2007 में हुए समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट में पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल अली को बचाने के लिए असीमानंद को फंसाया गया। अजमल अली को जब पकड़ा गया तो उसने अपना गुनाह भी कबूल किया था, लेकिन केवल 14 दिन में चुपचाप उसे छोड़ दिया गया था। उसके बाद इस केस में स्वामी असीमानंद को फंसा दिया गया था। ताकि हिंदू आतंकवाद को साबित किया जा सके। इसका खुलासा इस केस के जांच अधिकारी ने अदालत में किया था।
समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट केस के पहले जांच अधिकारी इंस्पेक्टर गुरदीप सिंह थे। गुरदीप सिंह अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं। गुरदीप सिंह ने 9 जून 2017 को अदालत में अपना बयान दर्ज कराया था। उनके बयान के अनुसार, यह सही है कि समझौता ब्लास्ट में पाकिस्तानी अजमल अली को गिरफ्तार किया गया था। वो बिना पासपोर्ट, वीजा के भारत आया था। दिल्ली, मुंबई समेत देश के कई शहरों में उसने रेकी की थी। जांच के दौरान मैं अजमल अली के साथ उन शहरों में गया था, जहां जहां वह रहा था। उसने इलाहाबाद में जहां रहने की बात की, वह जगह सही निकली। लेकिन अपने वरिष्ठ अधिकारियों, सुपरिटेंडेंट आॅफ पुलिस भारती आरोड़ा और डीआईजी के निर्देश के मुताबिक मैंने अजमल अली को कोर्ट से बरी करवा दिया।
आईओ का यह बयान कोर्ट में दर्ज है। सवाल उठता है कि आखिर इतने सीनियर अधिकारियों ने किसके दबाव में पाकिस्तानी नागरिकों को छोड़ा? आखिर बम धमाके के केस में केवल 14 दिन के भीतर पाकिस्तानी नागरिक को बेगुनाह मान कर कैसे छोड़ दिया गया? क्या बम धमाके से जुड़ी कोई जांच 14 दिन में पूरी हो सकती है?