आईएसडी नेटवर्क। तमिलनाडु के पलानी मंदिर को लेकर मद्रास उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है। मद्रास उच्च न्यायालय ने अपने ताज़ा आदेश में कहा है कि ये मंदिर पिकनिक मनाने का स्थान नहीं है। कोर्ट ने कहा है कि मंदिर के ध्वज स्तंभ से आगे गैर-हिन्दुओं को जाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। कोर्ट ने इस मामले में सख्ती दिखाते हुए मंदिर के प्रवेश द्वार पर सूचना संबंधित बोर्ड लगाने का भी आदेश दिया है। हालांकि अयोध्या के राम मंदिर में तो विधर्मियों को आसानी से प्रवेश दिया जा रहा है। मंगलवार को लगभग 350 मुस्लिम रामलला के दर्शन को अयोध्या पहुंचे। इसे धार्मिक सद्भाव का नाम दिया जा रहा है।
तमिलनाडु के पलानी में पलानी हिल टेम्पल डिवोटीज ऑर्गनाइजेशन के संयोजक डी सेंथिलकुमार ने कोर्ट में याचिका लगाई थी। ये याचिका गैर हिन्दुओं के प्रवेश को लेकर लगाए गए डिस्प्ले बोर्ड को लेकर लगाई गई थी। ये मंदिर एक पहाड़ी पर स्थित है और बहुत से गैर हिन्दू यहाँ पर्यटन के लिए आ जाते हैं। इस समस्या से निबटने के लिए मंदिर में डिस्प्ले बोर्ड लगाए गए थे। ये बोर्ड कुछ समय पूर्व हटा दिए गए। इसके बाद डी सेंथिलकुमार पूर्व स्थिति कायम रखने के लिए याचिका लगा दी।
तमिलनाडु के पलानी मंदिर से मामले में मद्रास हाईकोर्ट ने कहा है कि ध्वजस्तंभ से आगे गैर-हिंदुओं को प्रवेश की अनुमति नहीं दी जा सकती। मद्रास उच्च न्यायालय ने मंदिर के प्रवेश द्वार पर बोर्ड लगाने का निर्देश भी दिया। राज्य सरकार को निर्देश के साथ-साथ अदालत ने मंदिर से जुड़े अधिकारियों को भी निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि रीति-रिवाजों और प्रथाओं के अनुसार मंदिर का रखरखाव होना चाहिए।
हाईकोर्ट ने कहा कि मंदिर संविधान के अनुच्छेद 15 के तहत नहीं आते। ऐसे में गैर-हिंदुओं के प्रवेश पर लगाए गए प्रतिबंध को अनुचित नहीं माना जा सकता। न्यायामूर्ति श्रीमथी की एकल पीठ में सुनवाई के बाद मंदिर परिसर के भीतर गैर-हिंदुओं और हिंदू मान्यताओं का पालन नहीं करने वाले लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाते हुए बैनर दोबारा लगाने का आदेश दिया। प्रतिबंध केवल ध्वजस्तंभ तक ही लागू है। उल्लेखनीय है कि गैर-हिंदुओं को दर्शन करने से पहले पंजीकरण कराना होता है। मंदिर में दर्शन का बोलने के बाद प्रवेश की अनुमति मिलती है।
याचिका के विरोध में कई तर्क दिए गए थे। ये कहा गया कि भगवान मुरुगन के तीसरे निवास के रूप में पलानी मंदिर का वर्णन होता है। यहां की पूजा न केवल हिंदू समुदाय के लोग, बल्कि देवता में विश्वास करने वाले गैर-हिंदू भी करते थे।यह भी तर्क दिया गया कि एक धर्मनिरपेक्ष सरकार होने के नाते, मंदिर में प्रवेश सुनिश्चित करना राज्य और मंदिर प्रशासन का कर्तव्य है।
अदालत में इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 25 का हवाला दिया गया था और कहा गया था कि नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है। कोर्ट ने इस पर कहा कि संविधान सभी नागरिकों को अपने धर्म का पालन करने और उसे मानने का अधिकार देता है। हालांकि, इन अधिकारों का इस्तेमाल कर संबंधित धर्म के रीति-रिवाजों और प्रथाओं में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता।
मंगलवार को अयोध्या में राष्ट्रीय मुस्लिम मंच लगभग 350 मुस्लिमों को लेकर राम लला के दर्शन के लिए पहुंचा था। यदि इस मामले को मद्रास हाई कोर्ट के निर्णय से जोड़कर देखा जाए तो एक तरफ न्यायालय मंदिरों को लेकर एक शुचिता का निर्माण करना चाहता है, तो केंद्र सरकार अपने वोट बैंक और अपने मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए मंदिर का इस्तेमाल कर रही है। मद्रास उच्च न्यायालय के निर्णय को अविलंब देश के सभी राज्यों में लागू करने की आवश्यकता दिखाई देती है।