विपुल रेगे। यदि रणबीर कपूर की ‘एनिमल’ के ख़िलाफ़ सिर्फ शोभा डे की एक आवाज़ समाज से उठती है, तो एक राष्ट्र के रुप में हमें सोचने की ज़रुरत है। ज़रुरत ये सोचने की है कि किसी का गला रेते जाने के दृश्य के कारण फिल्म ब्लॉकबस्टर हो रही है तो ये हमारे समाज में बढ़ रही हिंसक पृवत्ति का परिचायक है। ‘एनिमल’ के रिलीज हो जाने के बाद बहुत से सवाल उठ रहे हैं। हालाँकि शोभा डे और गीतकार स्वानंद किरकिरे ने फिल्म में दिखाए गए ‘अति पौरुषवाद’ को लेकर आलोचना की है।
वामपंथी विचारधारा वाली लेखिका और स्तंभकार शोभा डे ने अपने एक्स अकाउंट पर एक वीडियो साझा किया है। उसमे वे कहती हैं ‘हाय, मैं शोभा डे हूं और यह कोई फिल्म समीक्षा नहीं है। जैसा कि मैंने पहले की पोस्ट में कहा था, मैं एनिमल नहीं देखूंगी। और यह आपको यह बताने के लिए नहीं है कि ऐसा न करें। इसे देखें। यह सिर्फ इतना है कि मैंने जो समीक्षाएँ पढ़ी हैं और जिन लोगों ने इसे देखा है, उनसे ऐसा लगता है कि न केवल फिल्म निर्माताओं के साथ, बल्कि हमारे समाज के साथ भी कुछ भयानक गलत हुआ है। निएंडरथल अल्फ़ा पुरुष के इस तरह के व्यवहार को नज़रअंदाज़ किया जाना चाहिए, इसे प्यार माना जाना चाहिए। लेकिन खून-खराबे और हिंसा और आपत्तिजनक भाषा और जिस नायक की सराहना की जा रही है, वह एक महिला को अपने जूते चाटकर अपना प्यार साबित करने के लिए कह रहा है और हमें लगता है कि यह महान सिनेमा है।’
शोभा डे की चिंता पर गौर करना चाहिए। वाकई में इस फिल्म में पुरुषों को निएंडरथल अल्फ़ा पुरुष ही दिखाया गया है। इसे सरल भाषा में समझाने के लिए ‘बाहुबली 2’ का उदाहरण यहाँ देना होगा। उस फिल्म के एक दृश्य में दिखाया गया कि पानी में डोलती नाव पर जाने में अमरेंद्र बाहुबली की पत्नी देवसेना को असुविधा हो रही है। उसकी परेशानी समझ कर अमरेंद्र पानी में उतर जाता है और अपने कंधों का पुल बना देता है। उसके कंधों पर पैर रखती हुई देवसेना नाव की ओर जाती है। ‘एनिमल’ का विलेन अबरार उल हक गूंगा है। उसकी अभी-अभी शादी हुई है। एक आदमी सूचना लाता है कि अबरार के भाई को मार दिया गया है। अबरार सूचना देने वाले को बुरी तरह मारता है। उस आदमी के खून में सना अबरार सभी मेहमानों की मौजूदगी में अपनी नई नवेली पत्नी को सोफे पर गिराकर बलात्कार करता है।
इस फिल्म को बनाने वाला निर्देशक शायद नारी घृणा का शिकार है। इस फिल्म के हीरो की मानसिकता भी ठीक ऐसी ही दिखाई गई है। शोभा डे का विरोध प्रखर और नैतिक है। उन्होंने अपने वीडियो में झकझोरने वाली बात कही है। काश पूरे देश के प्रभावशाली व्यक्तित्व इस फिल्म को लेकर चिंता प्रकट करते। रणबीर कपूर की ‘एनिमल’ ब्लॉकबस्टर सिद्ध हुई है। इसे परिवार देखने नहीं जा रहे हैं। जा भी नहीं सकते। ऐसी हिंसक वृति वाला कौन परिवार होगा। भारतीय सेंसर बोर्ड ने फिल्म को ‘ए’ सर्टिफिकेट देकर झंझट से स्वयं को मुक्त कर लिया, जबकि रक्तपात वाले दृश्यों को काटा जाना चाहिए था। पिछले कुछ समय से देखा जा रहा है कि मर्दानगी भरे किरदारों को युवा लड़के पसंद कर रहे हैं। ऐसा इसलिए भी हुआ क्योंकि कुछ फिल्मों ने नारीवादी वाली फिल्मों में अति कर दी। शायद उसी का उत्तर ‘एनिमल’ जैसी फिल्मों से दिया जा रहा है।
इसी निर्देशक की ‘कबीर सिंह’ ऐसी ही मर्दानगी के चलते सफल हुई। संदीप रेड्डी वांगा की ‘कबीर सिंह’ का पुरुषत्व स्वीकार्य था क्योंकि वह परदे पर स्वाभाविक लगता था। लेकिन ‘एनिमल’ में तो निर्देशक ने अपने हीरो और विलेन को सच में निएंडरथल अल्फ़ा पुरुष दिखाया है। शोभा डे का कथन गलत नहीं है। इसके एक दृश्य में रणबीर कपूर का किरदार बंगले में नग्न घूमता दिखाया गया है। सन 2017 तक हमारा समाज ‘अमरेंद्र बाहुबली’ की सौम्य मर्दानगी को सराह रहा था और ठीक छह साल में हमारा समाज एक ऐसे नायक को सराहने लगा, जो बात-बात में नंगा घूमता है। पल-पल में सेक्स की बात करता है और बाहर आवश्यकता पड़ने पर उस आदमी से उसका चड्ढा मांग लेता है, जो उसे हथियार बेचने आया है।
नंगाई की इस ऊंचाई का विरोध शोभा डे ने किया तो क्या बुरा किया ? शोभा डे और स्वानंद किरकिरे की प्रशंसा होनी चाहिए। यदि ये न होता तो संदीप रेड्डी वांगा जैसे निर्देशकों को पता कैसे चलता कि हमारा समाज गूंगी गुड़िया नहीं है। वह बोल सकता है। उसकी समाज के प्रति एक ज़िम्मेदारी है, भले ही संदीप रेड्डी वांगा अपनी ज़िम्मेदारी न समझे।