विपुल रेगे। जबसे ये तथ्य भारत की जनता की जानकारी में आया है कि ‘भारत में सशस्त्र बल और रेलवे के बाद वक्फ बोर्ड तीसरा सबसे बड़ा जमींदार है’, एक वर्ग विशेष को लेकर चिंताएं बढ़ गई है। वक्फ मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ इंडिया के डेटा के अनुसार देश में वक्फ बोर्ड के पास फिलहाल 8 लाख 54 हजार 509 संपत्तियां हैं, जो कुल मिलाकर 8 लाख एकड़ से ज्यादा है। वक्फ बोर्ड पर ये आरोप लगते रहे हैं कि वह अवैध ढंग से अपनी भूमि का विस्तार कर रहा है। बोर्ड पर सरकारी सम्पत्तियाँ हड़पने के कई आरोप अदालतों में विचाराधीन है। देश के सभी 28 राज्यों में वक्फ बोर्ड की सम्पत्तियाँ और कार्यालयों का विस्तार हो चुका है, जो कि अत्यंत चिंताजनक बात है।
स्वतंत्रता के बाद से जुलाई, 2020 तक वक्फ मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ इंडिया की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक भारत में कुल 8 लाख 54 हजार 509 संपत्तियां वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज है। इन सम्पत्तियों में भारत भूमि का लगभग आठ लाख एकड़ हिस्सा आता है। स्वतंत्रता मिलने के कुछ समय बाद जवाहर लाल नेहरु की सरकार ‘वक्फ एक्ट 1954’ लेकर आई थी। इसके कई साल बाद 1995 में तत्कालीन पीवी नरसिम्हा राव सरकार ने इस एक्ट में कुछ संशोधन किये।
संशोधन होने के बाद हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में वक्फ बोर्ड के गठन का रास्ता खुल गया। अब तो देश के हर राज्य में वक्फ बोर्ड के कार्यालय संचालित हो रहे हैं। वक्फ पर सरकार की जमीनें हड़पने के आरोप लगते रहते हैं। वक्फ बोर्ड अक्सर अपने अजीबोगरीब दावों के कारण भी चर्चा में रहता है। सन 2022 के सितंबर में तमिलनाडु के वक्फ बोर्ड ने एक मस्जिद की प्रापर्टी को लेकर चल रहे विवाद में संपूर्ण गांव पर ही अपना दावा ठोंक दिया।
तिरुचेंथुरई गांव के एक किसान राजगोपाल ने जब अपनी 1.2 एकड़ खेती की जमीन बेचनी चाही तो रजिस्ट्रार दफ्तर द्वारा उसे बताया गया कि यह जमीन उसकी नहीं बल्कि तमिलनाडु वक्फ बोर्ड की है। वक्फ बोर्ड के दावे के अनुसार 1,500 साल पुराने मानेदियावल्ली चंद्रशेखर स्वामी मंदिर की जमीन पर भी उनका हक है। उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड में वक्फ बोर्ड की सम्पत्तियों में बड़े पैमाने पर घोटालों और घपलों की ख़बरें भी बाहर आती रही है।
जब योगी आदित्यनाथ उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने एक आदेश जारी किया, जिसमे उत्तरप्रदेश वक्फ बोर्ड की सभी सम्पत्तियों की जांच की बात कही गई थी। योगी सरकार ने नए सर्वे का आदेश जारी करने के साथ वक्फ बोर्ड से जुड़ा 33 साल पुराना आदेश भी रद्द कर दिया। दरअसल 1989 को तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने एक आदेश जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि यदि बंजर, भीटा, ऊसर आदि भूमि का इस्तेमाल वक्फ के रूप में किया जा रहा हो तो उसे वक्फ संपत्ति के रूप में ही दर्ज कर दिया जाए। फिर उसका सीमांकन किया जाए।
इस आदेश के चलते प्रदेश में लाखों हेक्टेयर बंजर, भीटा, ऊसर भूमि वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज कर ली गई। गत वर्ष भारतीय जनता पार्टी के राज्यसभा सांसद हरनाथ सिंह यादव ने वक्फ बोर्ड अधिनियम 1995 को खत्म करने के लिए सदन में निजी विधेयक पेश किया था। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा था कि 1995 के वक्फ बोर्ड एक्ट से देश में असमानता फैली हुई है और वहीं बड़े स्तर पर धर्मांतरण का खेल भी इसकी आड़ में खेला जा रहा है।
न्यायालयों में ऐसे सैकड़ों प्रकरण विचाराधीन हैं, जिनमे वक्फ ने लोगों की संपत्तियां हड़प कर ली है। महाराष्ट्र के सोलापुर का भी एक उदाहरण सामने है। सोलापुर की एक बस्ती में लगभग ढाई सौ अनुसूचित वर्ग के लोग निवास कर रहे हैं। हाल ही में उनके पास नोटिस आया, जिसमे बताया गया कि वो जहां रह रहे हैं वो वक्फ बोर्ड की है। ऐसे भी समाचार आए कि जब वे लोग अपनी बस्ती बचाने को दर-दर भटक रहे थे, तब उन्हें इस्लाम कबूल करने का प्रस्ताव भी दिया गया था।
क्या है वक्फ बोर्ड
वक्फ उस चल या अचल संपत्ति संपत्ति को कहते हैं, जिसको इस्लाम को मानने वाला कोई भी शख्स दान कर देता है। इस संपत्ति को अल्लाह का माना जाता है, ये संपत्ति वक्फ बोर्डों के तहत आती है। कोई भी मुस्लिम व्यक्ति जो 18 साल से अधिक उम्र का है, अपने नाम की किसी संपत्ति को वक्फ कर सकता है, जिस पर उसके परिवार और किसी अन्य शख्स का दावा नहीं माना जाता। भारत में वक्फ बोर्ड की शुरुआत देश के बंटवारे के बाद मानी जाती है। तब देश से लाखों लोग पाकिस्तान जाकर बस गए। इस दौरान अधिकतर लोग अपनी अचल संपत्ति देश में छोड़कर गए, जिसमें घर एवं जमीन प्रमुख थी। सरकार ने इन जमीनों और संपत्तियों के नियमन के लिए वक्फ बोर्ड का गठन किया। वक्फ से संबंधित सभी तरह के कामों की जिम्मेदारी वक्फ बोर्ड को दी गई। तबसे लेकर अब तक ये बोर्ड देश की कई सरकारी सम्पतियों पर अपना दावा ठोंकता आया है।
वक्फ बोर्ड के दावे गुस्सा दिलाते हैं
– सुन्नी वक्फ बोर्ड के अनुसार ताज महल उसकी सम्पत्ति है। उनके अनुसार वे इसके रखवाले हैं। वे इस पुरातात्विक धरोहर को अल्लाह को अर्पित की गई संपत्ति मानते हैं।
– सन 2021 में कृष्ण नगरी द्वारका स्थित बेट द्वारिका के दो टापू पर सुन्नी वक्फ बोर्ड ने दावा ठोंका। गुजरात उच्च न्यायालय ने इस पर आश्चर्य जताते हुए पूछा कि कृष्ण नगरी पर आप कैसे दावा कर सकते हैं ?
– सन 2017 में बिजनेस टायकून मुकेश अंबानी के घर ‘एंटीलिया’ को लेकर वक्फ बोर्ड ने नोटिस जारी किया। कहा गया कि वक्फ की जमीन को गैर क़ानूनी ढंग से बेचकर मुकेश अम्बानी का मकान बनाया गया।
– सोनिया-मनमोहन सरकार ने 2014 में लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद एक राजपत्र जारी कर दिल्ली की 123 संपत्तियों को वक्फ बोर्ड को देने का निर्णय लिया लेकिन बाद में मोदी सरकार जीतकर आई और उसने इस निर्णय पर रोक लगा दी।
2014 के बाद चुनकर आई सरकार ने वक्फ बोर्ड के फैलते पंजों पर रोक लगाने की इच्छा शक्ति तो दिखाई लेकिन वक्फ के विराट विस्तार के आने वह बहुत बौनी दिखाई देती है। पिछले वर्ष दिसंबर में ही वक्फ बोर्ड ने फिर से लखनऊ में एक सौ करोड़ की भूमि पर अपना दावा ठोंक दिया। जब तक इस बोर्ड पर कोई सख्त कानून नहीं लाया जाता, ये अपने दावें कश्मीर से कन्याकुमारी तक ठोंकते ही रहेंगे। सैकड़ों प्रकरण अदालतों में विचाराधीन हैं लेकिन उन पर कोई निर्णय नहीं आता। अब आवश्यकता है कि वक्फ बोर्ड पर लगाम लगाई जाए और इनके कब्ज़े से शासकीय भूमियों को मुक्त कराया जाए।
वक्फ के हितैषी के रुप में कार्य किया
भाजपा ने केंद्र में आने के बाद भले ही वक्फ बोर्ड के प्रति सख्त रुख दिखाया लेकिन बाद में उसने वक्फ के हितैषी के रुप में कार्य किया। भाजपा ने केंद्र में आते ही वक्फ संपत्तियों के रिकॉर्ड का 100 प्रतिशत डिजिटलीकरण कर दिया। ये कार्य केंद्र सरकार 2019 तक ही कर चुकी थी। इस डिजिटलीकरण के चलते बहुत सी गायब सम्पत्तियों पर वक्फ ने अपना हक़ जताया। इस मामले में अमित शाह ने भी सार्वजनिक रुप से स्वीकार किया कि नब्बे प्रतिशत से भी अधिक वक्फ सम्पत्तियों का डिजिटलीकरण उनकी सरकार में किया गया है। हमें ये भी नहीं भूलना चाहिए कि भाजपा के केंद्र में आने के बाद वक्फ की सम्पत्तियों में लगातार विस्तार होता रहा जबकि इसे रुकना चाहिए था।