संदीप देव। कभी भारतवर्ष का विस्तार कहां तक था, इस नक्शे में देखिए और सोचिए कि हम क्यों सिमटते चले गये!
ध्यान से देखिए, जहां-जहां से सनातन धर्म मिटा, आज वह भारत के नक्शे से बाहर है। राष्ट्र तभी बचेगा जब धर्म बचेगा। हमने राष्ट्रवाद और सेक्यूलरिज्म का खोखला नारा गढ़ लिया, जिस कारण हम मिटते चले जा रहे हैं। धर्म को धारण कीजिए, राष्ट्र अपने आप बच जाएगा।
चलिए, अब्राहमिकों के थॉट प्रोसेस से सोचिए। इस्लाम और ईसाइयत ने अपने मजहब/रिलीजन के विस्तार के लिए दुनिया को जीतने का अभियान चलाया और देखिए उनके पास आज कितने देश हैं, और आपके पास कितने? वो राष्ट्रवाद नहीं, मजहबवाद की अवधारणा लेकर चले और फैलते चले गये!
अब शास्त्र के अनुसार सोचिए! राम के समक्ष राष्ट्र था और पिता की आज्ञा के पालन का धर्म। उन्होंने क्या चुना? राष्ट्र या धर्म? दशरथ महाराज ने तो राम से यह तक कहा कि मेरे वनवास वाले वचन का पालन करने की जगह मुझे कारागृह में डाल कर शासन करो, अयोध्या की पूरी जनता राम के पक्ष में सड़कों पर उतर आई थी, भरत जंगल में उन्हें राज्य लौटाने गये थे! फिर भी राम ने क्या चुना? राष्ट्र या धर्म? राम से बड़ा कोई राजा नहीं हुआ, फिर भी भारत के हिंदुओं ने राम को आदर्श मानने की जगह खोखले राष्ट्रवाद और सेक्यूलरिज्म में स्वयं को कैसे झोंक दिया और क्यों झोंक दिया? सोचिए!
अब श्रीकृष्ण पर आते हैं। श्रीकृष्ण ने स्त्री सम्मान के धर्म की रक्षा पर महाभारत का उद्घोष कर दिया, नागरिकों के धर्म की रक्षा के लिए मथुरा से द्वारिका की ओर प्रस्थान किया, धर्म रक्षार्थ धर्म राज को गद्दी पर बैठाने के लिए कुरु राष्ट्र की मजबूत दीवार को हिला दिया। भगवान ने हमेशा राष्ट्र से बड़ा धर्म को माना।
अब चलिए परशुराम जी पर आते हैं। मानव सभ्यता के प्रथम विद्रोही के रूप में उन्होंने धर्म रक्षार्थ अपने ही राजा सहस्रार्जुन के विरुद्ध युद्ध का शंखनाद कर उसका विनाश कर दिया।
हमारे शास्त्रों में धर्म ही जीवन, राष्ट्र, प्रकृति, जीव -जंतु और मानव जाति का आधार है। हमने जब-जब अपना धर्म छोड़ा हम मिटते चले गये!

अतः सनातन धर्म को धारण कीजिए तो ही भारत का शेष रहा हिस्सा बच पाएगा। स्वयं को खोखला राष्ट्रवादी कहने की जगह स्वयं को सनातनी कहिए और सनातन धर्म के आचरण को धारण कीजिए; देखिए आप स्वयं राष्ट्र को बचाने में बड़ी भूमिका निभाने लगेंगे।
अतः धर्म प्रथम, न कि राष्ट्र प्रथम! इस सनातन शिक्षा की गांठ बांध लीजिए! अन्यथा आपके पास सिर्फ एक राष्ट्र, वह भी आधा -अधूरा बचा है, भविष्य में वह भी नहीं रह पाएगा! आपके पूर्वजों ने आपको आपका एक राष्ट्र सौंपा था, आप अपनी अगली पीढ़ी को क्या सौंप कर जाइएगा, जरा सोचिए!
आज आप 100% सनातनी से 70% सनतनी पर आ चुके हैं। 100 साल बाद आपके बच्चों का क्या होगा सोच लीजिए!
अतः जय सनातन के उद्घोष और आचरण को जीवन में उतरिए, इससे पहले की बहुत देर हो जाए! ऋषि ऋण चुकाए बिना मुक्ति नहीं मिलती, और ऋषि ऋण सनातन की गंगा को बहाकर ही चुकाई जा सकती है! और हां, महाभारत में भी यही बार-बार दोहराया गया है: यतो धर्म: ततो जय:(यतो धर्मस्ततो जयः)! जय सनातन 🙏