भीमा कोरेगांव हिंसा तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रचने के मामले में शहरी नक्सलियों की गिरफ्तारी जैसी कार्रवाई से महाराष्ट्र सरकार पीछे हटते नहीं दिखती है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में काउंटर हलफनामा दायर कर महाराष्ट्र सरकार ने न केवल पुलिस की कार्रवाई को उचित बताया है बल्कि आरोपियों के खिलाफ पुख्ता सबूत होने का भी दावा किया है। मालूम हो कि हाल ही में पांच नक्सली समर्थकों की गिरफ्तारी को नजरबंद करने का आदेश देते हुए महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए इस मामले में जवाब मांगा था। सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई छह सितंबर यानि गुरुवार को करने वाला है। इससे पहले रिपब्लिक टीवी ने महाराष्ट्र सरकार के सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे के हवाले से कहा है कि सरकार इस मामले में अपना कदम पीछे खींचने के मूड में नहीं है।
मुख्य बिंदु
* पांच शहरी नक्सलियों की गिरफ्तारी पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी नोटिस के जवाब में महाराष्ट्र सरकार ने दायर किया काउंटर हलफनामा
* भीमा कोरेगांव हिंसा मामले मे अपने घरों में नजरबंद पांच शहरी नक्सलियों के मामले में छह सितंबर को होने वाली है सुनवाई
रिपब्लिक टीवी ने महाराष्ट्र सरकार द्वारा दायर हलफनामे के हवाले से कहा है कि सरकार ने अपने इस हलफनामे के माध्यम से शहरी नक्सलियों के खिलाफ अपना नजरिया साफ कर दिया है। हलफनामें में सरकार ने गिरफ्तार शहरी नक्सलियों के खिलाफ साक्ष्य उपलब्ध होने की बात कही है। सरकार ने अपने खिलाफ राजनीति से प्रेरित चलाए जा रहे अभियान का हवाला भी दिया है। इस अभियान के तहत सरकार पर कार्यकर्ताओं के शिकार करने जैसे आरोप लगाए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में होने वाली सुनवाई से पहले ही महाराष्ट्र सरकार ने अपने हलफनामें में शहरी नक्सलियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट को कई बिंदुओं से अवगत करा दिया है।
सीपीआई (माओवादी) के सक्रिय कार्यकर्ता हिंसा भड़काने की तैयारी में थे
महाराष्ट्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट जिन लोगों के मामले को देख रहा है उन सभी के खिलाफ अकाट्य सबूत है। सरकार का कहना है कि ये लोग प्रतिबंधित आतंकी संगठन, सीपीआई (माओवादी) के सक्रिय सदस्य हैं। ये लोग न केवल हिंसा भड़काने की योजना बनाने में संलग्न थे बल्कि उसकी तैयारी तक कर रहे थे। इतना ही नहीं ये लोग बड़े स्तर पर हिंसा फैलाने, संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने की प्रक्रिया में संलिप्त थे। जैसा कि सीपीआई (माओवादी) का एजेंडा रहा है। ये लोग सीपीआई (माओवादी) के एजेंडे के अनुसार देश में अराजकता फैलाकर संपत्तियों को नुकसान पहुंचाना चाहते थे। सीपीआई (माओवादी) वही संगठन है जिसे सरकार ने 2009 में आतंकी संगठन के रुप में प्रतिबंधित कर दिया था।
आपराधिक साजिश रचने का भी है सबूत
सरकार ने अपने हलफनामें के माध्यम सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि ये लोग सीपीआई (माओवादी) के सक्रिय सदस्यों के रूप में आपराधिक षड्यंत्र के मामले में प्रस्तुत किए जा चुके हैं। सरकार ने कहा है कि इनका एक साथी जो अभी फरार है लेकिन भूमिगत रह कर काम कर रहा है। उसपर आपराधिक षडयंत्र रचने का आरोप है। सरकार ने कहा है कि एल्गार परिषद के बैनर तले इन्हीं लोगों ने पब्लिक मीटिंग का आयोजन किया था। इससे स्पष्ट होता है कि ‘यलगार’ का ही अपभ्रंश रूप येल्गार है। मालूम हो कि ‘यलगार’ का शाब्दिक अर्थ हमला होता है। सरकार ने स्पष्ट रूप से कहा है कि एल्गार परिषद की बैठक निश्चित रूप से एक खास समुदाय की भावनाओं को आहत करने के लिए बुलाई गई थी। यह बात प्राथमिक जांच में ही साफ हो गई है।
मालूम हो कि महाराष्ट्र पुलिस ने 31 अगस्त को जारी प्रेस विज्ञप्ति में छापेमारी करने की पूरी जानकारी दे दी थी। पुलिस ने शहरी नक्सलियों के खिलाफ की गई छापेमारी की पृष्ठभूमि के बारे में भी बताया दिया था। महाराष्ट्र पुलिस ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति में छापेमारी के दौरान एकत्रित साक्ष्य के बारे में भी बता दिया था। महाराष्ट्र पुलिस ने अपनी उसी प्रेस विज्ञप्ति में यह भी खुलासा कर दिया था कि किस प्रकार ये नक्सली एक लोकतांत्रिक सरकार को अस्थिर करने की योजना बना रहे थे।
पुलिस ने इस साजिश में शामिल लोगों का नाम भी बता दिया था, साथ ही वे पत्र भी पढ़कर सुनाए थे। इतना ही पुलिस ने अपनी इस प्रेस विज्ञप्ति में उन विदेशी हथियारों का भी जिक्र कर दिया था जो उन्हें छापेमारी के दौरान मिले थे। लेकिन न्यायपालिका के कहने पर पुलिस ने अपनी प्रेस विज्ञप्तियों को रोक लिया क्योंकि ये मामले कोर्ट में विचाराधीन हो गए थे। लेकिन अब जब सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी कर अपना पक्ष रखने को कहा है तो सरकार ने सारे साक्ष्य सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में दे दिए हैं। इतने पारदर्शी तरीके से काम करने के बावजूद बिकाऊ मीडिया महाराष्ट्र पुलिस और सरकार पर सवाल उठाने से बाज नहीं आ रहा है।
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