अंतर्राष्ट्रीय वर्ष 1964 में यूनेस्को द्वारा बनाई गई एक विश्व विरासत दिन घोषित किया गया था ये स्मारकों और महत्वपूर्ण पुरातात्विक महत्व के स्थलों के अंतर्राष्ट्रीय दिवस तय किया गया इसे विश्व विरासत दिवस के रूप में भी जाना जाता है, दुनिया भर में प्रत्येक वर्ष 18 अप्रैल को आयोजित एक अंतर्राष्ट्रीय दिवस है। इसका उद्देश्य मानवता की सांस्कृतिक विरासत की विविधता, उनके संरक्षण के लिए आवश्यक प्रयासों के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देना है।
आज हम धोलावीरा में भारत में यूनेस्को की विश्व विरासत के 50 वर्ष पूरे होने का जश्न मना रहे हैं, हम हड़प्पा सभ्यता और राखीगढी हरियाणा के उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य के पुरातात्विक स्थलों के संरक्षण पर प्रसन्नता व्यक्त करते है ये संपूर्ण मानवता की थाती है , जो हमें अपने स्वर्णिम अतीत से रूबरू करवाती है ।
हिन्दू संघर्ष समिति के अध्यक्ष श्री अरुण उपाध्याय ने कहा कि हमारे पड़ोसी देश श्रीलंका में उल्टी गंगा पहाड़ चढ़ रही है ये गहरे दुख और चिंता का विषय है कि श्रीलंका में विरासत के नाम पर हिंदुओं के साथ क्या हो रहा है वहॉं पर दुर्भावनापूर्ण तरीक़े से प्राचीन हिन्दू मानबिंदुओं व मंदिरों को पुरातात्विक उत्खनन के नाम पर एक सॉंस्कृतिक नरसंहार की भेंट चढ़ाया जा रहा है । ये आने वाली पीढ़ियों को विश्व विरासत से वंचित करने का कदम है , जिसके दूरगामी नुक़सान होगें ।
यूनेस्को कन्वेंशन के तहत, ‘सांस्कृतिक स्थलों के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करने’ के बजाय, कट्टरपंथी बौद्ध भिक्षुओं (राज्य के संस्थागत समर्थन के साथ) ने श्रीलंका के उत्तर-पूर्व में हाल के वर्षों में पारंपरिक रूप से पूजे जाने वाले हिंदू मंदिरों को व्यवस्थित रूप से नुकसान पहुँचाया, नष्ट किया, नाम बदला और कभी-कभी पूरे मूल स्वरूप को ही परिवर्तित कर दिया है . हम विश्व विरासत दिवस के अवसर पर श्रीलंका सरकार के ऐसे कुत्सित प्रयासों को एक असहनीय सांस्कृतिक अपराध मानते है तथा इस दुर्भावनापूर्ण कृत्य की कड़ी निंदा करते है और भारत सरकार से इस मामले में हस्तक्षेप की माँग करते है । एक पूजा स्थल की रक्षा करना, आसपास रहने वाले लोगों को अपनी प्रथाओं को जारी रखना, अपनी संस्कृति, परंपराओं और विविधता को बनाए रखना मानवीय गरिमा है।
उल्लेखनीय है कि श्रीलंका अपने सबसे खराब आर्थिक संकट से गुजर रहा है और भारत अपनी पड़ोसी प्रथम नीति के तहत उसका सबसे बड़ा मददगार है यह जोर देने योग्य है कि भारत ने पिछले साल एक दिवालिया श्रीलंका कोवापसी करने में मदद की और फिर भी भारत द्वारा प्रदान की गई संजीवनी बूटी के साथ, श्रीलंका के पुरातत्व विभाग और सेना ने व्यवस्थित तरीके से पूजा के हिंदू धार्मिक स्थलों को तोड़ना जारी रखा है। हाल के दिनों में श्रीलंका का पुरातत्व विभाग यह दिखाने का प्रयास कर रहा है कि कोई भी पुराना ऐतिहासिक स्थल/स्मारक केवल सिंहल-बौद्ध का ही है।
श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे के भारत दौरे के फैसले के बीच इस मुद्दे को लेकर दुनिया भर के हिंदू संगठनों में जबरदस्त रोष है।हिन्दू संघर्ष समिति की प्रतिनिधि दीक्षा कौशिक ने ने कहा कि “श्रीलंका में मौजूदा आर्थिक संकट के दौरान, भारत अपने सबसे बड़े सहयोगी और दाता के रूप में सामने आया है, इस अवधि के दौरान भी कि अगर श्रीलंकाई सरकार वहां हिंदू मंदिरों को नष्ट कर रही है, तो यह कदम देश के लिए घातक दृष्टिकोण है।दोनों देशों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों के लिये भी ये एक प्रतिगामी कदम है ॥ ईश्वर श्रीलंका की सरकार को सदबुध्दि दे , जिससे वो ऐसे कामों से बाज़ आयें ॥
अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को श्रीलंका में विरासत संरक्षण और संबंधित बहुमुखी परियोजनाओं के लिए अपने अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और वित्तीय सहायता की समीक्षा करनी चाहिए। इसके अलावा पर्यटक एजेंसियों और द्वीप राष्ट्र की यात्रा करने वालों को भारतीय व अंतर्राष्ट्रीय पर्यटको को भी श्रीलंका के अन्य समुदायों और धर्मों के खिलाफ इस राज्य प्रायोजित अत्याचारों पर ध्यान देना चाहिए।
पेरिस क्लब जैसे दाता देशों और आईएमएफ जैसे संस्थानों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि श्रीलंका को आवंटित धन का पारदर्शिता के हिस्से के रूप में सावधानी पूर्वक लेखापरीक्षा की जानी चाहियें और प्रदान की गई सहायता धनराशि को सैन्य और पुरातत्व विभाग के लिए सरकारी धन को जारी न करके राहत कार्यों पर खर्च किया जाना चाहियें ।इससे श्रीलंका सरकार विश्व समुदाय को मूर्ख नहीं बना पायेगी ।
इसके अलावाहिन्दू संघर्ष समिति के प्रतिनिधि ने कहा कि “राज्य प्रायोजित, सिंहल-बौद्ध उपनिवेशवाद का सुदृढीकरण श्रीलंका के लोकतांत्रिक व बहुलतावादी समाज के लिये ख़तरा है इसलिए श्रीलंका के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में जनसांख्यिकीय परिवर्तन, विशेष रूप से युद्ध के बाद की अवधि (2009) गंभीर चिंता का विषय है।
स्थानीय आबादी और भारत की सुरक्षा के लिए भी ये एक बड़ी सुरक्षा चेतावनी व चुनौति है इस प्रकार की कार्रवाइयाँ बहुपक्षीय समझौते के हिस्से के रूप में युद्ध के बाद के सुलह और उत्तरदायित्व के श्रीलंका और श्रीलंका के सच्चे इरादे पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के संकल्प 2023 के कार्यान्वयन को बाधित करती हैं।
विश्व विरासत दिवस के इस अवसर पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय और भारत को प्राथमिकता के मामले में इन पर ध्यान देना चाहियें तथा इसमें तत्काल प्रभाव से हस्तक्षेप करना चाहिये।