सीबीआई का अफसर नंबर एक, अफसर नंबर दो पर रिश्वत लेने का आरोप लगा रहा है। अफसर नंबर दो राकेश अस्थाना कह रहा है कि रिश्वत अफसर नंबर एक आलोक वर्मा ने ली और हमें फसाया जा रहा है। मतलब कि देश की सबसे काबिल एजेंसी पर आमजन का आखिरी भरोसा है उसके शिखर पर बैठे मुखिया का खुद का दामन दागदार है! सीबीआई से यह उम्मीद तो कभी नहीं रही कि वो राजनीतिक मामलों की निष्पक्ष जांच करेगी लेकिन देश के आम जन का यह भरोसा अंत तक कायम रहा है कि उसके मामले की ईमानदार जांच राज्य पुलिस नहीं कर सकती। सिर्फ सीबीआई कर सकती है। लेकिन सालों से जिस सीबीआई का हर मुखिया एक अरबपति मीट व्यापारी के सामने जीभ लपलपाए खड़ा हो उस सीबीआई पर हम कैसे भरोसा करें कि वो हमें इंसाफ दिला पाएगा!
2013 में कोयला घोटाले के समय मामले की सुनवाई करते हुए जब सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को पिंजरे में बंद तोता कहा था तो टीवी कैमरा तब के सीबीआई निदेशक रंजीत सिंहा को तलासती थी। बाद में पता चला कि रंजीत सिंहा तो देहरादून के अरबपति मीट व्यापारी मोइन कुरैशी के लिए काम करते थे। कुरैशी उनसे 70 बार उनके दफ्तर में मिल चुका था। जांच आगे बढी तो पता चला कि रंजीत सिंहा से पहले के सीबीआई बॉस एपी सिंह भी मोइन कुरैशी के लिए काम करते थे। तब तक सीबीआई के ब़ॉस का चयन सरकार सीधे करती थी। कुरैशी पर मनीलान्ड्रींग और आयकर चोरी का आरोप था।
2014 के चुनाव से ठीक पहले उसके कई ठिकानों पर छापेमारी हुई थी। लेकिन एफआईआर 2015 में आकर हुई। दून और सेंट स्टीफेन से पढ़े मीट व्यापारी मोईन कुरैशी के कांग्रेस पार्टी में सोनिया के राजनीतिक सलाकार अहमद पटेल से और तेलगू देशम पार्टी में गहरे संबंध रहे हैं। दर्जन भर से ज्यादा कंपनियों के मालिक मोइन के पास अरबों का साम्राज्य है। राजनीतिक दलों को वो दिल खोल कर चंदा देता था। इसीलिए उसके ठिकानों पर छापेमारी तो हुई लेकिन कभी उससे पूछताछ नहीं हुई। कुरैशी के जिन 12 ठिकानो पर छापेमारी हुई उसमें एक ठिकाना सीबीआई के पूर्व निदेशक एपी सिंह का था। राजीव गांधी और बाद में सोनिया गांधी के सुरक्षा अधिकारी रहे सिंह उस समय यूपीएसी के सदस्य थे। छापेमारी में मिले दस्तावेज के बाद सीबीआई के निदेशक रहे एपी सिंह को यूपीएसी सलाहकार का पद भी खोना पड़ा। रंजीत सिंहा से उनके संबंध का मामला पहले ही सुप्रीम कोर्ट में पेश किया जा चुका था कि कैसे मोइन कुरैशी की बेधड़क सीबीआई दफ्तर में इंट्री थी।
एक सामान्य सा दिखने वाले मीट व्यापारी ने जब अपने बेटी पर्निया की शादी कांग्रेस नेता जतिन प्रसाद के रिश्तेदार अजित प्रसाद से की और उसमें करोड़ो रुपये खर्च किए तो देश की सभी जांच एजेंसी की नजर उस पर पड़ी। सीबीआई जैसी जांच एजेंसी भी उसके अपराध के ठिकानो का पता लगाने में जुट गई। ठिकानों का पता तो सीबीआई को चला लेकिन उसे अपराधी बनाने के बदले सीबीआई उससे वसूली के धंधे में लिप्त हो गई। वर्मा से पहले के दोनो निदेशक के दागदार दामन इसके सबूत पेश कर रहे थे। कुरैसी को जब संदेह हुआ कि वो गिरफ्त में आ सकता है तो अक्टूबर 2016 में विदेश भाग गया। एक साल बाद अधिकारियों द्वारा भरोसा में लेने के बाद जांच में मदद के नाम पर वह वापस आया। सरकार तो बदल गई लेकिन कुरैशी पर शिकंजा कसने की रफ्तार नहीं बदली।
2017 में तेज तर्रार आईपीएस दिल्ली के पूर्व पुलिस कप्तान आलोक वर्मा को सीबीआई का कमान मिला। वर्मा नई लोकपाल के तहत चयनित थे जिस पर प्रधानमंत्री नेता विपक्ष व देश के मुख्य न्यायाधीश की मुहर लगी थी। वर्मा के चुने जाने से पहले राकेश अस्थाना कार्यकारी निदेशक के रुप में कार्यरत थे। अस्थाना गुजरात कैडर के थे गोधरा ट्रेन अग्निकांड और चारा घोटाला की जांच के कारण सुर्खियों में रहे थे। लेकिन उन्हें गुजरात कैडर का होने और नरेंद्र मोदी का करीबी बताकर संदेह के घेरे में लिया गया। प्रशांत भूषण इसके लिए बकायदा सुप्रीम कोर्ट गए। इस कारण अस्थाना सीबीआई निदेशक बनते बनते रह गए। लेकिन नए निदेशक आलोक वर्मा को राकेश अस्थाना का नंबर दो पर रहना भी नहीं सुहा रहा था लिहाजा उन्होने सीबीसी में उनके प्रमोशन और सीबीआई में नंबर दो होने को लेकर शिकायत दर्ज की। सीवीसी और सुप्रीम कोर्ट से अस्थाना को क्लीनचीट तो मिल गई लेकिन दोनों अधिकारियों का एक दूसरे को नीचा दिखाने का सिलसिला खत्म नहीं हुआ।
राकेश अस्थाना मोइन कुरैशी मामले की जांच के मुखिया थे। इस बीच एक शिकायत हैदराबाद के व्यापारी और मोइन केस के सह-आरोपी सतीश बाबू सना ने अस्थाना के खिलाफ की। शिकायत के मुताबिक इस केस से उसके नाम को रफा-दफा करने के लिए पांच करोड़ रुपये की मांग की गई। दो करोड़ रुपये दुबई में किसी मनोज दूबे को दिए गए। इस बाबत अस्थाना के खिलाफ केस दर्ज कर लिया गया। बाद में उसी सतीश बाबू के हवाले से एक गवाही यह भी हुई किसी बिचौलिए ने सतीश बाबू से कहा कि उसका सीबीआई निदेशक से सीधा संबंध है और तीन लाख रुपये इस बाबत आलोक वर्मा को दिए गए। अस्थाना इस बाबत सना से पूछताछ करना चाहते थे लेकिन निदेशक आलोक वर्मा ने इसकी अनुमति नहीं दी।
इस मामले में जब केस दर्ज नहीं किया जा सकता तो राकेश अस्थाना ने इसकी शिकायत सीवीसी से की। इस शिकायत ने ही सीबीआई के शीर्ष पर बैठे दोनो सर्वोच्च अधिकारी के दामन को दागदार कर दिया। इन आरोपों में कितना दम है यह साफ होना बाकी है। अच्छा हो कि यह सिर्फ सीबीआई के दोनो अधिकारियों के बीच के इगो की लड़ाई ही साबित हो। क्योंकि झूठा ही सही सीबीआई का देश की जनता में एक सम्मान है।
दो अधिकारियों के इगो की लड़ाई का राजनीतिक रंग कहीं इस सुप्रीम एजेंसी के भरोसे को पूर्णतः खत्म न कर दे। हालात ऐसे आ गए कि सीबीआई के दोनो अधिकारी को बाहर किए बिना इस बात की जांच संभव नहीं थी कि दोनो अधिकारी में कौन सच्चा है? मामले की जांच इनके कनिष्ठों के जिम्मे नही सौंपा जा सकता था। इसकी जांच सिर्फ एसआईटी कर सकती है। वर्तमान हालात में बिना सुप्रीम कोर्ट की निगरानी के वह संभव नहीं।
क्या है वर्मा औऱ अस्थाना के इगो टकराहट का पूरा मामला..
1. सीबीआई निदेशक बनते ही आलोक वर्मा ने अपने नंबर टू राकेश अस्थाना के प्रमोशन की शिकायत सीवीसी से की। सीवीसी के साथ साथ सुप्रीम कोर्ट ने भी एक जनहित याचिका खारिज कर अस्थाना को क्लिन चीट दे दी।
2. जुलाई 2018 में वर्मा ने कहा कि अस्थाना भले ही नंबर 2 हैं लेकिन वे मेरी अनुपस्थिति में बैठक नहीं करेंगे। क्योंकि उन पर भ्रष्टाचार का आरोप है।
3. 24 अगस्त को अस्थाना ने पलटवार कर वर्मा के खिलाफ ही आरोप लगा दिया कि वे भ्रष्ट हैं मुझे फसा रहे हैं। शिकायत सीवीसी और कार्मिक मंत्रालय से की गई।
4.केस के आरोपी सतीश बाबू सना ने बयान दिया कि उसने अपने सहयोगी मनोज दूबे के माध्यम से दुबई में सीबीआई अधिकारी को तीन राउंड में तीन करोड़ रुपये दिए। शिकायत के मुताबिक वो अघिकारी अस्थाना थे।
5. सीबीआई ने अस्थाना के खिलाफ मामला दर्ज किया तो एक औऱ मामला सामने आया कि उसी गवाह से एक दलाल ने कहा कि उसका संबंध आलोक वर्मा से है जो सीबीआई निदेशक हैं। वो पूरा मामला खत्म कर सकता है।
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