श्वेता पुरोहित। जिस वस्तु में श्री राम-नाम नहीं, वह वस्तु तो कौड़ी की भी नहीं। उसके रखने से लाभ ? श्रीहनुमानजी ने अयोध्या के भरे दरबार में यह बात कही।
स्वयं जानकी मैया ने बहुमूल्य मणियों की माला हनुमानजी के गले में डाल दी थी। राज्याभिषेक- समारोह का यह उपहार था – सबसे मूल्यवान् उपहार। अयोध्या के रत्नभण्डार में भी वैसी मणियाँ नहीं थीं। सभी उन मणियों के प्रकाश एवं सौन्दर्य से मुग्ध थे। मर्यादा पुरुषोत्तम को श्रीहनुमानजी सबसे प्रिय हैं- सर्वश्रेष्ठ सेवक हैं पवनकुमार, यह सर्वमान्य सत्य है। उन श्रीआञ्जनेय को सर्वश्रेष्ठ उपहार प्राप्त हुआ – यह न आश्चर्य की बात थी, न ईर्ष्याकी।
असूयाकी बात तो तब हो गयी, जब हनुमानजी अलग बैठकर उस हारकी महामूल्यवान् मणियों को अपने दाँतों से पटापट फोड़ने लगे।
एक दरबारी जौहरी ने टोका तो उन्हें बड़ा विचित्र उत्तर मिला।
आपके शरीर में श्रीराम-नाम लिखा है ? जौहरी ने कुढ़कर पूछा था। किंतु मुँह की खानी पड़ी उसे। हनुमानजी ने अपने वज्रनख से अपनी छाती का चमड़ा उधेड़कर दिखा दिया। श्रीराम हृदय में विराजित थे और रोम-रोम में श्रीराम लिखा था उन श्रीराम-दूतके । ‘जिस वस्तुमें श्रीराम-नाम नहीं, वह वस्तु तो दो कौड़ी की है। उसे रखने से लाभ ?’ श्रीहनुमानजी की यह वाणी। उन केसरीकुमार का शरीर श्रीराम- नाम से ही निर्मित हुआ। उनके रोम-रोम में श्रीराम- नाम अङ्कित है।
उनके वस्त्र, आभूषण, आयुध – सब श्रीराम- नाम से बने हैं। उनके कण-कण में श्रीराम-नाम है। जिस वस्तुमें श्रीराम-नाम न हो, वह वस्तु उन पवनपुत्र के पास रह कैसे सकती है?
श्रीराम-नाममय है श्रीहनुमानजी का श्रीविग्रह – राम माथ, मुकुट राम, राम सिर, नयन राम, राम कान, नासा राम, ठोढ़ी राम-नाम है।
राम कंठ, कंध राम, राम भुजा बाजूबंद, राम हृदय अलंकार, हार राम-नाम है॥
राम उदर, नाभि राम, राम कटी, कटी-सूत, राम बसन, जंघ राम, जानु-पैर राम-नाम है।
राम मन, वचन राम, राम गदा, कटक राम, मारुति के रोम रोम व्यापक राम-नाम है ॥
आप सब को श्रीहनुमान जयंती की बहुत सारी शुभकामनाएं 🙏🌷