ये पीड़ा एक ऐसी महिला की है, जिसे कई वर्षों से प्रताड़ित किया जा रहा है। जब हम इस महिला की कथा पढ़ते हैं तो लगता है, कोई फिल्म देख रहे हो। अस्सी के दशक की ऐसी फिल्म, जिसमे एक महिला एक क्रूर राजनीतिज्ञ द्वारा दी जा रही प्रताड़ना का प्रतिकार करना चाहती है, लेकिन उसके साथ कोई नहीं है। पुलिस राजनेता के कहने पर महिला को तंग करती है। न्यायालय में उसका मामला लटकाया जा रहा है। मीडिया उसके बारे में बात ही नहीं करना चाहता।
इस मुद्दे पर Sandeep Deo का Video
डॉ. स्वप्ना पाटकर मुंबई में मनोविज्ञानी का कार्य करती हैं। बहुमुखी प्रतिभा की धनी डॉ. पाटकर एक अच्छी लेखिका भी हैं और मराठी फिल्म ‘बाळकडू’ का निर्माण भी कर चुकी हैं। ये दुःस्वप्न उस समय शुरु हुआ, जब वे शिवसेना के मुखपत्र सामना के लिए कॉलम लिखने लगी थीं।
लगभग इसी समय पर उन्होंने शिवसेना सुप्रीमो बाला साहेब ठाकरे के जीवन पर एक मराठी फिल्म का निर्माण किया था। उस दौर में संजय राउत और डॉ. स्वप्ना के बीच क्या घटित हुआ, ये तो स्वयं उन्होंने भी नहीं बताया। हालांकि इसी के बाद से उनके जीवन का सबसे बुरा दौर शुरु हो गया।
उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री के नाम एक पत्र लिखकर अपनी व्यथा बताई है। स्वप्ना ने लिखा है कि संजय राउत अपने प्रभाव और पार्टी का इस्तेमाल कर पिछले आठ वर्ष से उन्हें परेशान कर रहे हैं। उन्हें अश्लील गालियां दी जा रही हैं। उन्हें अनजान लोग वीडियो कॉल करके धमकाते हैं। इस बात पर विश्वास करना मुश्किल है कि एक प्रबुद्ध महिला, जो पहचान की मोहताज नहीं है, उनके साथ मुंबई महानगर में इतना कुछ घट जाता है। स्वप्ना ने लिखा है कि
पुलिस से पूछताछ करवा के भी जब संजय राउत की राक्षसी ख़ुशी को संतुष्टि नहीं मिलती तो मुझे परेशान, प्रताड़ित और बदनाम कर के मेरा चरित्र-हनन किया जाता है। वो कहते हैं कि पुलिस के पास जाओगी तो भी कुछ नहीं होगा। 2013 में मेरे ऊपर 2 बार हमला हुआ। जाँच अभी तक चल रही है। कोई आरोपित नहीं मिला। 2014 में ACP प्रफुल्ल भोंसले ने बिना कारण मेरे खिलाफ जाँच शुरू की। मुझ पर संजय राउत से फिरौती माँगने का आरोप लगाया गया। 2015 में मेरा पीछा करना शुरू किया गया। धमकियाँ मिलीं। मैं किससे बात करूँ और किससे नहीं, इस पर नियंत्रण करने की कोशिश की गई। मैं कहाँ जा रही हूँ, क्या कर रही हूँ, संजय राउत का सब पर ध्यान रहता था। मुझे रोज ईमेल भेज कर बताना होता था कि मैं कहाँ गई और किससे मिली। बात न मानने पर पुलिस का नया मामला बन जाता था।
समझा जा सकता है कि स्वप्ना के जीवन में किस कदर भूचाल आया हुआ है। वे स्वयं को असहाय अनुभव कर रही हैं। जब पुलिस ने न सुनी तो कोर्ट की शरण ली। कोर्ट में न्याय नहीं मिला तो महिला आयोग का दरवाज़ा खटखटाया। वहां से भी कोई सहायता नहीं मिली। महिलाओं के लिए आवाज़ उठाने वाला तथाकथित मीडिया ने भी उनकी पीड़ा को स्वर नहीं दिए।
सारे मार्ग बंद हो गए तो उन्होंने अब प्रधानमंत्री को गुहार लगाई है। आप उनकी व्यथा इस बात से समझ सकते हैं कि महाराष्ट्र की बड़ी महिला नेता सुप्रिया सुले से सहायता मांगने के बाद भी कुछ नहीं हुआ। ये एक टिपिकल बॉलीवुड फिल्म की कहानी की तरह है, जो स्वप्ना के दुःस्वप्न के रुप में उभरकर सामने आई है।
रिया चक्रवर्ती के दो घंटे का इंटरव्यू लेकर पुरस्कार प्राप्त करने वाले वरिष्ठ पत्रकार कहाँ हैं। स्वप्ना को उनकी तलाश है। वरिष्ठ पत्रकार को स्वप्ना का ऐसा ही इंटरव्यू लेना चाहिए। रिया को दो घंटे देने वाले श्रीमान स्वप्ना को आधा घंटा तो दे ही सकते हैं। महाअघाड़ी सरकार के दामन पर बहुत से रक्त के छींटे पड़े हुए हैं।
पालघर, सुशांत, दिशा सालियान, कंगना रनौत के साथ डॉ.स्वप्ना को दी जा रही प्रताड़ना भी इस सरकार के खाते में दर्ज हो चुकी है। देखना रोचक होगा कि डॉ. स्वप्ना पाटकर के पत्र पर केंद्र सरकार की क्या प्रतिक्रिया होती है। यदि केंद्र इस मामले में हस्तक्षेप करता है तो मुंबई में रह रही इस महिला के संकट और बढ़ सकते हैं।
उन पर कोई भी केस दर्ज किया जा सकता है। अर्नब गोस्वामी की तर्ज पर उन्हें जेल भी भेजा जा सकता है। कहीं ऐसा तो नहीं कि स्वप्ना ने ये पत्र लिखकर अपने संकटों को और बढ़ा लिया है । स्टेट वर्सेज स्वप्ना के इस युद्ध में केंद्र का हस्तक्षेप अवश्यम्भावी हो गया है।