विपुल रेगे। रणबीर कपूर की ‘एनिमल’ रिलीज होकर बड़ी हिट हो गई है। फिल्म के हिट होने के बाद इसे लेकर माहौल दो पक्षों में बंट गया था। एक पक्ष फिल्म के अल्फा मेल कैरेक्टर को लेकर आलोचना कर रहा था तो दूसरा पक्ष ‘आदिमानव नुमा’ इस फिल्म के मजबूत समर्थन में खड़ा दिखा। फिल्म के निर्माता-निर्देशक भी विवाद में कूद पड़े तो आग और भड़क गई। दो पक्षों की इस लड़ाई में ये देखने की ज़हमत किसी ने नहीं उठाई कि विक्षिप्तता की सीमा पार करने वाली ‘एनिमल’ हमारे समाज को बुरी तरह संक्रमित कर गई है। ‘एनिमल’ के विरोध पर एक राष्ट्रीय बहस खड़ी करने के बजाय इसे बॉलीवुड विरुद्ध दक्षिण भारतीय फिल्म उद्योग की लड़ाई की तरह देखा जा रहा है।
फिल्म उद्योग में हर किसी को अपनी पसंद की फिल्म बनाने की पूर्ण स्वतंत्रता है। विशेष रुप से हिन्दी फिल्म उद्योग इस स्वतंत्रता का पूरा फायदा लेता है। विगत दो दशक में हिन्दी फिल्म उद्योग सीमा पार कर गया है। विवाहेतर संबंधों से लेकर समलैंगिकता तक को फिल्मों के ज़रिये सही ठहराने की पूरी कोशिश की गई है। ऐसा फिल्म उद्योग जब तेलुगु फिल्म निर्देशक संदीप रेड्डी वांगा पर ऊँगली उठाता है तो तर्कसंगत नहीं लगता। यहाँ संदीप रेड्डी वांगा भी कोई दूध के धुले नहीं हैं। उन्होंने अत्याधिक नारीवाद के जवाब में अत्याधिक पुरुषवाद को खड़ा कर दिया है।
हाल ही में संदीप ने मीडिया को कई इंटरव्यू दिए हैं। उन्होंने अपने जवाबों से बॉलीवुड को आइना दिखा दिया है लेकिन एनिमल के पशुवाद को लेकर उन्हें कोई पछतावा है, ऐसा दिखाई नहीं देता। हाल ही में उन्होंने फिल्म समीक्षक कोमल नाहटा को एक इंटरव्यू दिया। इस इंटरव्यू में लगा ही नहीं कि एक ज़िम्मेदार फिल्म क्रिटिक एक ज़िम्मेदार फिल्म मेकर से बात कर रहा है। संदीप कहते हैं आम जनता सिनेमा से कुछ सीखने नहीं आती। यदि आम जनता सिनेमा से इन्फ़्लुएंस नहीं होती तो उत्तरप्रदेश में एक हिंदूवादी नेता की ह्त्या करने से पहले हत्यारे संदीप वांगा रेड्डी की ‘एनिमल’ क्यों देखते हैं ?
इस बातचीत से समझ आया कि इन निर्देशक का समाज के प्रति कोई उत्तरदायित्व नहीं है। इनकी फिल्मों का नायक सहृदय बाहुबली नहीं हो सकता, वह एक महिला कैरेक्टर को जूते चाटने के लिए कह सकता है और निर्देशक को इसमें कुछ बुरा नहीं लगा। बॉलीवुड भी अपनी गंदी नालियों को न देखकर ‘एनिमल’ की गंदगी पर अपनी राय प्रकट कर रहा है। गीतकार जावेद अख्तर ने ‘एनिमल’ पर सवाल खड़े किये तो संदीप रेड्डी वांगा ने भी उन्हे समुचित जवाब दिया। संदीप ने कहा कि मुझ पर आरोप लगाने से पहले जावेद को अपने बेटे फरहान की ‘मिर्जापुर’ देखनी चाहिए, जिसमे शुरु से लेकर आखिरी तक गालियां ही गालियां दी गई है। संदीप ने तर्कपूर्ण बात कही है।
जावेद संदीप पर पहला पत्थर कैसे फेंक सकते हैं, जब वे और उनका परिवार भी इस पाप में सहभागी है। बॉलीवुड की एक और फ्लॉप अभिनेत्री भी संदीप वांगा रेड्डी के गले पड़ गई है। फ्लॉप अभिनेत्री कंगना रनौत इन दिनों एनिमल निर्देशक पर हमलावर हैं। आजकल इस राष्ट्रवादी अभिनेत्री की हालत इतनी खस्ता है कि फिल्म इंडस्ट्री के बड़े लोग भी इनकी बातों का जवाब देना उचित नहीं समझते हैं। कंगना ने संदीप के गले पड़ते हुए उनकी फिल्म की आलोचना की। इस पर संदीप ने अच्छा जेस्चर दिखाते हुए कंगना का सम्मान किया और उनके साथ काम करने की इच्छा भी जताई।
संदीप ने औपचारिक रुप से कंगना का सम्मान किया लेकिन इसे संदीप की कमज़ोरी समझते हुए कंगना ने पुनः पलटवार करते हुए कहा ‘मुझे कभी रोल मत देना, नहीं तो आपके अल्फा मेल हीरोज फेमिनिस्ट हो जाएंगे और फिर आपकी फिल्में भी पिट जाएंगी।’ इसे कहते है जबरन गले पड़ना। भाजपा की प्रशंसा कर करके अपना कॅरियर समाप्त कर देने वाली कंगना को अब चर्चा में रहने के लिए संदीप रेड्डी वांगा पर जुबानी हमले करने पड़ रहे हैं। ‘एनिमल’ जैसी फिल्मों का प्रभाव समाज पर वैसे ही पड़ता है, जैसे समलैंगिकता और अति नारीवाद वाली फिल्मों को दिखाने से पड़ रहा है।
जनता सिनेमा से कुछ सीखने नहीं जाती है लेकिन उस सिनेमा का अच्छा-बुरा प्रभाव अपने साथ लेकर आती है। संदीप रेड्डी वांगा एक प्रतिभाशाली निर्देशक हैं और उन्हें जनता से सरोकार समझना चाहिए। ऐसे ही जावेद अख्तर और कंगना रनौत को संदीप पर आक्षेप करने का कोई अधिकार ही नहीं बनता। पहले वे अपना घर ठीक करें और फिर संदीप पर पत्थर उछाले।