महज 14 महीने में किसी विदेशी कंपनी को देश के एक नामी कंपनी के साथ मिलकर देश में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय उड़ान भरने की इजाजत दे दी गई हो वो भी उस सरकार के दौरान जिसपर पॉलिसी पैरालेसिस का दाग हो। हम बात कह रहे हैं, भारत में एयरएशिया को उड़ान भड़ने की इजाजत देने की प्रक्रिया की। एयरएशिया ने इस संदर्भ में अपना पहला दस्तावेज साल 2013 के फरवरी में जमा किया था और फिर सारी प्रक्रिया पूरी करते हुए उसे साल 2014 के मई में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय उड़ान भरने की इजाजत दे दी गई। जबकि इस दौरान नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने इजाजत देने से मना करने के अलावा प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए थे। ऐसे में सवाल उठता है कि ऐसे कैसे संभव हुआ? आरोप है कि एयर एशिया सौदे के लिए पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम के अधीन काम कर रहा एफआईपीबी इसके लिए कुछ ज्यादा ही उत्सुक था। इससे स्पष्ट संकेत मिलता है कि इस मामले में चिदंबरम की संलिप्तता थी।
मुख्य बिंदु
*सिर्फ 14 महीने के रिकॉर्ड टाइम में एयरएशिया को देश में हवाईसेवा शुरू करने की मिल गई इजाजत
*इस मामले की जांच कर रही सीबीआई ने दर्ज अपनी एफआईआर में दस लोगों को आरोपी बनाया है
देश में कम दर पर हवाई सेवा शुरू करने के लिए एयरएशिया और टाटा समूह ने संयुक्त रूप से प्रस्ताव दिया था। इस प्रस्ताव को तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम के नियंत्रण वाले विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड ने रिकार्ड समय में मंजूरी दे दी। मालूम हो कि 2013 में एयरएशिया ने टाटा समूह के साथ कम दर पर घरेलू हवाई सेवा शुरू करने की योजना बनाने की आधिकारिक तौर पर घोषणा की थी। इसी सप्ताह उसने क्वालालामपुर स्टॉक एक्सचेंज को यह बताया कि उसने टाटा सन्स और टेलेस्ट्रा ट्रेडप्लेस के व्यवसायी अरुण भाटिया के साथ मिलकर हवाई सेवा शुरू करने की मंजूरी के लिए भारत के एफआईपीबी में आवेदन दिया था। और देखिए नागरिक उड्डयन मंत्रालय की सारी आपत्तियों को दरकिनार करते हुए 6 मार्च 2013 को एफआईपीबी ने मंजूरी दे दी।
इतना ही नहीं इसके परिणामस्वरूप 20 सितंबर 2013 को नागरिक उड्डयन मंत्रालय से अनापत्ति प्रमाणपत्र भी मिल गया और जबकि 2014 के आम चुनाव का अंतिम चरण समाप्त होने ही वाला इसी बीच 7 मई 2014 को नागरिक उड्डयन मंत्रालय के निदेशक से उड़ान के लिए कोई आपत्ति नहीं का भी पत्र मिल गया। इस तरह एयरएशिया को महज 14 महीने में भारत में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय हवाई सेवा की मंजूरी मिल गई।
हालांकि अभी तो सीबीआई जांच की निगरानी में है। सीबीआई, एयरएशिया द्वारा भारत में हवाई सेवा शुरू करने के लिए मंजूरी प्रक्रिया को तेज करने तथा जरूरत के हिसाब से भारतीय उड्डयन नीति में बदलाव लाने के लिए सरकारी अधिकारियों तथा नेताओं के साथ मिलकर साजिश करने की जांच कर रही है। इस मामले में दर्ज एफआईआर में सीबीआई ने जिन दस लोगों को आरोपी बनाया है उनमें से एक एयरएशिया समूह के मुख्य कार्याकारी अधिकारी (सीईओ) टोनी फर्नांडिस का नाम भी शामिल है। सीबीआई ने पूछताछ करने के लिए उसे समन भी जारी कर रखा है।
इसमें तो कोई दो राय नहीं जिस जल्दबाजी में एयरएशिया को देश हवाई सेवा शुरू करने कि लिए प्रक्रियाओं से लेकर नीति निर्माण तक में जल्दी दिखाई गई है इससे तो साफ हो गया है कि उसके पीछे कोई जबरद्स्त छिपा हुआ हाथ काम कर रहा था। वो भी तब जब तत्कालीन नागरिक उड्डयन मंत्री अजित सिंह ने एयरएशिया को इसकी मंजूरी देने का खुला विरोध किया था। इसके लिए उन्होंने अपने ही मंत्रिमंडल द्वारा 20 सितंबर 2012 को नागरिक उडड्यन में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को लेकर लिए निर्णय का हवाला भी दिया था। मंत्रिमंडल ने निर्णय लिया था कि कोई भी देश में नई हवाई सेवा शुरू नहीं कर सकता है। अगर कोई इस संदर्भ में इच्छुक है भी तो वह पहले से चल रही सेवा में निवेश कर सकता है लेकिन कुछ ही दिन बाद भारत सरकार ने कैबिनेट के फैसले की दोबारा समीक्षा की और फिर उसे बदलकर विदेशी हवाई सेवा संचालकों को भारत में अपनी सेवा शुरू करने के साथ किसी कंपनी में निवेश करने का फैसला दिया है।
इस मामले में अजित सिंह के बयान के मुताबिक एयरएसिया और टाटा ने की योजना भारत में इस क्षेत्र में बिल्कुल नया उद्यम लगाने की थी। जिसमें एयरएशिया की 49 फीसदी, टाटा सन्स की 30 प्रतिशत और अरुण भाटिया की 21 प्रतिशत हिस्सेदारी होने वाली थी। हालांकि बाद में भाटिया ने एयरएशिया का पूरा नियंत्रण होने का आरोप लगाते हुए 2016 में इसे छोड़ दिया।
मालूम हो कि भाटिया के बेटे अमित की शादी एलएन मित्तल की बेटी वनिशा मित्तल से हुई थी। एयएशिया को मंजूरी मिलने में कई बाधाएं थी, लेकिन ये दोनों एयरएशिया को एफआईपीबी से मंजूरी मिलने के प्रति काफी आश्वस्त थे। वाकई में महज 30 दिनों के अंदर ही एयरएशिया को एफआईपीबी की मंजूरी मिल गई। आखिर जिस काम के लिए सालों लग जाते हैं, वहीं काम इतनी जल्दी कैसे निपट गया? अपनी लेटलतिफी के लिए प्रसिद्ध वित्त मंत्रालय में आखिर इतनी तेजी से फाइल कैसे आगे बढ़ गई? जो अजित सिंह एयरएशिया को मंजूरी देने के इतने खिलाफ थे आखिर कैसे तैयार हो गए? नागरिक उड्डयन मंत्रालय में जो लोक इस प्रोजेक्ट के खिलाफ थे आखिर कैसे मान गए या मना लिए गए?
अब जब सीबीआई जांच कर रही है तो इन सारे सवालों के जवाब अवश्य मिल गए हैं, लेकिन शुरुआती जांच से जो तथ्य सामने आए हैं उससे तो स्पष्ट है कि तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम के नियंत्रम में काम कर रहा एफआईपीबी इस सौदे को फाइनल करने में कुछ ज्यादा ही उत्सुक था। इसलिए यह संभव हो भी पाया।
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URL: was, UPA government changes FIPB rules to benefit Air Asia?
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