संदीप देव। आज सुप्रीम कोर्ट ने दिवाली पर पूरे देश में पटाखे चलाने पर बैन लगा दिया। SC ने कहा, “हमारा आदेश केवल दिल्ली-NCR के लिए नहीं, पूरे देश के लिए था।”
इसका असर यह होगा कि तमिलनाडु के शिवकाशी में पटाखे फैक्ट्री में काम करने वाले गरीब मजदूरों को मिशनरियां आसानी से धर्मांतरित कर सकेंगी।
यह सिर्फ प्रदूषण का मामला नहीं है, बल्कि बकरीद पर पशु रक्त से तो पानी व वायु भी प्रदूषित होता है, उस पर कोई रोक नहीं लगती; यह विशुद्ध धर्मांतरण का मामला है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन और बिल गेट्स के भारत में सबसे बड़े हितैषी मोदी सरकार के पूर्व मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने पटाखे पर बैन लगवाने की शुरुआत की थी, और आज यह पूरे देश में बैन हो गया है।
डॉ. हर्षवर्धन द्वारा पटाखों पर प्रतिबन्ध के प्रयास केंद्र में मोदी सरकार के आते ही आरम्भ हो गए थे। और उन्होंने वर्ष 2014 में ही दिल्ली के तत्कालीन उपराज्यपाल नजीब जंग से पटाखों पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए अनुरोध किया था।
हालांकि नजीब जंग इस बात पर सहमत नहीं हुए तो हर्षवर्धन ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। जब केंद्रीय मंत्री द्वारा यह अनुरोध उच्चतम न्यायालय से किया गया तो उच्चतम न्यायालय ने इस बात को माना और पटाखों पर बैन की इस तरह शुरुआत हुई।
इसके बाद वर्ष 2020 में उच्चतम न्यायालय में एक NGO द्वारा याचिका दायर की गयी। यह NGO था इंडियन सोशल रेस्पोंसिबिलिटी नेटवर्क (ISRN)। इस NGO में शामिल थे, मप्र भाजपा के नेता ओम प्रकाश सकलेचा, भाजपा से राज्यसभा सांसद और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विनय सहस्त्रबुद्धे और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की पत्नी मल्लिका नड्डा। इसके अलावा उस NGO में संतोष गुप्ता, ललिता कुमार मंगलम, सुमीत भसीन, रविन्द्र साथे, संजय चतुर्वेदी, बसंत कुमार, इंदुमती राव आदि शामिल थे।




इनमें अधिकांश भाजपा के नेता हैं। कुमारमंगलम भी भाजपा की नेता है और पूर्व में राष्ट्रीय महिला आयोग की प्रमुख रह चुकी हैं। इसी तरह सुमीत भसीन पब्लिक पॉलिसी रिसर्च से जुड़े थे। वह वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए भाजपा की सोशल मीडिया कमिटी से भी जुड़े थे।
इस पूरे खेल को अमेरिकी पॉलिसी को दुनिया भर में लागू करने के लिए विश्व के नेताओं और मीडिया कर्मियों को प्रशिक्षण देने वाले अमेरिकी सरकार और वर्ल्ड एलिट से फंडेड #acpyl से जोड़ कर देखेंगे तो स्थिति अपने आप स्पष्ट हो जाएगी।
अभी अमेरिका में बहस का मुद्दा है कि यदि अमेरिका को लंबे समय तक विश्व को डोमिनेट करना है तो उसे क्रिश्चियनिटी को हर तरह से दुनिया में पुश करना होगा।
1990 के दशक में सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिका में यह बहस तेज हुई। उसी दौर में #acypl ने भारत के नेताओं को प्रशिक्षण देना आरंभ किया, जो अभी तक जारी है। उसी दशक में बिल क्लिंटन प्रशासन ने बकायदा स्टेट स्पांसर धर्मांतरण पर बल दिया। अभी भी अमेरिका में उन्हीं की डेमोक्रेटिक पार्टी सत्ता में है।
तमिलनाडु में क्रिश्चियन धर्मांतरण बहुत तेज है। अचानक शिवकाशी के मजदूरों को बेरोजगार कर धर्मांतरण के लिए लहलहाती खेती तैयार की गई है, जिसमें वर्ल्ड एलिट के सारे एजेंट अपनी-अपनी भूमिका निभा रहे हैं, प्रदूषण की आड़ लेकर! जबकि IIT के शोध से स्पष्ट है कि दिवाली के पटाखे से प्रदूषण बेहद कम फैलता है।
sandeepdeo
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