विपुल रेगे। हाल ही में सऊदी अरब के संस्कृति मंत्री बद्र बिन फरहान अल सऊद भारत आए थे। उन्होंने सऊदी और भारत के सांस्कृतिक संबंधों को दृढ़ता देने के लिए भारत की तीन दिवसीय यात्रा की। एक और अरब देश भारत से सांस्कृतिक संबंध बनाना चाहते हैं और दूसरी ओर वहां हमारी फ़िल्में बैन और सेंसर का सामना कर रही है। विजय थलापति की फिल्म बीस्ट को क़तर और कुवैत में बैन कर दिया गया है। अरब देश सांस्कृतिक संबंध चाहते तो हैं लेकिन अपना चिर-परिचित इस्लामिक हिज़ाब उतारना नहीं चाहते।
विजय थेलापति की फिल्म बीस्ट इस्लामिक आतंकवाद पर आधारित है। ये फिल्म देश के सिनेमाघरों में उत्तम प्रदर्शन कर रही है। क़तर और कुवैत में प्रतिबंध के बाद इस फिल्म पर सऊदी अरब में भी प्रतिबंधित करने की मांग लगातार उठाई जाने लगी। खबर है कि सऊदी अरब की सरकार ने बीस्ट के आपत्तिजनक दृश्य हटा दिए हैं।
सऊदी अरब और भारत के सांस्कृतिक संबंधों को खंगाले तो हमें शाहरुख़ खान, सलमान खान और आमिर खान के चेहरे याद आते हैं। शाहरुख़ की आगामी फिल्म पठान के बहुत से हिस्सों की शूटिंग दुबई में की गई है। सलमान खान की बहुत सी फिल्मों की शूटिंग दुबई में की गई थी।
सऊदी अरब के संस्कृति मंत्री बद्र बिन फरहान अल सऊद ने अपनी यात्रा में प्रतिनिधिमंडल ने शाहरुख खान, सलमान खान और अक्षय कुमार सहित बॉलीवुड के प्रमुख अभिनेताओं के साथ-साथ प्रमुख फिल्म प्रोडक्शन हाउस के साथ मुलाकात की। केवल हिन्दी फिल्म उद्योग के चुने हुए निर्माताओं और अभिनेताओं से मुलाक़ात करने का अर्थ यही निकलता है कि अरब देश अपनी इस्लामिक कट्टरपंथी सोच से मुक्त नहीं हो सके हैं।
बीस्ट जैसी फिल्म को सेंसर करना भी यही दर्शाता है। दुबई की सरकार ने दो वर्ष पूर्व से एक फिल्म फेस्टिवल की शुरुआत की है। इस फेस्टिवल में इस बार कबीर खान की 83 का प्रदर्शन किया गया था। रेड सी फिल्म फेस्टिवल में प्रदर्शन के लायक एक ही फिल्म मिली और वह फिल्म कबीर खान की थी। इस फिल्म को फॉरेन फिल्म केटेगरी में रखा गया था।
इसी फेस्टिवल में सत्यजीत रे की फिल्म जॉय बाबा फेलुनाथ का प्रदर्शन किया गया। भारत के भगवानों पर कटाक्ष करती ये फिल्म दुबई के फिल्म फेस्टिवल में क्यों दिखाई गई, इस बारे में तो प्रश्न पूछना ही बेकार है। यदि इसी सोच के साथ सऊदी अरब भारत के साथ सांस्कृतिक संबंध बनाता है तो ये संबंध अधिक नहीं चल सकते।
भारत में तो फिल्म वाले हिन्दू धर्म के विरुद्ध फिल्मे बना डालते हैं लेकिन सरकार इनको कभी प्रतिबंधित नहीं करती। कला के क्षेत्र में इतना कट्टरवाद भारत में नहीं चलता। इस्लामिक कट्टरता के साथ भारत से सांस्कृतिक संबंध भला कैसे बन सकेंगे। मीडिया लिख रहा है कि बद्र बिन फरहान अल सऊद ने भारत आकर सांस्कृतिक संबंध मजबूत किये।
शाहरुख़, सलमान, अक्षय और सैफ अली खान से मिलने भर से सांस्कृतिक संबंध कैसे सुदृढ़ हो जाएंगे ? पाकिस्तान, क़तर, कुवैत और सऊदी अरब को देख भारत में भी विजय थलापति की फिल्म प्रतिबंधित करने की मांग उठाई जा रही है। तमिलनाडु में एमएमके के अध्यक्ष एमएच जवाहिरुल्लाह ने मुख्यमंत्री एमके स्टालिन से विजय की फिल्म ‘बीस्ट’ पर प्रतिबंध लगाने का आग्रह किया है। ये प्रकरण बड़ा रोचक हो चला है।
एक तरफ इस्लामिक देश के मंत्री सांस्कृतिक संबंध स्थापित करने के लिए खान बंधुओं से मिलते हैं। वे दक्षिण के फिल्मकारों और अभिनेताओं से नहीं मिलते। दूसरी तरफ क़तर और कुवैत से प्रेरित होकर भारत के नेता फिल्म पर प्रतिबंध लगाने की मांग करते हैं। यदि स्टालिन बीस्ट पर प्रतिबंध लगा देते हैं तो इसकी नक़ल अन्य राज्यों के मुख्यमंत्री भी कर सकते हैं।
छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, राजस्थान जैसे प्रदेश भी राजनीतिक लाभ कमाने के लिए एक फिल्म निर्माता का पेट काटने में नहीं हिचकेंगे। यदि कुछ राज्यों में फिल्म बैन हो जाती है तो भी हमारी सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया आना बहुत मुश्किल दिखाई देता हैं। फिल्मों, मीडिया और इंटरनेट के लिए जिम्मेदार सूचना व प्रसारण मंत्रालय सन 2014 से ही भारत सरकार का सबसे निष्क्रिय मंत्रालय बन गया है।
सूचना व प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर सरकार के प्रवक्ता बने हुए हैं। वे सरकार के कार्यों का विवरण प्रेस वार्ता लेकर देते हैं। कोई उनको ये बताए कि ये काम एक मंत्री का नहीं है। मंत्री होते हुए उन्होंने अब तक कोई तीर नहीं मारा है। बीस्ट प्रकरण में वे मौन हैं। सूचना व प्रसारण के सबसे निष्क्रिय आठ वर्ष बता रहे हैं कि प्रधानमंत्री ही नहीं चाहते कि इस पद पर बैठा मंत्री क्रांतिकारी निर्णय ले।