श्वेता पुरोहित। जो साधक अपने स्वास्थ्य, बुद्धि और सुख को सदा बनाए रखना चाहे, वो प्रातःकाल में ब्रह्म मुहूर्त में अचूक उठ जाए।
- अष्टांग हृदय सूत्र स्थान 2.1
ब्रह्ममुहुर्त आठों प्रहरों का राजा है।
इस समय बिस्तर त्याग कर दीजिए।
शास्त्र कहते है इस समय प्रकृति अमृत बरसाती है। इस समय चलती वायु को हमारे पूर्वजों ने प्रकृति की दी गयी निःशुल्क औषधि कहा है।
इसीलिए कहते है कि, ‘सौ दवा, भोर की एक हवा।’
‘One morning breath is equal to Hundred medicines’
यह समय परमात्मा से बातचीत करने का समय है। इस समय परमात्मा का नाम-स्मरण कर भगवद् प्राप्ति के लिए प्रयास करने पर मनुष्य की बुद्धि स्थिर, हृदय शांत और शरीर दीर्घायु होता है।
हमारे ऋषियों ने यह सिद्ध किया है कि आरोग्य, दीर्घ-जीवन, सौन्दर्य, धन, विद्या, बल, तेज, प्रार्थना, ध्यान, आराधना व अध्ययन हेतु ब्रह्म मुहूर्त अत्यधिक फल देता है।
इसलिए हमारे पूर्वज कहते थे कि, हर रात के पिछले प्रहर में, एक एक करके मनुष्य की संपत्ति लुटती रहती है। इसलिए ‘जो सोवत है सो खोवत है, जो जागत है सो पावत है।’
‘One who sleeps loses, one who wakes achieves.’
ब्रह्ममुहुर्त में कैसे उठें?
१. दिनभर में शरीर को थकान हो इतना शारीरिक काम ज़रूर करें। शरीर को तामसिक और आलसी ना होने दें।
२. प्रयास करें कि शाम का भोजन प्रसाद सूर्यास्त से पहले पा लें। देर से देर 7:30 तक पा लें। और वह भोजन हल्का रखें। पेट भर के ना खाएँ।
३. रात को 9 बजे शयनचर्या (जो इस पुस्तक के अंतिम भाग में है उसे) पूर्ण कर सो जाएँ, अंतिम से अंतिम 10 बजे।
४. सोने से पूर्व अपने मन को आज्ञा दें कि प्रातःकाल इस समय पर उठना हैं। मनुष्य का मन उसको उसी समय पर जगा देगा। अलार्म का सहारा ना लें उतना ही उत्तम है।
अगर इतना आप ५-६ दिन कर लोगे तो ब्रह्म मुहूर्त में आसानी से उठ जाओगे। फिर उठकर सबसे पहले आपको करना है।