विपुल रेगे। महान राजा भोजदेव चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य के वंशज थे। उनका जन्म 980 ईस्वी में उज्जयिनी में हुआ था। पंद्रह वर्ष की आयु में ही भोज का राज्याभिषेक मालवा के सिंहासन के लिए हुआ था। अल्प आयु में सम्राट बनने के बाद भोज चारों ओर से शत्रुओं से घिरे हुए थे। अपितु शूरवीर भोज ने सबको युद्ध में पराजित किया। उत्तर में तुर्कों को, दक्षिण में विक्रम चालुक्य, उत्तर-पश्चिम में राजपूती सामंत, तेलंगाना के तेलप और तिरहुत के गांगेयदेव को उन्होंने हराया था।
भोज पर किये गए विभिन्न शोध बताते हैं कि उनका साम्राज्य मध्यभारत से लेकर केरल के समुद्र तट तक था। उन्होंने अपने शासन काल में कई मंदिरों का निर्माण करवाया। उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर, विश्व प्रसिद्ध भोजपुर का मंदिर, धार की भोजशाला और भोपाल के विशाल तालाब का निर्माण भोज ने ही करवाया था। जब मेहमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर तोड़ा तो भोज बहुत क्षुब्ध हुए।
उन्होंने सन 1026 में गजनवी पर आक्रमण किया। इस आक्रमण से घबरा कर गजनवी सिंध के रेगिस्तान की ओर भाग निकला था। तब राजा भोज ने हिन्दू राजाओं की सैन्य सहायता लेकर बहराइच में गजनवी के पुत्र सालार मसूद को मारकर सोमनाथ का प्रतिशोध लिया था। अपने शासन के अंतिम वर्षों में भोजदेव को गुजरात के चालुक्य और चेदी नरेश ने संयुक्त रुप से पराजित कर दिया।
इसके बाद भोज की मृत्यु हो गई। भोज का निधन होते ही उनका राज्य असुरक्षित होने लगा था। जब तक वे जीवित थे, इस्लामिक आक्रमणों से उनका राज्य सुरक्षित था। भोज की मृत्यु के लगभग 200 वर्ष पश्चात तक इस्लामिक शासकों ने धार को जीतने के षड्यंत्र शुरु कर दिए थे। सन 1269 में कमाल मौलाना नामक एक मुस्लिम फ़क़ीर धार आया। कमाल यहाँ 36 वर्ष तक रहा।
इन सालों में उसने धार की ओर आने वाले सभी गुप्त रास्तों की जानकारी एकत्र की। उसने इस्लाम का जबरदस्त प्रचार किया और सैकड़ों हिन्दुओं को मुस्लिम बना दिया। 36 वर्ष तक यहाँ रहकर उसने जो जानकारी एकत्र की, सभी अलाउद्दीन खिलजी को दे दी। इसके बाद खिलज़ी ने सन 1305 में योजनाबद्ध ढंग से धार पर आक्रमण कर दिया।
जब रक्त में डूबी थी भोजशाला
कमाल मौलाना द्वारा वर्षों तक हिन्दुओं को बलहीन करने के बाद सन 1305 में अलाउद्दीन खिलजी ने मालवा पर आक्रमण किया। खिलजी का उद्देश्य स्पष्ट था कि वह हिन्दुओं के मानबिन्दुओं पर घात करना चाहता था। भोजशाला हिन्दुओं का मानबिंदु ही थी। जब खिलजी की सेना ने भोजशाला में विध्वंस शुरु किया तो भोजशाला के आचार्य और विद्यार्थियों ने आगे बढ़कर सेना का प्रतिकार किया।
खिलजी ने भोजशाला के 1200 आचार्यों को बंदी बनाया और उनसे इस्लाम स्वीकार करने के लिए कहा। इस्लाम बनने के प्रस्ताव को आचार्यों और विद्यार्थियों ने अस्वीकार कर दिया। इसके बाद गुस्से में आकर खिलजी ने सभी 1200 आचार्यों को काट कर फेंकने का आदेश दिया। उन 1200 आचार्यों के रक्त से भोजशाला के अग्निकुंड की मिटटी सन गई थी। कुछ ऐसे भी थे जो मृत्यु के भी मुसलमान बन गए।
अलाउद्दीन खिलजी के बाद दिलावर खान गोरी फिर महमूद शाह खिलजी ने भी भोजशाला के अभिन्न चित्रों शिलालेखों मूर्तियों व वास्तु का कई बार विध्वंस किया। खिलजी ने एनुलमुल्क नामक विश्वासपात्र को उज्जैन, धार और मांडू पर आक्रमण की ज़िम्मेदारी दी थी। मालवा का राय महलक देव और कोका प्रधान खिलजी की सेनाओं के आगे नहीं टिक सके। उनकी नृशंस हत्या कर दी गई।
23 नवंबर 1305 तक खिलजी ने धार के साथ मांडू पर भी कब्ज़ा कर लिया था। कमाल मौलाना की मृत्यु के 204 वर्ष बाद भोजशाला के पास ही उसकी एक कब्र बनाकर इसे दरगाह का रुप दे दिया गया। रक्त पिपासु खिलजी की सोच सनातन विरोधी थी। वह कभी हिन्दुओं का हितैषी नहीं रहा था।
एक बार दिल्ली में उसने काज़ी से वार्तालाप के दौरान कहा था कि ‘ऐ मौलाए-मुगीस तू बड़ा दानिशमंद है लेकिन तुझे कोई तजुर्बा नहीं है। मैं पढ़ा-लिखा नहीं हूँ लेकिन मुझे तजुर्बा बड़ा है। तू समझ ले कि हिंदू उस समय तक मुसलमान का आज्ञाकारी नहीं होता जब तक वह पूरी तरह गरीब और दरिद्र नहीं हो जाता। मैंने यह हुक्म दिया है कि अवाम के पास सिर्फ इतना ही धन रहने दिया जाए जिससे वह हर साल खेती, दूध और मट्ठे के लिए ही काफी हो और अधिक धन-संपत्ति इकट्ठी न कर पाएँ।’
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