अभी हाल ही में राजदीप सरदेसाई ने इंडिया टुडे टीवी के लिए सोनिया गांधी का एक साक्षात्कार लिया। सरकी हुई कमर, चेहरे पर गुलामों-सा भाव, सवालों में हद दर्जे की चापलूसी और जबरदस्ती की बेशर्म मुस्कान ने यह दर्शा दिया कि अंग्रेजी पत्रकार भी कांग्रेसी कार्यकर्ताओं की तरह खुद को नेहरू-गांधी परिवार का गुलाम मानते हैं। एक तरफ सुषमा स्वराज है, जिन्होंने ट्वीट के जरिए अपनी किडनी फेल होने की जानकारी देश को दी और दूसरी तरफ महारानी सोनिया गांधी की वह रहस्यमयी बीमारी, जिसे दबाने में लुटियन्स पत्रकारों ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया! पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारू ने लिखा था कि दिल्ली के पत्रकारों में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह कांग्रेस प्रवक्ता से यह पूछ सकें कि सोनिया गांधी को कौन-सी ऐसी बीमारी है, जिसका इलाज अमेरिका में तो हो सकता है, लेकिन भारत में नहीं? पत्रकार चुपचाप कांग्रेस मुख्यालय जाते थे और जो प्रेस रिलीज दिया जाता था, लेकर चले आते थे!
आज यह इसलिए याद आ रहा है कि अभी हाल ही में टाइम्स ऑफ इंडिया के एक पत्रकार अक्षय मुकुल ने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति जिस तरह से नफरत का इजहार किया और जिस तरह से ये अंग्रेजी पत्रकार सोनिया-राहुल-प्रियंका गांधी की चापलूसी करते नजर आते हैं, वह लोकतंत्र के लिए शर्मनाक होता जा रहा है! ये लुटियन्स लेफ्ट-लिबरल पत्रकार अंग्रेजी भाषी हैं। जवाहरलाल नेहरू के जमाने में उनके इशारे पर न्यूज छापते और दबाते थे, इंदिरा गांधी के जामने में ये रूसी खुफिया एजेंसी केजीबी से लेकर इंदिरा के लिए टके-टके पर बिकते थे, और राजीव- सोनिया-राहुल के जमाने में बोफोर्स, भोपाल गैस, 2जी, कोलगेट, कॉमनवेल्थ गेम्स जैसे अनगिनत घोटालों में घोषित तौर पर दलाल की भूमिका में जाने-पहचाने चेहरे बन चुके हैं!
बेहतरीन पत्रकारिता के लिए पत्रकारों को इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप की ओर से दिए जाने वाले ‘रामनाथ गोयनका अवॉर्ड’ को टाइम्स ऑफ इंडिया के एक पत्रकार ने यह कहते हुए लेने से इनकार कर दिया था कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ से पुरस्कार नहीं ले सकते हैं! टाइम्स ऑफ इंडिया का वरिष्ठ पत्रकार अक्षय मुकुल प्रधानमंत्री के हाथों मिलने वाले रामनाथ गोयनका पुरस्कार को लेने मंच पर नहीं पहुंचा था! उसका कहना था कि वह नरेंद्र मोदी के साथ मंच साझा नहीं कर सकता है!
ज्ञात हो कि इससे पूर्व टाइम्स ग्रुप व उसके पत्रकार मनोज मिट्टा को गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ झूठ फैलाने के आरोप में सुप्रीम कोर्ट से लताड़ खा चुके हैं! ये वामपंथी पत्रकार यह मानने को तैयार नहीं हैं कि नरेंद्र मोदी को इस देश की 18 करोड़ जनता ने अपने मतदान के द्वारा चुनकर संसद में भेजा है! मोदी कम्युनिस्ट महासचिवों और वंशवादी कांग्रेसी नेताओं की तरह पैराशूट से नहीं उतरे हैं!
गौरतलब है कि हार्पर कॉलिंस के चीफ एडिटर और पब्लिशर कृशन चोपड़ा ने अक्षय मुकुल की ओर से रामनाथ गोयनका पुरस्कार ग्रहण किया था। यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि वामपंथी पत्रकार अक्षय मुकुल हिंदू विरोधी मानसिकता के लिए पहले से ही जाना जाता रहा है। उसकी पुस्तक ‘गीता प्रेस एंड मेकिंग ऑफ हिंदू इंडिया’ हिंदू विरोधी मानसिकता की जीती-जागती मिसाल है!
वामपंथी पत्रिका कारवां से बातचीत में अक्षय मुकुल ने कहा था है कि ‘वो इस तथ्य के साथ नहीं जी सकता है कि वो और मोदी एक ही फ्रेम में हों।’ उसने कहा था कि यह पुरस्कार मैं नरेंद्र मोदी के हाथों नहीं ले सकता था। इसलिए मैंने किसी अन्य को इसे ग्रहण करने के लिए भेजा।’
वामपंथी पत्रकार इस बात को मानने के लिए तैयार ही नहीं हैं कि नरेंद्र मोदी अब इस देश के प्रधानमंत्री हैं! वास्तव में पत्रकारिता और एकेडमिक संस्थानों पर कब्जा जमाए वामपंथी अब तक कांग्रेसी सरकारों और विदेशी फंडेड एजेंसियों के नोटों व सुविधाओं पर पलते रहे हैं। ये लोग सरदार पटेल, मोरारजी देसाई, नरेंद्र मोदी जैसी भारतीय विचारधारा वाले नेताओं और विशुद्ध भारतीय ‘हिंदू वैचारिक दर्शन’ कें प्रति स्वयं तो नफरत से भरे ही हैं, ठेके पर भारतीयता कें प्रति राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नफरत का प्रचार-प्रसार भी करते रहे हैं! इनकी बिरादरी लुटियन पत्रकारों की बिरादरी है, जो सत्ता के केंद्र लुटियन दिल्ली के सबसे बड़े दलालों में शामिल हैं!
यह तथ्य भी जानने योग्य है कि नरेंद्र मोदी के प्रति गुजरात दंगे को लेकर सबसे बड़े झूठ का प्रचार-प्रसार इसी अक्षय मुकुल के अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया ने यह फ्लायर छाप कर किया था, जिसमें लिखा गया था नरेंद्र मोदी ने गुजरात दंगे को गोधरा की प्रतिक्रया बताते हुए कहा था कि ‘हर क्रिया की प्रतिक्रया होती है’, जिससे दंगा भड़का! जबकि यह पूरी खबर ही झूठी थी। मानहानि का मुकदमा करने पर इस अखबार ने अपने अहमदाबाद संस्करण में बीच के पेज पर एक छोटा सा माफीनामा छाप दिया, जबकि मोदी को बदनाम करने के लिए उसने दिल्ली सहित अपने सभी संस्करणों में उक्त झूठ को लीड स्टोरी बनाया था!
यही नहीं, गुजरात दंगे में सबसे अधिक विदेशी फंड हासिल करने वाली साजिशकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ के साथ मिलकर नरेंद्र मोदी के खिलाफ रचने वालों में टाइम्स ऑफ इंडिया का ही एक संपादक मनोज मिटटा भी शामिल था। मनोज मिटटा ने अदालत द्वारा झूठे ठहराए जा चुके पूर्व नौकरशाह संजीव भट्ट का झूठा शपथपत्र तैयार किया था। टाइम्स ऑफ इंडिया व उसके पत्रकारों का यह झूठ सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट में उजागर किया था! जाहिर है कि अंग्रेजी व वामपंथी पत्रकार इस देश में झूठ के बल पर आज तक लोगों के बीच नफरत फैलाते आए हैं! अक्षय मुकुल का नफरत दर्शा रहा है कि स्टालिन-माओ की वैचारिक संतानों को मानसिक उपचार की कितनी अधिक जरूरत है!