भारत में सुप्रीम कोर्ट के आदेश बस मानो किताबों में धुल फांकने के लिए है! 2007 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक बंद या आदोलन के दौरान सार्वजिनीक संपत्ति को नष्ट करने के जिम्मेदार संगठन को नुकसान की भरपाई करनी होगी लेकिन हर साल दुनिया में सबसे ज्यादा सार्वजनिक संपत्ति नष्ट करने वाले भारत में आज तक किसी राजनीतिक संगठन इसके लिए दंडित नहीं किया गया। सुप्रीम अदालत ने 2007 के बाद कई बार सख्त आदेश जारी किए उसके बाद देश के कई प्रांतों ने यह भी नियम बनाए कि बंद और दंगा फसाद के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने वालों की पहचान होने पर उसका नागरीक अधिकार छीन लिया जाएगा 2016 में आंध्र प्रदेश और 2018 में उत्तर प्रदेश सरकार ने इसे कानून बनाने का हवाला दिया लेकिन अभी तो कोई अमल नहीं हुआ। यह साफ करता है कि देश में कानून का राज कायम करने के प्रति भारत की प्रांतीय सरकार की कितनी सजग हैं और उनके लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मायने क्या हैं !
पेट्रोल डीजल के बढ़ते दाम पर सरकार की नीतियों के खिलाफ बंद का संवैधानिक हक है देश की लोकतांत्रिक जनता और विपक्ष के पास! लेकिन पेट्रोल डीजल के बढ़ते कीमत के नाम पर बंद के दौरान जो नंगा नाच देश के कई हिस्सों में हुआ उससे से साफ लगता है कि देश में न तो कानून का राज है न ही सुप्रीम अदालत के आदेश के कोई मायने! सरकारों के पास तो इतना नैतिक बल ही नहीं की उसके इकबाल की चर्चा की जाए। बिहार से लेकर गुजरात तक सड़कों पर उत्पात मचाया गया। बिहार के जहानाबाद में दो साल की मासूम बच्ची की जान ले ली गई। करोड़ो की संपत्ति नष्ट कर दी गई और कांग्रेस की अगुआई में 21 दलों वाला विपक्ष खुश है कि उसका बंद सफल हो गया।
2007 में सुप्रीम कोर्ट आदेश है कि बंद या किसी भी आंदोलन के दौरान यदि सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाया जाता है तो उसकी भरपाई बंद या आंदोलन बुलाने वाले संगठन को करना होगा। लेकिन आज की तारीख तक ऐसा कोई मिसाल याद नहीं आता कि किसी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का पालन किया हो या अपने आदेश का मजाक उड़ते देख सुप्रीम अदालत ने कभी कोई संज्ञान लिया हो। हाल ही में अगस्त महीने में कावंरियों द्वारा उत्पात मचाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की थी बंद के या आंदोलन के दौरान विरोध करने वालों को दुसरों की संपत्ति जलाने के बदले अपनी संपत्ति जलाना चाहिए। अब जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन सरकारें नहीं करती हो उसकी टिप्पणी को आम लोग कितनी गंभीरता से लेगी इसकी तो कल्पना ही की जा सकती है।
कांवड़ियों द्वारा सड़को पर अगस्त माह में हुई हिंसात्मक घटना को गंभीरता से लेते हुए भारत के अटार्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि बंद के दौरान हिंसा या सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने के लिए जिले के एसपी को जिम्मेदार बानाना चाहिए । अहम यह है कि क्या जिले के पुलिस कप्तान को इसके लिए जिम्मेदार बनाने से समस्या का समाधान हो जाएगा! सोशल मीडिया के इस दौर में जब हर उत्पाती कैमरे पर है। कहां से उसे ताकत मिलती है कि वो दर्जनों कैमरे के सामने बिहार के जहानाबाद और कटिहार में एंबूलेंस को रोक कर मासूम की जान लेन और लाखो लाख की संपत्ति नष्ट कर देता है। साफ है कि उसके अंदर कानून का कोई खौफ नहीं क्योंकि उसे लगता है कि इस देश में सुप्रीम कोर्ट के आदेश बस किताबी हैं।
इंस्टीट्यूट फॉर इकॉनोमिक्स एंड पीस के 163 देशों के अध्ययन में पाया गया कि 2017 में भारतीय अर्थ व्यवस्था को 1190 अरब डॉलर का नुकसान हुआ जो रुपये में 80 लाख करोड़ से ज्यादा है। जो भारतीय सकल घरेलू उत्पात का नौ प्रतिशत है। जातीय और भाषाई आंदोलन के नाम पर भारत की जनता इतनी हिंसक हो जाती है कि सार्वजनीक संपत्ति को नुकसान को फूंकने में उसे आनंद आने लगता है। 10 सितंबर को भारत बंद पेट्रोल और डीजल के नाम पर था लेकिन बिहार में कांग्रेस द्वारा बुलाए गए बंद में शामिल जातीए पार्टियों ने इसे जाति के नाम पर उत्पात मचाया जिसमें दो साल की मासूम की जान गई और पटना समेत राज्य के अन्य इलाकों में करोड़ो की संपत्ति नष्ट कर दी गई। देश के अन्य इलाकों में ट्रेने और बसों को रोक कर आम आदमी को परेशान किया गया। सोशल मीडिया के कैमरों में बंद हर दृश्य भयावह थे। पेट्रोल की आग से बहुत भयावह।
बंद में शामिल उत्पाती लोगों ने लठ्ठ लेकर सरकार को नहीं आम आदमी को सड़कों पर दौराया और उनकी लाखों की गाड़ी और जिंदगी भर की कमाई तबाह कर दी। कानून को हाथ में लेकर सड़कों पर उत्पात मचाते हुए सुप्रीम अदालत और जनता की चुनी सरकार को कुछ मवालियों द्वारा ठेंगा दिखाना साबित करता है आम जन में न तो कानून का भय है न सरकार का इकबाल है। सवाल यह है लगभग 11 साल बाद भी सुप्रीम अदालत के फैसले को सरकारें लागू क्यों नहीं कर पाई जब कि आदेश के मुताबिक राजनीतिक दल या संगठन को बंद या आंदोलन के दौरान हलफनामा देना जरुरी है कि किसी भी तरह सार्वजनीक संपत्ति के नुकसान के वो जिम्मेदार हैं।
राज्यों ने इसके लिए कई सख्त कानूनो बनाए लेकिन इसे अमलीजामा कैसे पहनाया जाए इसकी कोई नीति उनके पास नहीं। यही कारण है कि इंस्ट्यूट फॉर इकॉनोमिक एंड पीस के मुताबिक भारत अपनी बंद और आंदोलने के नाम पर सरकारी संपत्ति और खुद को नष्ट करने में 163 देशों में सबसे आगे भाग रहा है उस पर नियंत्रण की चिंता न सरकार को है न सुप्रीम अदालत को।
कांग्रेस का भारत बंद आरोपियों के भरोसे पढ़िए नीचे-
URL: Congress’s nude dance and silence of the Supreme Court in the name of Bharat Bandh
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