अर्चना कुमारी। राजस्थान के जालोर जिले के दलित छात्र की मौत मटके का पानी नहीं पीने देने जाने को लेकर छुआछूत के चलते नहीं हुई थी। बल्कि बताया जाता है कि दलित छात्र का एक अन्य स्कूली बच्चे के साथ विवाद हुआ था। जिसके बाद आरोपी टीचर छैल सिंह राजपूत दोनों बच्चों को एक – एक थप्पड़ जमा दिया था । इसके बाद दलित बच्चा अचानक स्कूल जाना छोड़ दिया और बाद में उसकी बीमारी से मौत हो गई थी । सूत्रों का कहना है कि बच्चों के बीच मामूली मारपीट की घटना को जानबूझकर छुआछूत और जातिवाद से जोड़ा गया ताकि इसके नाम पर राजनीति चमकाया जा सके।
हत्या के आरोप में आरोपी शिक्षक जेल जा चुका है जबकि उसके खिलाफ हत्या समेत एससी /एसटी एक्ट में मुकदमा दर्ज किया जा चुका है जबकि दलित वर्ग आरोपी शिक्षक को फांसी दिए जाने की लगातार मांग कर रहा है । इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए स्कूल परिवार संघ के प्रदेश अध्यक्ष अनिल शर्मा का कहना है कि दलित बच्चे की मौत दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन इसे छूआछूत से जोड़ना और जातिवाद का रूप देना सही नहीं है।
मटकी से पानी पीने वाली बात पूरी तरह से झूठ और मनगढ़ंत है। सूत्रों का कहना है कि जिस स्कूल में यह घटना हुई ,वहां पर कोई मटका मौजूद नहीं था। सभी बच्चे एक ही टैंक से पानी पीते हैं। दो बच्चों की लड़ाई में शिक्षक ने दोनों बच्चों की मामूली पिटाई अवश्य की थी। मरने वाला बच्चा पहले से भी बीमार था, 20 दिन बाद जब मौत हुई तब दूसरा एंगल दिया गया। दलित छात्र और मृतक इंद्र कुमार के स्कूल में पढ़ाने वाले दलित शिक्षक गटाराम मेघवाल ने जातिगत कनेक्शन को नकारा है और उनका कहना है कि वह 5-6 साल से स्कूल में पढ़ा रहे हैं। कभी उन्होंने जातिगत भेदभाव नहीं देखा।
उन्होंने कहा कि पानी के लिए टंकी लगी है,वहीं सब पानी पीते हैं और अलग से घड़ा नहीं है। गौरतलब है कि जिस स्कूल में यह मामला हुआ, वहां कुल 8 शिक्षक तैनात हैं। इनमें से 6 शिक्षक दलित वर्ग के हैं। इस स्कूल में करीब 300 छात्र-छात्राएं हैं, जिनमें से 50 प्रतिशत दलित वर्ग से हैं। ऐसे में छूआछूत और जातीय भेदभाव का आरोप जानबूझकर लगाया गया ,ऐसा प्रतीत होता है। मृतक इंद्र मेघवाल के सहपाठी और अन्य कई स्कूली छात्र कह रहे हैं कि स्कूल में सब एक ही स्थल से पानी पीते हैं।
चाहे टीचर हो या बच्चे जबकि पानी की मटकी तो स्कूल में है ही नहीं। जब आरोपी टीचर को पकड़ा गया तब उसका भी कहना था कि स्कूल में कोई मटका नहीं था और दो बच्चों के विवाद में उसने एक थप्पड़ दलित छात्र को अवश्य लगाई थी लेकिन उसे क्या पता था कि बच्चे की मौत हो जाएगी। सच्चाई सामने आने के बाद अब जालोर से भाजपा विधायक और विधानसभा में भाजपा के सचेतक जोगेश्वर गर्ग ने कहा है कि इंद्र मेघवाल की मौत के मामले में जातिगत बयान देना ठीक नहीं है। उनके अनुसार छात्र की मौत पर राजनीति हो रही है।
स्कूल में मटकी से पानी पीने की बात पर फिलहाल संदेह है क्योंकि मटका वहां था नहीं । शिक्षक द्वारा मारपीट की गई होगी लेकिन यह मारपीट मटके से पानी पीने के चलते नहीं हुई है। वैसे इसकी जांच पुलिस कर रही है। जांच रिपोर्ट आने से पहले जातिगत बयान देकर वैमनस्य फैलाना या सामाजिक सौहार्द बिगाड़ना ठीक नहीं है। विधायक गर्ग ने कहा कि जिस स्कूल में यह घटना हुई, उसके दो पार्टनर हैं। एक राजपूत जबकि दूसरा मोची है। स्कूल का आधे से ज्यादा स्टाफ एससी-एसटी है। इनमें मेघवाल, मोची और भील भी शामिल हैं।
स्कूल में अध्ययनरत अधिकतर छात्र-छात्राएं भी अधिकतर एससी-एसटी हैं। इस घटना को लेकर जालोर के एसपी हर्षवर्धन अग्रवाल का कहना है कि आरोपी टीचर के खिलाफ मर्डर और एससी/ एसटी एक्ट में मामला दर्ज कर टीचर को गिरफ्तार कर लिया गया है लेकिन मटकी वाली बात की अभी पुष्टि नहीं हुई है। स्कूल में पानी की एक बड़ी टंकी है। जहां सारे लोग पानी पीते हैं।
लेकिन वहीं मृतक छात्र इंद्र मेघवाल के पिता देवाराम का आरोप अपनी जगह कायम है और उसका कहना था कि स्कूल में जातिवाद के नाम पर मेरे बेटे की पिटाई की गई। उनका बेटा आखरी बार 20 जुलाई को स्कूल गया था। सुबह करीब साढ़े दस बजे उसे प्यास लगी और उसने स्कूल में रखी मटकी से पानी पी लिया। उसे नहीं पता था कि यह मटकी स्कूल के टीचर छैल सिंह के लिए रखी गई है।
इस पर आरोपी छैल सिंह ने इंद्र को बुलाया और जमकर पीटा जिसके चलते उसकी दाहिनी आंख और कान में अंदरुनी चोटें आईं तथा अचानक उसकी तबीयत बिगड़ गई। उनके बेटे को उपचार के दौरान जालौर से उदयपुर रेफर किया गया । यहां भी तबीयत में सुधार नहीं हुआ तो कुछ दिनों बाद वह बेटे को अहमदाबाद ले गए थे। जहां पर 13 अगस्त शनिवार सुबह करीब 11 बजे उसकी मौत हो गई थी।
लेकिन सूत्रों का दावा है कि 20 जुलाई को स्कूल में दो बच्चों के बीच झगड़ा हुआ था। इस कारण शिक्षक छैल सिंह राजपूत ने दोनों बच्चे को डराने के लिहाज से पीट दिया। हालांकि, आज के समय में शिक्षक द्वारा बच्चे को पीटना सही नहीं है। शिक्षक को ऐसा कतई नहीं करना चाहिए था। किसी भी जाति धर्म या समुदाय के बच्चे की मौत दुखद है और इसकी निंदा अवश्य होनी चाहिए। लेकिन, कुछ सामाजिक संगठनों और नेताओं ने छात्र की मौत का तमाशा बना दिया है ।