श्वेता पुरोहित –
प्रभु श्रीराम कहते हैं- लक्ष्मण, देखो ! बादलों को देखकर वर्षा की आशा से मोर नाच रहे हैं जैसे कोई प्रभु के प्रेम में मग्न गृहस्थी प्रभु के दर्शनों की आशा से आनंदकंद भगवान विष्णु के भक्त को देखकर प्रसन्न होते हैं।
वर्षा के जल से छोटी-छोटी नदियाँ भी उछल-उछल कर चलती हैं जैसे दुष्टजन थोड़ा-सा धन पाकर इतराने लगते हैं। वर्षा का जल पृथ्वी पर गिरते ही ऐसा गंदला हो जाता है जैसे मानव माया में लिपट कर गंदा हो जाता है । वर्षा का जल सिमट-सिमट कर तालाब में भर जाता है जैसे सद्गुण नम्र हृदय वाले संतजनों के हृदय में आते हैं फिर उनके हृदय के विचारों में गोता लगाकर कितने ही तीरथ यात्री पवित्र बन जाते हैं। नदियों का जल समुद्र में जाकर ऐसे अचल हो जाता है जैसे भक्त भगवान को पाकर ।
मेढ़कों की ध्वनि ऐसी सुहावनी लगती है जैसे वेद पाठी ब्राह्मणों की वेद ध्वनि । वृक्षों में नए पत्ते उपजते हैं जैसे साधक के मन में विवेक उत्पन्न होता है। किंतु अर्क, जवास के पत्ते गिर जाते हैं जैसे दुष्टों के उधम मचाने पर अपने राज्य के उत्तम गुण नष्ट हो जाते हैं कहीं भी खोजने पर धूर नहीं मिलती जैसे क्रोध में धर्म दिखाई नहीं देता ।
घास बढ़ जाने के कारण मार्ग नहीं दीखता जैसे पाखंडियों के विवाद से सग्रंथों में सद्मार्ग नहीं दीखता और संतों के लगाए हुए बगीचों में उत्तम फलों के वृक्ष भी छिप जाते हैं।
देखो लक्ष्मण ! धान्य संपन्न भूमि कैसी शोभायमान है जैसी परोपकारी की संपत्ति शोभा पाती है। बादलों के अंधकार से रात्रि में जुगनू ऐसे चमचमा रहे हैं जैसे मानो दंभियों की सभा जुड़ी हो । अत्यधिक वर्षा होने के कारण खेतों की क्यारियाँ टूटकर पानी बह निकला है जैसे आवश्यकता से अधिक स्वतंत्रता मिलने पर स्त्रियाँ लोभ वश बिगड़ जाती हैं। चतुर किसान खेती को संभाल कर निराते हैं जैसे बुद्धिमान पुरुष मद, मोह और मान को तजकर ज्ञान की रक्षा करते हैं।
चक्रवाक पक्षी नहीं दीखते जैसे कलि में धर्म दिखाई नहीं देता। ऊसर भूमि में घास नहीं जमती जैसे प्रभु भक्तों के हृदय में काम उत्पन्न नहीं होता। भाँति-भाँति के जीव बढ़ गये जैसे उत्तम राजा पाकर प्रजा बढ़ती है। पथिकगण थके हुए जहाँ-तहाँ बैठे हैं, जैसे ज्ञान होने पर इंद्रियाँ थक जाती हैं।
बादलों में कभी तो सूर्य छिप जाता है और कभी प्रगट हो जाता है जैसे सत्संग से ज्ञान उत्पन्न होता है और कुसंग से छिप जाता है। कभी तीव्र वायु के उत्पन्न होने से बादल जहाँ-तहाँ छिप जाते हैं। जिस प्रकार कुपुत्र के उत्पन्न होने पर कुल और सत्य-धर्म नष्ट हो जाते हैं।
कमलों के फूलने से सरोवर कैसे सुंदर लगता है जिस प्रकार निर्गुण ब्रह्म के सगुण रूप में प्रगट हो जाने पर भक्तों का हृदय खिल उठता है और फिर यह संसार सुंदर सुहावना लगने लग जाता है। तालाब में नीर अगाध होने पर मछलियाँ बहुत सुखी हैं। जैसे सगुण ब्रह्म-भगवान विष्णु के शरण में रहने पर भक्त सभी बाधाओं से मुक्त होकर सुखी रहता है। हे लक्ष्मण, देखो ! वर्षा ऋतु बीतने पर कैसी सुंदर शरद ऋतु आई है, यह परम शोभायमान है। अगस्त्य ने उदय होकर मार्गों का जल सोख लिया है जैसे लाभ को संतोष सोख लेता है । जिससे सभी जीव सुखी हो जाते है, लोभ ही सब पापों का और सब दुखों का मूल है।
नदियों एवं तालाबों का जल निर्मल और ऐसा शोभायमान है जैसे मद और मोह रहित होकर संतों का हृदय निर्मल होता है। नदी और तालाबों का पानी धीरे-धीरे रिसकर सूख जाता है जैसे ज्ञानी भक्त जनों की धीरे-धीरे ममता नष्ट हो जाती है। कहीं-कहीं पर वर्षा है और कहीं-कहीं थोड़ी सर्दी है। जिस प्रकार कोई एक ही भक्त मेरी भक्ति पाता है। कीचड़ और धूल से रहित भूमि ऐसी सुंदर लगती है जैसे नीति निपुण राजा की करनी शोभा पाती हैं
चकोरें चंद्रमा को ऐसे देख रही हैं जैसे भक्तगण भगवान विष्णु को पाकर गतचित होकर देखते हैं। डांस-मच्छर शीत के भय से नष्ट हो गए जैसे श्री सद्गुरू के सेवक से द्रोह करने पर कुल का नाश हो जाता है। जल के अभाव में मछली ऐसे व्याकुल हैं। जैसे अविवेकी कुटुंबी धन के बिना दुखी होता है। बिना बादल के आकाश ऐसा शोभा पा रहा है जैसे विष्णु भक्त आशाओं को त्यागकर शोभा पाता है।
प्रसन्न होकर राजा, तपस्वी, व्यापारी और भिखारी नगर को छोड़कर चले जैसे आनंदकंद भगवान विष्णु की भक्ति पाकर मानव चारों आश्रमों को त्यागकर प्रभु की सेवा भक्ति में लग जाते हैं। वर्षा ऋतु के कारण बढ़े हुए जीव शरद ऋतु पाकर ऐसे चले गए जैसे सद्गुरू मिलने पर सभी संशय और भ्रम चले जाते हैं।