भीड़ जब भेड़ बन जाती है तो उसे सच और झूठ कुछ दिखाई नहीं देता। वैसे भी भारतीय इतिहास में जान-बूझकर एक झूठ को इतना फैलाया गया है कि सच हमेशा उपेक्षित रहा। हैदराबाद निजाम के साथ भी यही हुआ है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ओबैसी बंधुओं को औकात दिखाते हुए हैदराबाद निजाम की तरह उसे हैदराबाद छोड़ने की बात क्या कह दी, वामियों और कांगियों ने झूठे तथ्य के सहारे उनपर हमला करना शुरू कर दिया। अपने लिखित इतिहास के झूठे साक्ष्य के सहारे एक बार फिर सच को दबाने का प्रयास किया गया। योगी के बयान को दबाने के लिए हैदराबाद निजाम को दुनिया का सबसे बड़ा दानबीर स्थापित करना शुरू कर दिया। जबकि हकीकत सामने आ चुकी है कि निजाम ने भारत-चीन युद्ध के दौरान कभी भी भारतीय रक्षा विभाग को 5000 किलोग्राम सोना दान दिया ही नहीं।
Nizam never fled from Hyderabad.
Nizam stayed in Hyderabad and was made Rajpramukh by Govt of India.#Nizam donated 5000 kg of gold to the national defence fund in 1965 war with china..
This Bhogi need history lessons as well, @myogiadityanath @CMOfficeUP @BJP4India . pic.twitter.com/O6tW2oSJJ6
— Sajid ساجد (@Khan_hits) December 2, 2018
निजाम ने कभी भी भारत सरकार को सोना दान नहीं दिया बल्कि देश की माली हालात का लाभ उठाने के लिए 425 किलोग्राम सोना 6.5 प्रतिशत ब्याज के लालच में निवेश किया था। यह निवेश 1965 में किया था। अज्ञानियो, थोड़ा ध्यान दो, भारत-चीन युद्ध 1962 में हुआ था, उस समय देश के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू थे, जबकि निजाम ने भारत रक्षा स्वर्ण योजना के तहत 425 किलोग्राम सोना 1965 में निवेश किया था। अब बताओ, इन दोनों तथ्यों में कोई साम्य दिखता है?
https://twitter.com/justforfun_rag/status/1069255995627433984?ref_src=twsrc%5Etfw%7Ctwcamp%5Etweetembed%7Ctwterm%5E1069255995627433984&ref_url=https%3A%2F%2Fwww.opindia.com%2F2018%2F12%2Ffact-check-no-the-nizam-of-hyderabad-did-not-donate-gold-for-india-he-had-invested-it%2F
भारतीय जनमानस में एक साजिश के तहत यह अवधारणा जानबूझ कर स्थापित कर दी गई है कि हैदराबाद के निजाम मीर ओस्मान अली ने भारत-चीन युद्ध के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री से मिलने के बाद देश को 5000 किलोग्राम सोना दान दिया था। ध्यान रहे कि यह स्थापित अवधारणा नहीं है बल्कि जानबूझकर इस अवधारणा को स्थापित किया गया है। जबकि सच्चाई यह है कि भारत-चीन युद्ध के दौरान देश के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री नहीं बल्कि पंडित जवाहर लाल नेहरू थे। दूसरा तथ्य यह है जो आरटीआई से प्रमाणित है कि निजाम ने भारतीय रक्षा स्वर्ण योजना के तहत 425 किलोग्राम सोना निवेश किया था। इसके लिए सरकार ने उन्हें 6.5 प्रतिशत ब्याज देने का आश्वासन दिया था।
https://twitter.com/pokershash/status/1069286159522529280?ref_src=twsrc%5Etfw%7Ctwcamp%5Etweetembed%7Ctwterm%5E1069286159522529280&ref_url=https%3A%2F%2Fwww.opindia.com%2F2018%2F12%2Ffact-check-no-the-nizam-of-hyderabad-did-not-donate-gold-for-india-he-had-invested-it%2F
इसका मतलब हुआ कि निजाम ने देश के माली हालात का फायदा उठाते हुए अपने हित के लिए भारत सरकार की उस योजना में अपना सोना निवेश किया था। 5000 किलोग्राम की बात तो दूर निजाम ने एक ग्राम सोना तक भारत सरकार को दान नहीं दिया था।
द हिंदू अखबार में 11 दिसंबर 1965 को प्रकाशित एक आलेख में भी इस बात का जिक्र है कि निजाम के इस निवेश के लिए शास्त्री ने उन्हें धन्यवाद दिया था। उसी आलेख में इस बात का भी जिक्र है कि उस समय अगर किसी ने दान दिया था तो वो तिरुमाला तिरुपति मंदिर तथा तेलुगु फिल्म स्टार थे। अखबार ने अपने आलेख में साफ लिखा है कि तिरुमाला तिरुपति मंदिर ने सरकार को 124 किलोग्राम सोना दान दिया था जबकि तेलुगु फिल्म स्टारों ने करीब 8 लाख रुपये दान दिए थे।
मुख्य बिंदु
* आरटीआई से खुलासा, राष्ट्रीय रक्षा स्वर्ण योजना के तहत 6.5 प्रतिशत ब्जाज के लिए 425 किलो ग्राम सोना निवेश किया था
* जो निजाम हैदराबाद को भारत में मिलाने के लिए यूएन तक चला गया था वह भारत-चीन युद्ध के दौरान कैसे इतना बड़ा दानी बन सकता है?
* भारत-चीन युद्ध 1962 में हुआ था और लाल बहादुर शास्त्री 1965 में प्रधानमंत्री थे, फिर कैसे उनसे मिलने के बाद निजाम ने सोना दान दिया?
भारत के प्रति निजाम के दानबीर होने का तर्क भी समझ से परे है। यह एक निर्विवाद सच है कि निजाम मीर ओसमान अली हैदराबाद को भारत में शामिल करने के सख्त खिलाफ था। ये वही निजाम था जिसने भारत में हैदराबाद को शामिल करने के मुद्दे को लेकर संयुक्त राष्ट्र तक चला गया था। वो तो देश के पहले गृहमंत्री सरदार पटेल की दूरदर्शिता थी जिसके कारण निजाम को न केवल झुकना पड़ा और बाद में हैदराबाद छोड़ना भी पड़ा, और हैदराबाद भारत में शामिल हुआ।
अब सवाल उठता है जो मीर ओसमान अली भारत में शामिल होने का सख्त विरोधी था उसने भारत-चीन युद्ध के दौरान इतने दरियादिल कैस बन गए कि 5000 किलोग्राम सोना भारत सरकार को दान में दे दिया? इससे आज के वामियो-कांगियों की मंशा ही नहीं जाहिर होती है बल्कि विगत के इतिहासकारों पर भी सवालिया निशान लगता है, कि आखिर उन्होंने झूठ पर आधारित इस अवधारणा को कैसे स्थापित होने दिया।
URL : Nizam never donated even one gram gold but invested for interest
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No, the Nizam was not a large hearted patriot who donated 5000 kg of gold to fight China