सारा कुमारी पसमांदा विमर्श हमारे देश के लिए आधारहीन विषय है। जो देश को केवल और अधिक बांटने का कार्य करेगा। बहुसंख्यक समाज का और अधिक दुधारू गाय की तरह शोषण होगा, और इनकी आबादी से भी कई गुना अधिक प्रतिशत सरकारी योजनाओं का लाभ मुस्लिमों तक पहुंचाया जाएगा। हालांकि यह प्रारंभ भी हो चुका है, शायद इसमें और अधिक गति आ जाएं, इसके लिए इस तरह की मुहिम चलाई जा रही है।
अब इसको सही तरीके से समझा जाएं तो फ़ैज़ जी या पसमांदा समाज के और सोशल एक्टिविस्ट लड़ किस लिए रहें हैं, जहां तक केंद्र की वर्तमान सरकार की बात है, तो उनका तो नारा है, सबका साथ सबका विकास, और मोदी सरकार केवल कह नहीं रहीं हैं, उनकी सभी नितियों का अध्ययन किया जाएं, और जमीन पर परिणाम देखा जाए तो वाकई में, सरकारी योजनाओं का लाभ, गांव में अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाया जा रहा है, और मुस्लिमो को तो उनकी आबादी प्रतिशत से कई गुना अधिक लाभ दिया जा रहा है।
तो सरकार जब अपना फर्ज बखुबी निभा रही हैं, तो पसमांदा समाज सुधारकों को तकलीफ़ कहां है ?? वो अपने कई इंटरव्यू में बता चुके हैं, उनको तकलीफ है, की उच्च वर्ग के मुसलमान यानि कि अशराफ उनसे दोयम दर्जे का व्यवहार करते हैं, तो ये तकलीफ तो उनकी अंदरुनी है, उसका समाधान भी अंदरुनी होना चाहिए।जैसे गज़वा ए हिन्द के सारे मंसुबे दोनों मिलकर बन्द कमरे में बनाते हैं, ( और केवल बनाते नहीं, उन पर क्रियान्वयन भी बखुबी करते हैं, कन्हैयालाल जी का याद है ना ?) जिसमें अशराफ और पसमांदा की बेजोड़ जुगलबंदी देखने को मिलती है, क्या बढ़िया ढंग से काम करते हैं, बहुसंख्यक, सरकार, पुलिस सब फेल हो जाती है।
तो आखिर क्या कारण है कि इनका इतना गंभीर मुद्दा ये लोग आपस में विचार विमर्श करके बंद कमरे में क्यों नहीं सुलझा लेते हैं। उसमें सरकार और हिन्दू समाज क्या करें, ? बंद कमरे में आपस में निपटा लो। तो हमें इसको बारिकी से समझना पड़ेगा, क्योंकि हमारे हिन्दू भाई बहन राजनीतिक रुप से मुस्लिम जितने परिपक्व नहीं होते, बहुत भोले होते हैं।
मुस्लिम के नाम पर, अशराफ वर्ग, (दो देश लेने के बाद भी), आज भी सरकार से इस देश की संपत्ति से सबकुछ लूट रहा है, और पसमांदा समाज का दुःख ये है कि, उसका बड़ा हिस्सा हमको भी मिले, क्योंकि अभी तक 10% अशराफ और 90% पसमांदा में, सरकार की लूट का 90% अशराफ ले जाता है, और केवल10% पसमांदा को मिलता है, तो मुस्लिम बने रहने का फायदा ठीक से नहीं मिल पा रहा है,बस यही पसमांदा की तकलीफ़ हैं।
वरना ये लोग स्वयं को भारतीय संस्कृति को मानने वाला कहते हैं, और अब सोशल मीडिया के प्रभाव से ये कोई ढकी छुपी बात तो यह नहीं गई है, की क़ुरान और हदीस मोहम्मद के जाने के 200 साल बाद अब्बासीयो द्वारा गढ़ गई है, जो ज्यादातर दूसरी पहले से मौजूद किताबों से लिए गए, content को मिला जुला कर लिख दिया गया है, इसमें आध्यात्मिक जैसी ज्ञान वर्धन बातें तो है नहीं। बल्कि ज्यादातर विभेदनकारी बातें हैं, जैसे यहूदी से, इसाई से नफ़रत करों, मूर्तियों और मंदिरों को तोडो, मूर्ति पूजक शिर्क करता है तो उससे जजिया लो, और तो और खुद की ही कौम की औरतों को दोयम दर्जे का मुकाम हासिल है।
तो पसमांदा जो कि भारतीय संस्कृति को मानते हैं, उन्हें क्या मजबूरी है, कुरान, हदीस को follow करने की, वो घर वापसी क्यों नहीं कर लेते, इसके उत्तर में कहीं ना कहीं हमारे सरकार की नाकामी भी प्रदर्शित होती है, क्योंकि मुस्लिम का विक्टिम कार्ड खेलकर खुलेआम सरकार से वसूली की जा सकती हैं, और पसमांदा समाज का यही उद्देश्य है, की जब अशराफ मुस्लिम के नाम पर हिन्दुओं और सरकार को लूटकर ,् राजाओं की तरह ठाठ – बाट से रह रहा है, तो हमें भी लूट का हिस्सा और ज्यादा क्यूं ना मिले, ताकि हम भी ऐशो आराम से रहें।
पसंमादा समाज जिसने मदरसों से इतर modern education ली है, वो सरकार और अशराफ के इस खेल को अच्छी तरह समझ चुके हैं, और अब खुद भी इस खेल को खेलने के लिए मैदान में आ चुके हैं। और अब तो इनको सुखद परिणाम भी मिलने लगे हैं, 2014 के बाद से, पसमांदा समाज का भारत में जबरदस्त उत्थान हुआ है, परन्तु किस की कीमत पर, जी हां हमारे हिन्दू समाज की कीमत पर, जो की द्रूत गति से नीचे की ओर जा रहा है।वहीं सच्चर कमेटी की रिपोर्ट जो एक बार मुस्लिमों के लिए बनाई गई थी, यदि आज हिन्दूओं के लिए बनाई जाएं, तो हिन्दू समाज के नीचे जाने का सच अवश्य सामने आएगा।
परन्तु भारत में हिन्दू हितैषी अब कोई नहीं है तो इसकी अपेक्षा करना व्यर्थ है। और अपने लेख के अंतिम भाग में, मैं benefit of doubt पसमांदा समाज के इस विमर्श को भी दूंगी, क्योंकि दोनों पक्षों की बात होनी चाहिए, यहीं स्वस्थ शास्त्रार्थ भारत की परंपरा है। अब मैं फ़ैज़ जी से पूछना चाहुंगी की, बगैर शक़ पसमांदा समाज ही , अशराफ वर्ग के foot soldier की तरह काम करता है
इस फैक्ट से तो किसी को इंकार नहीं है, मार – काट, दंगा- फसाद, धरना, दुष्कर्म, सब यही करते हैं, और इन सबमें सबसे ख़तरनाक है, सर तन से जुदा, अब पसमांदा समाज सुधारक इस बात की गारंटी कैसे ले सकतें हैं, की क़ुरान हदीस को मानने वाले पसमांदा लोग आगे चलकर ऐसा नहीं करेंगे, क्योंकि इन किताबों में तो लिखा ही यहीं है, मेरा अध्धयन मुस्लिमों का तो यही कहता है, ये लोग चुल्हे पर चढ़े पानी की तरह होते हैं, जरुरी नहीं हर पतिला उबल ही रहा हो, बस जरूरत है, नीचे से तील्ली लगाने की, वो कोई भी मौलवी, मौलाना कभी भी कर सकता है।
जैसे 93 में बम ब्लास्ट करने वाला, या अभी कन्हैयालाल जी को मारने वाला, अतारी हो, इनके दादा, नाना हो सकें, उन्होंने कट्टरता ना दिखाई हो, या हो सकता है इनके आने वाली पीढ़ी में से कोई कट्टरता ना दिखाएं, परन्तु कौन कब, कैसे कट्टरता दिखाएगा, और उसकी वजह से, किसी भी वक्त कन्हैयालाल जी या उन जैसे अनेकानेक मारें गए, उजड़ गए हिन्दू परिवार का तो loss हो गया ना, जिसकी जड़ इस आसमानी किताब की शिक्षा और मदरसों में मौलवी के दिए गए, खुतबो में ही छुपी हुई है।
अब कौन कब कट्टर बन जाएं, कब उसपर खुन सवार हो जाएं, इसका थर्मामीटर लेकर हर जगह ना तो कोई हिन्दू घुम सकता है, ना सरकार घुम सकतीं हैं, अतः जड़ पर प्रहार करना आवश्यक है, हां ये एकदम से नहीं किया जा सकता, धीरे धीरे होना चाहिए। परन्तु पसमांदा और अशराफ को अलग अलग देखा जाए, इससे मुझे हिन्दुओं या भारत के लिए कोई लाभ नहीं दिखता, सिवाय उन दोनों वर्गों के और अधिक लाभ के।
जय हिन्द वन्देमातरम