जब से सरकार ने संसद से सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुसूचित जाति और जनजाति पर दिये गये निर्णय को पलट कर उसके पुराने मूल स्वरूप में ले आयी है तब से भिन्न भिन्न हिंदुत्व के प्रहरियों ने, जो अब हिन्दू से सवर्ण हिन्दू बन गये है, मुझको टैग करके इस विषय पर बोलने को कह रहे है। मेरा आरक्षण को लेकर एक निश्चित मत है और वह मत किसी भी तरह से संसद द्वारा उसको मूल स्वरूप पर फिर से ले आने पर नही बदला है। मैं पहले से ही विकल्प के अभाव में समर्थन में था और आज भी हूं।
जब भारत मे आरक्षण का प्राविधान दस वर्षों के लिये लाया गया तब संविधान के मूर्तिकारों ने उस वक्त यह अपेक्षा की थी कि भविष्य में संसद में आये भारतीय संविधान के प्रहरी, इसकी समीक्षा राजनीति से ऊपर उठ कर राष्ट्र हित मे करेंगे। लेकिन हुआ यह कि न संसद में आये ये सांसद, भारत की सामाजिक संरचना के प्रति ही विवेकशील रहे और न ही शासन व्यवस्था ने, इस दबे कुचले वर्ग को, भारत की मुख्यधारा में लाने के लिये ईमानदार रही। उनकी सरकारी नौकरी से ज्यादा कुछ और देने के कोई नियत भी नही थी।
भारत के लिये यह सत्य है की 50 से लेकर 70 के दशक की राजनीति पूरी तरह तथाकथित सवर्ण कहे जाने वाले हिन्दुओ के हाथ रही थी और वे, इस वर्ग को, आत्मविश्वास और स्वाभिमान देने में असफल रहे थे। कांग्रेस ने लगातार शासन में बने रहने के लिये भारत के ही भविष्य को अपने साथ ही बांध लिया और अगले चुनाव में जीतने से ज्यादा कुछ सोचा ही नही। उन्होंने भारत के बहुत बड़े वर्ग को, राजनैतिक वातावरण में स्वतंत्र होकर, समाज की सोच व आचार विचार में परिवर्तन लाने लायक बनने ही नही दिया।
हम आज जो यह चिंतन कर रहे है उसमे यह समझना आवश्यक है कि आखिर स्वतंत्रता के बाद से किनको प्रश्रय व राज के तन्त्र का हिस्सा बनाया गया था? कांग्रेस ने जहां 1956 में जमींदारी प्रथा को एक तरफ कानूनी रूप से ध्वस्त किया था वही उसने अंग्रेज़ो की शासन व्यवस्था का अनुसरण करते हुये, पुराने रसूख वाले राजा रजवाड़े, नवाब, चौधरी, राव साहब, पंडित जी, बाबू साहब लोगो को नये खद्दर पहने खद्दरी सामंती बनाया, जो ज्यादातर सवर्ण हिन्दू थे। इन्ही के सहारे, कांग्रेस ने भारत के ग्रामीण अंचल से एक मुश्त वोट पाने की परंपरा की शुरुवात की और बैलट बॉक्स में फ़र्ज़ी पड़ते वोटों के सहारे, कांग्रेसी तन्त्र जीतता रहा।
इसका परिणाम यह हुआ कि भारत का लोकतंत्र जहां सिर्फ संख्याबल पर ही आधारित रह गया, वहीं अंग्रेज़ो के काल के सामंतों को पुनः प्रतिस्थापित किये जाने से, सामाजिक व आर्थिक विषमताये वैसे ही चलती रही। स्वतंत्रता के बाद से ही, वामपंथी रोमांस में पड़े, कांग्रेसी शासन तंत्र ने हिन्दुओ में, वर्ण व जाति के बीच के अंतर को भारतीय समाज में पुनःव्याख्यित नही होने दिया गया। जिसका दुष्परिणाम यही हुआ है कि वर्ण व्यवस्था का सही परिपेक्ष्य, वोट की राजनीति की कंदराओं में अंधकारमय हो गया और जातिगत समीकरणों व सँख्याबल को ही राजनीति में सफल होने का मुख्यअस्त्र बन गया।
हम आज यह अवश्य कह रहे है कि यह अनुसूचित जाति व जनजाति हमारे हिन्दू धर्म मे शुरू से नही रहा है बल्कि यह मुगलों व बाद में अंग्रेज़ो के शासनकाल में बनाई गई छद्म व्यवस्था थी लेकिन उसके साथ यह भी कटु सत्य है कि इस बनाई गई व्यवस्था का हमारे पुरखों ने कम से कम दो शताब्दियों तक उपभोग व अपने से नीचे समझी जाने वाली जाति का शोषण किया है। हमे इसी समाजिक बीमारी को तोड़कर नये समाजिक व्यवस्था का निर्माण करना था लेकिन कांग्रेस ने अंग्रेज़ो के पुराने हितैषियों को भारत के नवनिर्माण में अपना स्तंभ बनाकर, पुरानी ही सामाजिक बीमारियों को जीवित रहने दिया। उसके साथ ही इस वर्ग को अपनी छत्रछाया में बनाये रखने के लिये, बौद्धिक आरक्षण द्वारा पंगु बना दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि सामाजिक उत्थान से ज्यादा इस वर्ग की राजनीति करने वालो का उत्थान हुआ है। आज हम जो भी देख रहे है यह अपने पूर्वजों के कृत्यों का ही परिणाम देख रहे है।
हां, मैं यह मानता हूँ कि आरक्षण पहले सही था और अब इसमे कुछ गलत हो चुका है क्योंकि 6 दशकों से आरक्षण का लाभ प्राप्त करने वालों का ही खुद एक नया वर्ग बन गया है जिसने अनुसूचित व जनजाति के बड़े वर्ग को आरक्षण के लाभ से वंचित रखा है। इसी के साथ मैं इस वास्तविकता को स्वीकार करता हूँ कि आज की परिस्थितियों में इसमे परिवर्तन नही किया जा सकता है। जब स्वयं वह हिन्दू जो 2014 से पहले इस सबको लेकर बने कानूनों को बनाने वाले से यह सब प्रश्न न करके, आज मोदी जी की सरकार से पूछ रहा है, तब हम लोग कैसे अनुसूचित व जनजाति वर्ग के लोगो से यह अपेक्षा करे कि वह यह स्वीकार कर ले कि 2014 को आयी मोदी जी की सरकार दलित विरोधी नहीं है?
यह एक विडंबना है कि जिस कांग्रेस व उसकी राजनीति ने यह अनुसूचित जाति व जनजातियों को लेकर बेलगाम आरक्षण व उनको संरक्षण देने लिये कानूनों का मकड़जाल बनाया था, वो ही उस मोदी सरकार को, जिसने स्वतंत्रता के बाद पहली बार धरातल पर उनके उत्थान के लिये वास्तविक काम किया है उसको दलित विरोधी बताकर कटघरे में खड़ा कर रही है?
क्या हम लोगो को यह बात नही समझ मे आती है कि जिस कांग्रेस के इकोसिस्टम का, सर्वोच्च न्यायालय में डंका पिटता हो तो इस तरह का क्रांतिकारी फैसला अब क्यों दिया है? यह फैसला आया ही इसी लिये है कि मोदी सरकार अपने समर्थकों के दबाव में( यहां समर्थक सही भी है), सर्वोच्च न्यायलय के निर्णय को स्वीकार करले जिससे, मोदी सरकार पर ‘दलित विरोधी’ होने पर मोहर लग जाये। उनके आंकलन में यह भी था कि यदि आशा के विपरीत मोदी की सरकार, सदन द्वारा निर्णय को उलट देती है तो मोदी जी के सवर्ण हिन्दू समर्थक उनसे टूट जायेंगे। जिनको, सवर्ण हिन्दू नेताओ व मीडिया व सोशल मीडिया में कांग्रेस समूह के लिये छद्दम रूप से काम करने वालो की मदद से, भेड़ की तरह या तो कांग्रेस के बाड़े में या फिर नोटा के बाड़े में पहुंचा दिया जायेगा।
आज वर्तमान का यह दुर्भाग्य है कि जिस बिंदु पर आकर यह विषय उभरा है वहां से कोई भी सार्थक चर्चा या भविष्य के लिये उपाय नही निकाले जा सकते हैं। हमको मुसलमानों और ईसाइयों से यह शिक्षा लेनी चाहिये कि वे कैसे तमाम अंदरूनी विभाजन के बाद भी अपने धर्म की छतरी से अलग हट कर नही सोंचते है। आज जब हिन्दू, मुस्लिमो व ईसाइयों द्वारा हिंदुत्व पर कुठारघात और उनके धर्मान्तरण कराये जाने को स्पष्ट देख रहा है तब यह सवर्ण हिन्दू का दम्भ क्यों? यह ठीक है कि सभी हिन्दू अभी तक एक तराजू में तुले नही दिख रहे है लेकिन क्या इस विषमता का लाभ उन लोगो को लेने देंगे, जिन्होंने स्वतंत्रता के बाद से ही हिन्दू को बांटा व मुस्लिमो और ईसाइयों का तुष्टिकरण किया है?
आज सवर्ण हिन्दुओ का एक वर्ग जिस अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगो पर उद्वेलित हो रहा है, उसको लेकर कुछ प्रश्न खुद इनलोगो को अपने से पूछने होंगे।
* भारत मे आप लोग कितने है और अनुसूचित जाति व जनजाति की कितनी संख्या है?
* ईसाइयों और मुसलमानों द्वारा सबसे ज्यादा धर्मान्तरण किस का करा कर हिन्दुओ को उनके ही जन्मभूमि में कम किया जा रहा है?
* दंगो में घर मे दुबके भयातुर हिन्दुओ की रक्षा के लिये सड़क पर कौन सा वर्ग लड़ता और मरता है?
* हिन्दुओ के त्योहारों को सर्वजिनिक रूप से परंपरागत तरीके से मना कर कौन इसे समाज जिंदा रक्खे है?
* कुंभ में पिचके पेट, ठिठुरते ठंड में, तमाम कष्टों को झेलते हुये, सिर्फ धर्म की आस्था पर, कौन सा वर्ग अपने पत्नी, बच्चों, माता पिता को लेकर सबसे ज्यादा पहुंचता है?
* आज परंपरागत हिंदुत्व व उसकी मूल तत्त्व को कौन सा वर्ग जीवित रक्खे हुये है?
आप इन प्रश्नों के सही उत्तर अपनी अंतरात्मा से पूछे और फिर विरोध पर आइयेगा। यह कोढ़ पिछले 6 दशकों का है, जिसका ठीकरा मोदी जी पर नही फोड़ा जासकता है। मोदी जी तो 3/4 वर्षो से आपको संकेत दे रहे है कि सरकारी नौकरी से विमुख होइये और अपने पुरुषार्थ से नौकरी देने वाले बनिये। वो 3/4 वर्षो से लगातार, सरकारी नौकरी में निहित सुखों को सुखाते जारहे है। आज आप लोग मेरी बात का विश्वास नही करेंगे लेकिन भविष्य का भयावह सत्य यही है कि 2030 आते आते सरकारी नौकरी मिलना तो बन्द नही होंगी लेकिन उसका निर्वाह करना बहुत मुश्किल हो जायेगा।
इसी लिये यही कहूंगा कि हिन्दुओ को सवर्ण और अनुसूचित जातियों व जनजातियों में मत बाटिये, जो दशकों क्या शताब्दियों की समस्या है उसका निराकरण पल भर में हो जाने की उम्मीद मत कीजिये। यह भी हिंदुत्व के समुद्रमंथन से निकला विष है जिसको हमे स्वीकार कर, नीलकंठ के अस्तित्व पर विश्वास जमाये रखना है।
URL: Modi cabinet approves amendment to SC/ST Act
Keywords: Modi government, sc/st act amendment, dalits, narendra modi, मोदी सरकार, एससी/एसटी अधिनियम संशोधन, दलित, नरेंद्र मोदी