अर्चना कुमारी। करीब 250 रोहिंग्या शरणार्थियों को इंडोनेशिया के पश्चिमी हिस्से से वापस समुद्र में भेज दिया गया। यही भारत में होता तो बवाल मच गया जाता।
पाकिस्तान में भी अफगानी शरणार्थी को पीटकर भगाया जा रहा। यहां तक गाजा के पीड़ित को स्वीकारने को भी कोई मुस्लिम देश तैयार नहीं। अब इंडोनेशिया में रोहिंग्या लोगों के समक्ष मानवीय संकट है।
हालाँकि स्थानीय लोगों ने उनके खाने-पीने की व्यवस्था नाव पर की और जरूरी सामान रखने के बाद उन्हें वापस समुद्र में भेज दिया।
बताया जाता है, म्यांमार में उत्पीड़न से बचने वाले यह रोहांगिया समूह गुरुवार को इंडोनेशिया के आचे प्रांत के तट पर पहुँचा था, लेकिन उन्हें अस्वीकृति का सामना करना पड़ा।
ऐसा उस देश इंडोनेशिया में हुआ, जहाँ दुनिया की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी बसती है और देश की जनसंख्या का लगभग 87 प्रतिशत जनसंख्या मुस्लिम है। इसके बाद ही भारत या कोई और देश का नंबर आता है। दावा किया गया है, रोहिंग्या लोगों से भरी नाव बांग्लादेश से तीन सप्ताह पहले निकली थी।
ये लोग इंडोनेशिया के पश्चिमी हिस्से में पहुँचे थे। आचे प्रांत के तट के पास पहुँचने के बाद कई लोग तैर कर जमीन तक पहुँचे और थकान की वजह से बहोश होकर गिर गए, लेकिन स्थानीय लोगों ने उन्हें थोड़े समय बाद ही वापस नाव पर भेज दिया और नाव को समंदर में ले जाने के लिए मजबूर कर दिया।
क्योंकि उन्हें शरणार्थी पसंद नहीं। सनद रहे ज्यादातर मुस्लिम रोहिंग्या अल्पसंख्यक समुदाय के हजारों लोग मलेशिया या इंडोनेशिया पहुँचने की कोशिश के लिए हर साल लंबी और महंगी समुद्री यात्रा पर अक्सर कमजोर नावों में अपनी जान जोखिम में डालते हैं।
इस मामले में स्थानीय नेता सैफुल अफवादी ने कहा,हम उनकी उपस्थिति से तंग आ चुके हैं क्योंकि जब वे जमीन पर आते थे, तो कभी-कभी उनमें से कई भाग जाते थे। कुछ प्रकार के एजेंट होते हैं जो उन्हें पकड़ लेते हैं।
यह मानव तस्करी है।उत्तरी आचे के अफवाडी ने कहा कि पड़ोसी उली मैडन और कॉट ट्रुएंग गाँवों में स्थानीय लोगों ने शरणार्थियों को उनकी नाव वापस समुद्र में ले जाने से पहले भोजन, कपड़े और गैसोलीन सहित आपूर्ति की।
उन्होंने कहा कि रोहिंग्याओं ने नावों को नुकसान पहुँचाने की कोशिश की, ताकि उन्हें वापस न लौटाया जा सके, लेकिन स्थानीय लोगों ने उन नावों को मरम्मत करने के बाद उन्हें वापस भेजा।
रोहिंग्या अधिकार संगठन अराकान प्रोजेक्ट के निदेशक क्रिस लेवा ने कहा कि ग्रामीणों के विरोध की वजह से उन्हें लौटना पड़ा। वो तस्करों की मदद से यहाँ तक पहुँचे थे, जो मलेशिया से व्यापारिक रास्ते का फायदा उठाते हैं और लोगों की तस्करी करके अवैध तरीके से इंडोनेशिया भेजने की कोशिश करते हैं।
उन्होंने बताया कि स्थानीय लोगों की नाराजगी रोहिंग्या लोगों से नहीं, बल्कि उन्हें यहाँ पर लाने वाले तस्करों और इन नावों को चलाने वालों से है। ज्ञात हो
2020 की जाँच में बांग्लादेश के एक विशाल शरणार्थी शिविर से लेकर इंडोनेशिया और मलेशिया तक फैले करोड़ों डॉलर के लगातार विकसित हो रहे मानव-तस्करी अभियान का खुलासा हुआ, जिसमें रोहिंग्या समुदाय के सदस्य ही अपने लोगों की तस्करी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
सनद रहे सहायता के अनुरोधों के बावजूद शरणार्थियों को लैंडिंग करने से रोका गया और उन्हें समुद्र में अपनी खतरनाक यात्रा जारी रखने के लिए मजबूर किया गया। यह घटना रोहिंग्या समुदाय की दुर्दशा को उजागर करती है, जिन्हें अक्सर पड़ोसी देशों से वापस कर दिया जाता है और उन्हें असुरक्षित जल में अपनी जान जोखिम में डालने के लिए छोड़ दिया जाता है।