जब भारत पर से अंग्रेज़ी शासन हटने की बात आती है, तो अधिकांश लोगों के ज़ेहन में गांधी की छवि उतर आती है. और ऐसा होना लाज़िमी भी है. जितनी भी स्कूली पुस्तकों में स्वतंत्रता आंदोलन का वर्णन है, सभी में गांधी को महात्मा का चोला पहनाकर आवश्यकता से अधिक महिमामंडित कर दिया गया है.बल्कि पूरे स्वतंत्रता आंदोलन को सिर्फ गांधी से जोड़ कर ही देखा गया है. और गांधी को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का महानायक बनाने के चक्कर में देश को स्वतंत्रता दिलाने में जिन महान हस्तियों का गांधी के बराबर, बल्कि शायद उनसे भी ज़्यादा योगदान रहा है, उन्हे बिलकुल नज़रंदाज़ कर दिया गया है.
भारतीय इतिहास की किताबों में स्वतंत्रता की एक बड़ी ही सतही सी कहानी गड़ी गयी है कि भारत क स्वतंत्रता आंदोलना मूलतया: अहिंसा से प्रेरित था जिसे गांधी ने संचालित किया और आम लोगों को इस आंदोलन का हिस्सा बनने के लिये प्रेरित किया और इसीलिये भारत को आज़ादी मिली, बस कहानी खत्म.
लेकिन वास्तविकता यह है कि सुभाष चंद्र बोस जैसी शख्सीयत का भारत को स्वतंत्रता दिलाने में गांधी से कहीं अधिक योगदान था. बल्कि ऐसा कहना अतिश्योक्ति नही होगी कि भारत में ब्रिटिश शासन के खात्मे की मुख्य वजह गांधी नहीं बल्कि बोस थे.
बाबासाहब अंबेडकर ने 1955 में बी बी सी को दिये गये एक इंटरव्यू में यह स्पष्ट तौर पर कहा कि भारत को स्वतंत्रता दिलाने का मुख्य श्रेय गांधी को नही बल्कि आज़ाद हिंद फौज के संचालक सुभाष चंद्र बोस को जाता है. स्वराज मैगज़ीन में इस विषय से संबंधित एक लेख प्रकाशित हुआ था और इस लेख में बी बी सी के उस पुराने इंटरव्यू पर बने एक वीडियो का लिंक भी दिया गया है.
इंटरव्यू में अंबेडकर ने कहा कि गांधी को लेकर जो भी महानता का ताना बना बुना गया है, वह सब एक कहानी है, उसमे सच्चाई का लेश मात्र भी अंश नहीं है. गांधी अपनी छवि को लेकर बहुत सजग रहते थे या फिर यू भी कह सकते हैं कि यह छवि ही उनके लिये सब कुछ थी. इस छवि के चक्कर में ही उन्होने खुद को अंग्रेज़ी शासन के सामने खुद को प्रगतिशील, जांत पांत न मानने वाला दिखाया जबकि उनका वास्तविक व्यक्तित्व इसके बिल्कुल विपरीत था.
फिर आगे के इंटरव्यू में अंबेडकर विस्तार से बताते हैं कि किस प्रकार अंग्रेज़ों के अंतत: भारत छोड़्ने के पीछे गांधी कोई इतना बड़ा कारण नहीं हैं जितना कि बताया जाता है. उनके अनुसार अंग्रेज़ों के भारत को आज़ादी देने के फैसले की वजह नेताजी सुभाष चंद्र बोस और उनके द्वारा खड़ी की गई आज़ाद हिंद फौज थी.
अंग्रेज़ जानते थे कि भारत में भर भरकर, बड़ी मात्रा में गोरों की सेना लायें, ऐसा बिल्कुल संभव नहीं है. इतनी बड़ी संख्या में अपनी सेना उनके पास थी ही नहीं. इसीलिये वे भारत पर अपने हुकूमत कायम रखने के लिये पूरी तरह से उन भारतीय सैनिकों पर आश्रित थे जो अंग्रेज़ी सेना का हिस्सा था. भारतीय सैनिक कभी विद्रोह नहीं करेंगे, ऐसा उनका विश्वास था. लेकिन इस प्रकार सुभाषचंद्र बोस के नेतृत्व में आज़ाद हिंद फौज के खड़े होने के बाद से उन्हे डर सताने लगा कि कहीं सारी भारतीय सेना विद्रोह कर बैठी तो. अंबेडकर के बी बी सी को दिये गये इंटरव्यू के अनुसार शायद यही वजह थी कि अंग्रेज़ों ने आखिरकार भारत को आज़ादी देने का फैसला कर लिया.
सुभाषचंद्र बोस का जो भारत की स्वतंत्रता के प्रति योगदान रहा है, उस विषय पर मीडिया बिरले ही कोई चर्चा करता है. भारत का लेफ्ट लिबरल मीडिया जहां एक तरफ गांधी को इतना अधिक महत्व देता है कि उसे एक तरह से भारत का पर्याय ही बना देता है, वहीं दूसरी तरफ बोस जैसे व्यक्तित्व के लिये कहने लायक इस मीडिया के पास कुछ भी नही होता.
एक सच्चाई यह भी है कि आज़ाद हिंद फौज के सैनिकों के साथ अंग्रेज़ों ने क्रूरतापूर्ण, बर्बर बर्ताव किया था. भारत की धरती पर अंग्रेज़ों ने 25 सितम्बर 1945 की रात को कुछ जलियावालां बाग जैसा ही दृश्य दोहराया था. पश्चिम बंगाल के नीलगंज इलाके में अंग्रेज़ी सेना ने आज़ाद हिंद फौज के करीब 2,300 सैनिकों पर मशीनगन चलाकर उनकी निर्मम हत्या कर दी. और हैरानी की बात तो यह है कि जिस प्रकार से मीडिया जलियावालां बाग की त्रासदी के बारे में बात करता है, उस प्रकार से इस घट्ना के बारे में बिल्कुल नही करता. यह घटना लिखित इतिहास की सुर्खियों में दर्ज ही नही हो पाई.
आज़ादी के बाद इसी स्थल पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का सेंट्रल इंस्टीट्यूट फांर जूट एंड अलाइड रिसर्च खुल गया. अभी हाल ही में बनारस की सुभाष संस्था के महासचिव तमल सान्याल ने इस इंस्टीट्यूट के भीतर जाकर आजाद हिंद फौज के शहीदों को श्रद्धांजलि देने हेतु और आम जन मानस को इस घटना के विषय में बताने हेतु एक छोटा सा कार्यक्रम आयोजित करने की अनुमति मांगी थी. लेकिन इंस्टीट्यूट ने अनुमति नहीं दी, उन्होने कहा कि इसके लिये केंद्रीय गृह मंत्रालय से बात करें.
तो इस प्रकरण से एक बात तो बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है. वह यह कि सुभाष चंद्र बोस की लीगेसी यानि विरासत को न तो इतिहास के लिखित दस्तावेज़ों में और न ही देश के बौद्धिक गलियारों में और यहां के आफिशियल स्पेस में उस प्रकार की तवज्जो मिली है, जैसे कि मिलनी चाहिये थी.
इसीलिये सुभाष चंद्र बोस ने देश के स्वतंत्रता में जो अहम योगदान दिया है, इस विषय पर और अधिक लेखनी की आवश्यकता है. और ये सभी लेखनी आम लोगों के बीच पहुंचनी चाहिये. गांधी को लेकर देश के मीडिया, सरकारी संस्थान , बौद्धिक वर्ग, आदि ने जो इतने सालों से इमेज बिल्डिंग की है, अब समय आ गया है कि उस प्रकार का काम सुभाषचंद्र बोस को लेकर किया जाये.
https://swarajyamag.com/politics/bose-not-gandhi-ended-british-rule-in-india-ambedkar
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