विपुल रेगे। फ़िल्में अभिव्यक्ति का श्रेष्ठ माध्यम होती हैं। सेल्युलाइड का लंबा-चौड़ा परदा वह अभिव्यक्त कर देता है जो किताबें और भाषण भी नहीं कर पाते हैं। भारत में फिल्मों के जरिये साहसिक अभिव्यक्ति कम ही देखने को मिलती है। पिछले दिनों हमने कश्मीर समस्या पर उत्कृष्ट फिल्म द कश्मीर फाइल्स देखी थी। सन 2020 में एक ऐसी ही साहसिक फिल्म आई। ट्रांस शीर्षक से बनी इस फिल्म में ढोंगी ईसाई संतों की कहानी दिखाई गई थी। जिस देश में एक महिला नेत्री पर किसी सवाल का जवाब देने पर गर्दन काट देने के फरमान आते हो, उस देश में क्रिश्चनिटी का सहारा लेकर धन कमाने वालों पर फिल्म बनाना कम साहस का काम नहीं है।
ट्रांस फिल्म मलयालम भाषा में बनाई गई थी। ये अपने विषय को लेकर शुरु से ही विवादों में फंसी रही थी। इसमें उन तथाकथित ईसाई धर्मगुरुओं पर चोट की गई थी, जो हज़ारों लोगों को बुलाकर स्वयं में प्रभु की शक्ति होने का दावा करते हैं। ये लोग व्हील चेयर पर बैठकर आई महिला को पांच मिनट के ईश्वरीय उपचार के बाद मंच पर दौड़ लगवा देते हैं। आप ऐसे कार्यक्रम हमेशा टीवी पर देखते ही होंगे। वास्तव में अपाहिजों को ठीक कर देना।
किसी की दृष्टि लौटा लाने जैसे ये खेल सब इन्ही फर्जी धर्मगुरुओं द्वारा रचे जाते हैं। जिन पीड़ितों को ये स्वस्थ करते हैं, वे इन्हीं के दल के सदस्य होते हैं जो आम जनता में मिल जाते हैं। ट्रांस एक ऐसे युवक की कहानी है, जिसके परिवार के दो सदस्य आत्महत्या कर चुके हैं। विजु प्रसाद एक मोटिवेशनल स्पीकर है। वह कन्याकुमारी में रहता है। उसके छोटे भाई की आत्महत्या के बाद वह कन्याकुमारी से मुंबई आ जाता है।
मुंबई में दो धोखेबाज लोग उसकी बोलने की प्रतिभा को देख बड़ा प्रस्ताव देते हैं। प्रस्ताव के अनुसार विजु को एक नकली फादर बनाया जाएगा। वह मंच पर नकली चमत्कार करेगा। विजु का नाम बदलकर जोशुआ रख दिया जाता है। जल्दी ही इस खेल में विजु और उसके आकाओं को छप्परफाड़ सफलता मिलने लगती है। जोशुआ का जादू विदेशी धरती तक चलने लगता है। एक बार एक पत्रकार उसका इंटरव्यू लेकर पोल खोलने का प्रयास करता है लेकिन नाकाम रहता है।
इस तरह कहानी आगे बढ़ती है और एक सुखद अंत पर जाकर समाप्त होती है। फिल्म में मुख्य भूमिका अत्यंत प्रतिभाशाली अभिनेता फरहाद फ़ाज़िल ने निभाई थी। 35 करोड़ के छोटे बजट से बनी ये फिल्म रिलीज हुई लेकिन विरोधों के चलते अधिक कलेक्शन नहीं कर सकी। इस साहसिक फिल्म का कलेक्शन महज 15 करोड़ में सिमट कर रह गया। फिल्म में विस्तार से दिखाया गया है कि ईसा मसीह के नाम पर किस तरह लोगों से धोखा किया जा रहा है।
ऐसे कई नकली फादर हमारे समाज को नुकसान पहुंचा रहे हैं। फिल्म में एक सीक्वेंस बड़ा ही रोचक है। ट्रेनर किस तरह से विजु को फादर बनने की ट्रेनिंग देता है। कैसे ये गिरोह लोगों को विश्वास करा देता है कि फादर के पास कोई ईश्वरीय शक्ति है। फिल्म सीधा-सीधा आध्यात्म के व्यवसायीकरण की बात करती है। फिल्म को मिली-जुली समीक्षाएं प्राप्त हुई थी। एक समीक्षक ने तो इसकी प्रशंसा करने के बजाय ये बताया कि फिल्म निर्देशक ने फिल्म में बाइबिल और उसके चरित्रों का सांकेतिक प्रयोग किया है। अभी ये फिल्म ओटीटी पर देखी जा सकती है। प्राइम वीडियो पर ट्रांस हिन्दी भाषा में उपलब्ध है।