आप सभी को याद है, हमारे बचपन में गौरेया भी हमारी साथी हुआ करती थी। हमारे साथ हमारे आंगन में फुदकती, खेलती गौरैया हमें कितना खुशी देती। आज गौरेया मिटने के कगार पर खड़ी है। मानव ने अपने इस दोस्त को मिटा डाला है। आज गौरैया दिवस है। आइए, हम अपने बच्चों को बताएं अपने बचपन के बारे में! उन्हें सिखाएं गौरेया को बचाने के बारे में! अपने छत, मुंडेर, बालकोनी में उनके लिए खाने-पीने की व्यवस्था करें, उनके घोसलों को न उजाड़ें और उनका शिकार अपनी मांस की भूख मिटाने के लिए न करें..! एक पहल करें गौरेयों को बचाने की…
प्रकृति से जुड़ाव खुद से जुड़ाव है यही दाना पानी पहल की तासीर है, जन मानस में पर्यावरण को लेकर जन जागृति और संवेदनशील करने की यात्रा में ये भावना निरन्तर अग्रसर है । इस पहल में रूपक के रूप में खेतों में देखे जाने वाले “काग भगोड़े” को लिया है जिसे अंग्रेजी में “स्केयर क्रो” भी कहते हैं ।
ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरण की अन्य चुनौतियों को स्वीकार करते हुए उसने स्वस्थ पर्यावरण के निर्माण का बेड़ा उठाया है। उसका ह्रदय परिवर्तन हो गया है , वो अब “काग बुलउआ” या केयर क्रो” बन गया है । इंसान के सकारात्मक पक्ष को उभारते हुए दाना-पानी की यात्रा “स्केयर क्रो” से “केयर क्रो” बनाने की ओर है।
दाना-पानी पहल का मूल सिद्धान्त “प्रकृति-संस्कृति-सहक्रिया” (Nature cultural synergy) है। हमारा प्रयास है कि हम भारतीय संस्कृति की चेतना में मौजूद सहचर की भावना से आज की युवा पीढ़ी को जोडें। आज की भागती दौड़ती ज़िन्दगी में वो कुछ समय पर्यावरण और आस पास के जीव को भी दें और उनके प्रति सजग एवं संवेदनशील रहें। यह उनकी दिनचर्या का हिस्सा भी बने ताकि आने वाले समय में उनको स्वस्थ पर्यावरण मिले ।
स्वस्थ पर्यावण हेतु सभी मित्रो से उत्प्रेरक बनने का आवाहन हैं ताकि चिड़ियाँ हमेशा उड़ती रहे। चिड़ियों की घर वापसी के प्रयास में भागीदार बनें और अपने मित्रों और शुभचिंतको को इस प्रयास से जोड़े !
चलो पंखों को परवाज़ दें चिड़ियों को आवाज़ दें!
“साथ तुम्हारा अगर मिलेगा,फिर ना हम घबराएंगे, दाना रखना,पानी रखना,खाने-पीनें आयेंगे!”