कल दिनकर जयंती की पूर्व संध्या पर ‘अखिल भारतीय ब्रह्मर्षि महासंघ’ ने मेरे लेखन व पत्रकारिता को सम्मानित कर मुझे यह भान कराया कि मैं अपने ब्लड-लाईन और लेखन, दोनों को कभी दूषित नहीं होने दूं। मेरी अर्धांगिनी श्वेता देव पहली बार मेरे साथ मंच पर थी।
इस अवसर पर यति नरसिंह्मानंदजी ने दिनकर की ‘रश्मिरथी’ व ‘परशुराम की प्रतीक्षा’ के कुछ अंशों का पाठ किया। एक तो दिनकर जी की ओजपूर्ण कविता और ऊपर से यति की ओजपूर्ण वाणी, रक्त में उबाल आ गया।
यति जी को गीता के साथ-साथ दिनकरजी के सारे काव्य कंठस्थ हैं। कभी अवसर मिला तो दिनकरजी की ‘परशुराम की प्रतीक्षा’ का काव्य पाठ यतिजी से कराने के लिए एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित करेंगे।
भारत की धमनियों में दिनकर की चेतना का स्वर हमेशा गुंजायमान होना चाहिए।