प्रशांत भूषण अवमानना मामले में कुछ दिन पहले ही देश के 131 तथाकथित बुद्धिजीवियों और जानी मानी हस्तियों ने प्रशांत भूषण का समर्थन करते हुए लिखित पत्र जारी किया जिसमे उन्होने प्रशांत भूषण के न्यायपालिका के खिलाफ किये गये ट्वीट्स को उचित बताया और प्रशांत भूषण के विरुद्ध चल रहे अदालत की अवमानना के केस को रद्द करने का अनुरोध किया.
इस पत्र के विरोध में देश के 174 सम्मानित नागरिकों ने 7 अगस्त को राष्ट्रपति के समक्ष एक विरोध पत्र प्रस्तुत किया. विरोध पत्र में जिन नागरिकों के नाम और हस्ताक्षर शामिल हैं, उनमे से कुछ सेवानिवृत्त न्यायाधीश हैं तो कई प्रशासनिक सेवा में वरिष्ठ अधिकारी रह चुके नागरिक हैं, कुछ सेना के सेवानिवृत्त वरिष्ठ अफसर हैं तो कुछ समाज विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े बुद्धिजीवी भी हैं.
विरोध पत्र में इन सभी ने प्रशांत भूषण और सुप्रीम कोर्ट के बीच के मामले में तथाकथित बुद्धिजीवियों द्वारा की जाने वाली दखलंदाज़ी पर आपत्ति जताई है. किसी भी देश के न्यायालय की अपनी एक गरिमा होती है और उस गरिमा को सुरक्षित रखने के लिये भारत में ही नही बल्कि विश्व के कितने ही देशों में सख्त नियम कानून होते हैं, इस पत्र में कहा गया है.
फिर आगे इस रिप्रेज़ेंटेशन में इस बात पर ज़ोर दिया जाता है कि जिन लोगों का समूह कंटेम्प्ट आंफ कोर्ट यानि अवमानना से जुडे कानून को हटाने के पक्ष में बोल रहा है, उसे यह जानने समझने की ज़रूरत है कि भारतीय न्याय प्रणाली में यह कानून इसीलिये नहीं है कि न्यायधीशों की स्वयं की नज़रों में उनकी गरिमा बनी रहे बल्कि इसीलिये है कि उन करोड़ों गरीबों, असहायों, लाचार लोगों की दृष्टि में न्यायालय और न्यायाधीशों का मान सम्मान बना रहे जो कि बड़ी ही आस लेकर न्यायालय का दरवाज़ा खटकाते हैं.
प्रशांत भूषण के अवमानना के मामले में जिन तथाकथित बुद्धिजीवियों ने उनके ट्वीट्स के समर्थन में कोर्ट को पत्र लिखा था, उनका तर्क यह था कि हाल के समय में कितने ऐसे उदाहरण हैं, जब न्यायालय द्वारा आम लोगों के अधिकारों की रक्षा करने के अपने कर्तव्य से भारी चूक हुई है. और इसीलिये प्रशांत भूषण जैसे व्यक्ति को यह अधिकार है कि वे आवश्यकता पड़्ने पर न्यायालय की आलोचना भी करें और उसे उचित मार्ग दिखायें.
लेकिन ये सब तथाकथित बुद्धिजीवी शायद यह भूल गये कि प्रशांत भूषण जी ने अपने ट्वीट्स में लिखा क्या है. एक ट्वीट में उन्होने बड़ी ही अपमानजनक भाषा में देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बोगड़े के बारे में लिखा था कि एक ऐसे समय में जब देश कोरोना वायरस आपदा से गुज़र रहा है और न्यायालय आम लोगों के लिये बंद हैं, ऐसे समय में चीफ जस्टिस बिना मास्क के 50 लाख रुपये की मोटरसाइकल चला रहे हैं.
जबकि फोटो में जस्टिस बोगड़े मोटरसाइकल पर बैठे मात्र हैं. फोटो में ऐसा कही भी नही दिख रहा कि उन्होने मोटर्साकल चलाई हो. देश के मुख्य न्यायाधीश के निजी जीवन की किसी बात पर इस तरह की सनसनीखेज़ टिप्पणी करना और बिना सच्चाई जाने समझे सिर्फ अपने एजेंडे की पूर्ति के लिये यह सब कहना भला किस प्रकार से न्याय प्रणाली की तर्कसंगत आलोचना है. यह तो महज़ एक व्यक्ति विशेष व्यक्ति के विरुद्ध राजनीतिक तौर पर प्रायोजित प्रोपोगैंडा है.
एक और ट्वीट में उन्होने सुप्रीम कोर्ट पर प्रजातंत्र का विनाश करने का आरोप लगाया है. और ट्वीट में स्पष्ट तौर पर लिखा है कि पिछले 6 सालों में ही यह सब कुछ् हुआ है और इसमे पिछले 4 मुख्य न्यायधीशों ने प्रजातांत्रिक ढांचे को तहस नहस करने में अहम भूमिका निभाई.
तो संकेत साफ है. सब कुछ पिछले 6 सालों में यानि मोदी सरकार के शासन काल में हुई हुआ है, ऐसा प्रशांत भूषण कह रहे हैं. यानि कांग्रेस सरकारों के समय देश की न्याय व्यवस्था बिल्कुल उच्च कोटि की थी और एन डी ए सरकार के आते ही प्रजातंत्र नष्ट होना शुरू हो गया! और उनके शासन काल में जो भी मुख्य न्यायाधीश रहे, उन्होने ही इसे नष्ट करने में अहम भूमिका निभाई, प्रशांत भूषण कह रहे हैं!
तो अब आप खुद ही सोचिये कि क्या ये दोनों ट्वीट राजनीतिक तौर पर प्रयोजित प्रोपोगैंडा मात्र नहीं है. एक ट्वीट में देश के वर्तमान मुख्य न्यायधीश के मोटरसाइकल पर बैठे होने की तस्वीर को लेकर अफसाना गढा जाता है तो दूसरे ट्वीट में कहा जाता है कि पिछले 6 वर्षों में सुप्रीम कोर्ट प्रजातंत्र का दुश्मन बन बैठा है. यह बिल्कुल स्पष्ट है कि ये दोनों ट्वीट सुप्रीम कोर्ट के विरुद्ध नही बल्कि मोदी सरकार के विरुद्ध हैं. और सरकार पर निशाना साधने के लिये सुप्रीम कोर्ट के बारे में ट्वीट किया जा रहा है. और बिना किन्ही तथ्यों पर देश के सर्वोच्च न्यायालय पर ऐसे घटिया और बेसिरपैर के आरोप लगाये जा रहे हैं. और एक तस्वीर की बिनाह पर देश के मुख्य न्यायाधीश का मखौल उड़ाया जा रहा है. ऐसे भ्रामक और प्रोपोगैंडा से भरे ट्वीट्स करने वाले व्यक्ति के खिलाफ तो अवमानना का केस निश्चित तौर पर चलना चाहिये.
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