट की प्रतिक्रिया के रूप में उनकी बात गलत साबित करने के लिये कोई तथ्य पेश करते या फिर कोई तर्क ही दे देते तो फिर भी कोई उनकी बात को थोड़ी गम्भीरता से ले सकता था. लेकिन यहां तो उन्होने एक वरिष्ठ आई पी एस अधिकारी पर बेबुनियाद आरोपों की झड़ी लगा दी है. वामपंथी ब्राइगेड अभिव्यक्ति की आज़ादी की दुहाई देते नही थकती. इसी अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर बलात्कार, मर्डर, देशद्रोह, हर अपराध को जस्टिफाई तक कर देती है. तो क्या एक व्यक्ति क्को ट्विटर पर अपनी बात रखने की भी स्वतंत्रता नहीं है? यदि वह कोई ऐसी बात बोलता है जिससे आप सहमत नहीं है या आपके मतलब के विरुद्ध जाती है तो क्या इसका मतलब यह है कि आप सोशल मीडिया में उस पर बेसिरपैर के आरोप लगाकर उसे ट्रोल करेंगे, वो भी एक वरिष्ठ आई पी एस अधिकारी को?
जो ब्राइगेड सेक्युलरिज़्म का पत्ता खेल अपनी रोटी सेंकती है, द वायर के संस्थापक सिद्धार्थ वरदराजन उस ब्राइगेड में सबसे आगे हैं. उनकी तथाकथित पत्रकारिता की पूरी नींव ही आये दिन हिंदू मुस्लिम एंगल को भुनाने के एजेंडे पर, हिंदू धर्म और उससे जुड़े लोगों के क्रिया कलापों में हमेशा कांस्पिरेसी तलाशने के एजेंडे पर टिकी हुई है. तो ज़ाहिर सी बात है जिन पूर्वाग्रहों को भुनाकर वह अपना व्यवसाय चलाते हैं, उनके खिलाफ कोई आवाज़ उठायेगा तो उन्हे खीझ तो होगी ही!