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संसद, न्यायपालिका और नौकरशाही

Supreme Court Abortion: आर्टिकल 21 कैसे हार गया और अजन्मा बच्चा जिंदगी की कानूनी जंग जीत गया, इनसाइड स्टोरी

Courtesy Desk
Last updated: 2023/10/17 at 11:33 AM
By Courtesy Desk 122 Views 5 Min Read
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Supreme Court में चल रहे एक महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई के बारे में आप कई दिनों से पढ़ रहे होंगे। मां गर्भपात कराना चाहती थी लेकिन डॉक्टरों की रिपोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया। मां की दलील थी कि यह उसका अधिकार है। हालांकि कोर्ट ने अजन्मे बच्चे के हित में फैसला दिया। इस दिलचस्प कानूनी लड़ाई के बारे में 

देश में इस समय सुप्रीम कोर्ट से आए एक महत्वपूर्ण फैसले की काफी चर्चा है। जी हां, Supreme Court ने एक विवाहित महिला को उसके 26 हफ्ते के गर्भ को गिराने की अनुमति देने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि उसका भ्रूण स्वस्थ है और एम्स के मेडिकल बोर्ड को उसमें कोई विसंगति नहीं दिखी है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि महिला का गर्भकाल 24 हफ्ते से ज्यादा समय का हो गया है जो चिकित्सकीय गर्भपात की अनुमति की अधिकतम सीमा है। महिला के लिए तत्काल कोई खतरा नहीं है। ऐसे में गर्भ गिराने की अनुमति नहीं दी जा सकती। एडवोकेट पूर्णिमा सिंह ने बताया कि इस फैसले का क्या असर होगा। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय उन मामलों के लिए महत्वपूर्ण होगा जहां पर महिलाएं 24 हफ्ते के ऊपर की प्रेगनेंसी का टर्मिनेशन चाहती हैं। कारण उनकी मानसिक बीमारी हो सकती है या वो कहती हैं कि बच्चे को जन्म देना- न देना उनका चॉइस है। इसलिए वो इस पिटीशन के जरिए आर्टिकल 32, 22-26 के अंदर मांग करती हैं कि उन्हें टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी चाहिए क्योंकि वह इस स्थिति में नहीं हैं कि इस बच्चे को रख सकें।

महिला को अधिकार है गर्भ रखे या…

  • एडवोकेट पूर्णिमा ने कहा कि यहां सुप्रीम कोर्ट के सामने बड़ा मुद्दा था। यह प्रेग्नेंसी 24 हफ्ते से ऊपर चली गई थी। अब हमारा जो कानून है वह 24 हफ्ते तक गर्भपात कराने का अधिकार देता है। कानून महिला को इस दौरान पूरा अधिकार देता है कि वह तय कर सकें कि बच्चे को रखना है या नहीं।
  • अगर 24 हफ्ते से ऊपर यानी 26 वीक या 28 वीक के केस आते हैं, जहां गर्भ में पल रहे शिशु के लाइफ की उम्मीद ज्यादा बढ़ती जाती है तो वहां पर Supreme Court के सामने महत्वपूर्ण सवाल आया कि हम क्या करें? क्या हम महिला के आर्टिकल 21- राइट टू लाइफ को मानें जिसके तहत महिला कहती है कि उसके पास अधिकार है कि वह बच्चे को रखे या नहीं, या उस अजन्मे बच्चे को रखना है जहां इस केस में मेडिकल एक्सपर्ट की राय आई कि जो बच्चा है उसकी लाइफ है, वो लिविंग भ्रूण है। वह अगर बाहर आएगा तो बहुत चांसेज इस बात के हैं कि वह जिंदा रहेगा।

हार्ट को रोकना ठीक नहीं

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  • Supreme Court ने कहा कि आर्टिकल 21 का जो अधिकार है, वह कोई पूर्ण अधिकार नहीं है उसे कम किया जा सकता है, अगर सामने वाला ‘बैलेसिंग ऑफ इंट्रेस्ट’ में बात करे कि एक बच्चे का इंट्रेस्ट है कि वह इस पोजीशन में है कि उसे अगर बाहर निकाला जाए तो वह जिंदा बच्चा होगा। तो क्या उसके हार्ट को रोकना सही होगा? या फिर आर्टिकल 21 में उस महिला के अधिकार को बरकरार रखना ही सही होगा?
  • Supreme Court ने अपने फैसले में दोनों ही अधिकारों को (एक मां और शिशु) बैलेंस किया है। यह फैसला किसी के खिलाफ नहीं है। न ही मां के खिलाफ है और न ही बच्चे के बहुत पक्ष में है।
  • Supreme Court ने यह कहते हुए फैसले को बैलेंस किया है कि क्योंकि वीक्स नजदीक आते चले जा रहे हैं, बच्चे की ग्रोथ होती चली जा रही है, बच्चा एक लिविंग कंडीशन में है, बच्चे में कोई विसंगति नहीं है, इस स्थिति को देखते हुए प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट करने से मना किया है।

साभार

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TAGGED: Abortion, Supreme Court, Supreme Court Abortion, supreme court decision hindi, Supreme Court news, Supreme Court Of India
Courtesy Desk October 17, 2023
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