सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरूण मिश्रा ने केरल हाईकोर्ट के आदेश पर कड़ी आपत्ति जताई है। हाईकोर्ट का यह आदेश सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन बताया गया है।
केरल के एक चर्च से संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस अरूण मिश्रा इस कदर नाराज हुए कि उन्होंने ओपन कोर्ट में आदेश पारित करने वाले केरल हाईकोर्ट के उस जज का नाम लेने से भी कोताही नहीं बरती।
जस्टिस मिश्रा ने कहा, “यह बेहद आपत्तिजनक आदेश है। कौन यह हैं जज? उनका नाम जोर से बोला जाए। सभी लोगों को उनका नाम जानना चाहिए। वह किस तरह के जज हैं।”
जस्टिस मिश्रा ने हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के विपरीत है। उन्होंने कहा कि न्यायिक अनुशासनहीनता बढ़ रही है। जस्टिस मिश्रा ने अपनी नाराजगी जताते हुए कहा, “हाईकोर्ट को सुप्रीम कोर्ट के आदेश को बदलने का कोई अधिकार नहीं है। यह न्यायिक अनुशासनहीनता की इंतहा है। जज से कहा जाए कि केरल भी भारत का हिस्सा है।”
जस्टिस मिश्रा ने ये टिप्पणी सेंट मेरी ऑर्थोडॉक्स सीरियन चर्च के प्रतिनिधि फादर इसेक माटेमल्ल कोर इपिसकोपा द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई केदौरान की। उन्होंने केरल हाईकोर्ट द्वारा गत आठ मार्च के एक आदेश को चुनौती दी थी।
याचिकाकर्ता ने केरल हाईकोर्ट में याचिका दायर कर गुहार की थी कि प्रतिवादी या किसी अन्य पादरी (जो १९३४ मलंकारा चर्च संविधान के तहत नियुक्त न हुए हो) को चर्च में किसी तरह की धार्मिक गतिविधियोंं को अंजाम देने से रोका जाना चाहिए। याचिकाकर्ता ने इस संबंध में वर्ष २०१७ में दिए सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का हवाला भी दिया था।
उनका कहना था कि चर्चा में सामान्तर सेवा की अनुमति नहीं दी जा सकती। उन्हें ही चर्च में सेवा की अनमुति दी जा सकती है जो मलंकारा चर्च संविधान के अनुरूप हो। उनका कहना था कि वादी व प्रतिवादी गुट को चर्च में बारी-बरी से सेवा देते थे और लंबे समय से ऐसा हो रहा है।
दोनों पक्षों को सुनने केबाद हाईकोर्ट ने नोटिस जारी करते हुए तीन हफ्ते तक यथास्थिति बरकरार रखने के लिए कहा था। हाईकोर्ट केइस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को हाईकोर्ट केआदेश को दरकिनार कर दिया