जब सन 1940 में जर्मनी का वैज्ञानिक वार्नर हैसिनबर्ग नाभिकीय विखंडन पर काम कर रहा था और सफलता के करीब ही था। हिटलर को हैसिनबर्ग से बहुत आशाएं थी। जून की गर्मियों में एक दिन उसके घर एक अनजान व्यक्ति आता है। असाधारण रूप से लंबा और सिर पर फेल्ट हैट लगाए ये व्यक्ति हैसिनबर्ग के नौकर को कुछ रहस्यमयी लगता है क्योंकि हैट उसने इस अंदाज में लगाया हुआ है कि उसका चेहरा नौकर को न दिखाई दे। वह नौकर को एक पत्र देकर चला जाता है। हैसिनबर्ग पत्र पढ़ता है। पत्र में लिखा है ‘परमाणु का रास्ता बहुत घातक है। ये जल्द ही पृथ्वी के पर्यावरण को अपनी चपेट में ले लेगा। ये पहली सभ्यता नहीं है, जो परमाणु के खेल में पड़ी है। इसके पहले भी कई सभ्यताएं इस रास्ते पर चलकर विलुप्त हो चुकी है।’ इस पत्र के आखिरी में नाम लिखा था ‘फल्कानेली’।
जाहिर है कि इस फल्कानेली की बात नहीं मानी गई। इसके बाद भी और प्रयोग इस दिशा में होते रहे। इसके बाद फल्कानेली की कोई खबर नहीं मिली। सन 1945 में वैज्ञानिक रॉबर्ट ओप्पेनहिमर ने अमेरिका के लिए परमाणु बम बना लिया, जिसका प्रयोग हिरोशिमा और नागासाकी पर किया गया था।
इन विस्फोटो के भयंकर दृश्य देखकर ओप्पेनहिमर ने भगवद गीता के इस श्लोक को याद किया, जिसका अर्थ होता है ‘आकाश में सहस्र सूर्यों के एक साथ उदय होने से उत्पन्न जो प्रकाश होगा, वह उस (विश्वरूप) परमात्मा के प्रकाश के सदृश होगा।’ निश्चय ही विस्फोट से बने ‘मशरूम’ और परमाणु बम फटने के बाद हुए तीव्र प्रकाश को देखकर उसे भगवद गीता के श्लोक की याद आई।
पृथ्वी ने विगत कई शताब्दियों में फल्कानेली जैसे कई रोचक रहस्य्पूर्ण व्यक्तित्व जन्मे हैं। उसने अवतारों को अपनी गोद में खिलाया है तो उसकी भूमि पर ऐसे वैज्ञानिक जन्मे, जिन्होंने मानव जाति के जीने का ढंग ही बदल डाला। पृथ्वी लगातार अपने पेट से प्राचीन समय के अवशेष उगलती रहती है।

इनके अध्ययन से पता चलता है कि प्राचीन काल में कई बार परमाणु की प्रचंड शक्ति का प्रयोग हो चुका था। उस समय इस शक्ति का उपयोग साम्राज्य विस्तार के लिए होता था और आज ये ऊर्जा प्राप्त करने का माध्यम बना हुआ है लेकिन हर हाल में बहुत बड़ा खतरा है। हर बार मानव जाति के सामने दो ही रास्ते बचे हैं। ऊर्जा प्राप्ति या साम्राज्य विस्तार के लिए परमाणु का प्रयोग करें या दुसरा मार्ग चुन ले। मानव ने हर बार ‘परमाणु’ ही चुना है।
अणु की शक्ति से सर्वप्रथम विश्व को परिचित करवाने वाले ऋषि कणाद थे। उन्होंने छठीं शताब्दी ईसा पूर्व परमाणु का सिद्धांत प्रतिपादित किया था। वैसे कुछ इतिहासकार उनको दूसरी सदी में जन्मा मानते हैं। उन्होंने पता लगा लिया था कि पदार्थ का वह सूक्ष्म कण जो अविभाज्य हो, परमाणु कहलाएगा।
कणाद का उद्देश्य बम निर्माण नहीं था बल्कि सच्चाई और अच्छाई के साथ भौतिक प्रगति करना था। सन 450 बीसी में ग्रीक दर्शनशास्त्री डेमोक्रिटस ने परमाणु का सिद्धांत प्रस्तुत किया। उसके बाद आधुनिक काल में भौतिक विज्ञानी और रसायनविद जॉन डॉल्टन ने एक बार फिर ये सिद्धांत प्रतिपादित किया। ऐसा लग रहा था कि परमाणु की पैशाचिक शक्ति देखे बिना मानव थमने वाला नहीं था।
सन 1945 में जब अमेरिका ने हिरोशिमा-नागासाकी पर परमाणु हमला कर विश्व को दहला दिया तो ‘फल्कानेली’ फिर सामने आया। अबकी बार उसने अपने पत्र में लिखा था ‘ तुमने पहला कदम उठा लिया है और ये भी देखा कि ये कितना विनाशकारी है। यदि अब न रुके तो पृथ्वी को संकट में आने में समय नहीं लगेगा। परमाणु बम के विकिरण से बहुत नुकसान हो चुका है और ये आगे दोहराया गया तो संपूर्ण पृथ्वी, यहाँ तक कि हमारा ऑर्बिट तक इस रेडिएशन की चपेट में होगा।’
बाद में ओप्पेनहिमर ने ये स्वीकार किया कि उसकी तकनीक मानव सभ्यता के लिए प्राणघातक सिद्ध हुई है। किडनी कैंसर से मरने से पूर्व उसने संस्कृत सीखी और नियमित रूप से भगवद गीता पढ़ने लगा था। यही उसका सूक्ष्म सा प्रायश्चित्त था, उस पहाड़ से अपराध के सामने।
6 अगस्त को हिरोशिमा-नागासाकी की बरसी मनाई गई और उसके ठीक दो दिन पहले यानी 4 अगस्त को बेरुत में 2,750 टन अमोनियम नाइट्रेट में विस्फोट हो गया। ये इतना तीव्र विस्फोट था कि इसकी आवाज़ ढाईसौ किमी तक सुनाई दी।
इसके कारण ढाई लाख लोग बेघर हो गए और बेरुत आर्थिक रूप से जमीन पर आ गिरा। वर्तमान पीढ़ी ने उस महाविभीषिका की बरसी से दो दिन पहले विश्व ने महसूस किया कि उस विस्फोट की तीव्रता और असर कितना घातक हुआ होगा।
कहानी यहीं ख़त्म नहीं होती, अब इस ‘फल्कानेली’ के बारे में जान लीजिये। ये एक रहस्य्मयी व्यक्ति था। पृथ्वी पर सन 1900 के भी पहले से इसकी एक्जिस्टेंस पाई गई है और यहाँ से इसकी कहानी सन 1980 के बाद तक जाती है। ये व्यक्ति रहस्य्पूर्ण इसलिए है कि ये रसायन विज्ञानी था और सन 1926 के बाद लापता हो गया।
इसके पास पृथ्वी का लाखों वर्ष का इतिहास मौजूद था और वह ‘मेजिकल अल्केमिस्ट’ था। वह रासायनिक प्रक्रिया से सोना बनाने में सफल हो गया था। हालांकि उसकी रूचि सोने में नहीं होकर इस बात में थी कि रसायन किसी बूढ़े व्यक्ति के शरीर को युवा कैसे बना सकते हैं। ऐसा प्राचीन प्रयोग धार में राजा भोज के समक्ष भी किया गया था। उस प्रयोग में रसायनों का प्रयोग किया गया था।
उसकी तलाश कई लोगों को थी। एक तो इतिहास का खज़ाना और दूसरा उसकी सोना बनाने की काबिलियत के कारण कई लोगों ने उसे खोजने के प्रयास किये, उसकी जासूसी करवाई लेकिन वह बहुत चालाक था। कहते हैं रसायन की मदद से उसने एक नया ‘उभयलिंगी शरीर’ पा लिया था।
सम्भव है अब भी वह विश्व में मौजूद हो और फिर किसी दिन किसी राष्ट्राध्यक्ष के नाम ऐसा तीसरा पत्र आए, जिसमे नीचे सुंदर लिपि में लिखा हो ‘फल्कानेली’। किसी को नहीं मालूम वह कब, कहाँ जन्मा, किसी को नहीं मालूम कि वह कब और कैसे मरा, बस पृथ्वी ही जानती है उसका रहस्य।
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