ये बिहान है, समानता का,तुस्टीकरण पर इंसानियत की चोट का,कठमुल्लो के लालच का! जय हो! सुप्रीम कोर्ट ने अदालत के अंदर चार दशक से कांग्रेस की तुस्टीकरण की खेल को चालाकी से खेलने पर अपना हथौड़ा मारा है। कोर्ट के बहुमत वाले बैंच के फैसले का मतलब ही होता है अदालत का फैसला। यह भारत के संवैधानिक बैंच का फैसला है। मतलब आखिरी फैसला। जिसने माना तीन तलाक असंवैधानिक है! घिनौनी परंपरा है।
तो आज से कठमुल्लों का हलाला इतिहास की बात हो गई। भारत की मुस्लिम महिला उस जुर्म,अमानवीयता और कलंक से मुक्ति पा गई। अब भारत की संसद की जिम्मेबारी है कि वो ठोस कानून बनाये। अमानवीयता के खिलाफ। तुम्हें हत्या और बलात्कार में शरिया नहीं चाहिए। महिलाओं पर जुर्म और राजसी शेखी के लिये कठमुल्ला वाला शरिया का हलाला और तीन तलाक चाहिए था। तुम सोचने और तर्क तक नहीं करने दोगे। औरत को गुलाम से ज्यादा कुछ नहीं। ये मत कहना की हम भारत की अदालत की भी नहीं मानते। भूल जाओ, भारत में कानून का राज रहेगा। भारत को बधाई! इंसानियत और समानता का क़ानून। मुस्लिम महिलाओं को तुस्टीकरण की पारंपरिक गुलामी वाली राजनीति से आजादी मिल गई।
याद रखियेगा सुप्रीम कोर्ट में कांग्रेस का खेल तीन तलाक पर। कपिल सिब्बल का मुस्लिम पर्सनल लॉ के तरफ से आकर यह कहना की आस्था पर कोर्ट को कोई अधिकार नहीं कानून बनाने का। उसी कांग्रेस का जिसने राम सेतु को नहीं माना। अयोध्या को आस्था का सवाल कभी नहीं माना। कमाल है है!
दूसरी तरफ सलमान खुर्शीद का अदालत का सहयोगी(अमैक्स क्यूरी)वकील बन का नाटकीयता से यह कहना की तीन तलाक ठीक नहीं। लेकिन…वेकिन। ये तुस्टीकरण का कांग्रेसी खेल अदालत के अंदर भी खेला गया। याद रखियेगा। लेकिन इंसाफ की अदालत से मुस्लिम महिलाओं को अत्याचार से आज़ादी मिल गई आज।