ये वह समय था जब कैसेट किंग गुलशन कुमार संगीत उद्योग के बेताज बादशाह हुआ करते थे। एक दिन संगीतकार नदीम-श्रवण और गीतकार समीर गुलशन कुमार के ऑफिस पहुंचे। गुलशन कुमार एक रोमांटिक एल्बम बनाना चाहते थे। इस एल्बम के लिए गीतकार नदीम-श्रवण, समीर, कुमार सानू और अनुराधा पौड़वाल ने काम शुरू कर दिया। एल्बम का नाम ‘चाहत’ रखा गया। रिलीज होने से पहले ही निर्देशक महेश भट्ट ने इन गानों को लेकर ‘आशिकी’ फिल्म बना डाली। बाकी जो घटा, इतिहास है। नदीम-श्रवण रातोरात फिल्म उद्योग में स्थापित हो गए। कुछ साल बाद इस उपकार का बदला नदीम सैफ़ी ने गुलशन कुमार की जघन्य ह्त्या करवाकर चुका दिया।
नदीम सैफ़ी 1997 के बाद से ही लंदन में छुपा बैठा है। तब से लेकर अब तक मोस्ट वांटेड आतंकी दाऊद इब्राहिम ने ही नदीम की मदद की है। नदीम-श्रवण की गिनती ऐसे संगीतकारों में होती है जो पाकिस्तानी संगीत से खासे प्रेरित रहे हैं। जब वे गुलशन कुमार के लिए संगीत तैयार कर रहे थे तो कुछ सलाहकारों ने कहा था कि ये गाने तो किसी पाकिस्तानी एल्बम की तरह लगते हैं।
सलाहकारों ने कुछ गलत नहीं कहा था। देखा जाए तो इनका अधिकांश संगीत पाकिस्तानी संगीत की ही नकल है। नदीम-श्रवण में से नदीम के इरादे भारतीय संगीत उद्योग को लेकर बेहद खतरनाक थे। वह इस उद्योग पर अधिपत्य स्थापित करना चाहता था। इस काम में उसकी मदद करने के लिए दाऊद गैंग मौजूद थी। हमेशा ये कहा जाता है कि नदीम ने गुलशन कुमार की हत्या निजी खुन्नस में करवाई थी लेकिन ये पूरा सच नहीं है।
नदीम को लेकर कहा जाता है कि वह दाऊद गैंग का गुर्गा था और उसके जरिये दाऊद संगीत उद्योग पर कब्ज़ा करना चाहता था। इस बात के सीधे प्रमाण तो नहीं है लेकिन जिस ढंग से दाऊद आज तक नदीम की मदद करता आ रहा है, उससे तो यही सिद्ध होता है। सन 2017 में भारत के ख़ुफ़िया विभाग ने दाऊद की टेलीफोनिक बातचीत इंटरसेप्ट कर उसके टेप उजागर कर दिए।
बातचीत में दाऊद ‘लंदन उस्ताद’ का जिक्र करता है। ये लंदन उस्ताद और कोई नहीं बल्कि नदीम अख्तर सैफी है। यदि नदीम दाऊद के काम का नहीं होता तो इतने साल तक उसके खर्चे पर वह लंदन में आज तक पिकनिक नहीं मना रहा होता। दाऊद गुलशन कुमार को रास्ते से हटाना चाहता था। जब उसे पता चला कि नदीम गुलशन से खफा है तो उसने इसका फायदा उठाया।
उसने एक तीर से दो शिकार किये। संगीत जगत के किंग को रास्ते से हटा दिया और मोहरा नदीम को बना दिया। ये बात किसी से छुपी नहीं है कि नदीम गुलशन कुमार के बढ़ते साम्राज्य से परेशान था क्योंकि उसकी कोशिश थी कि टी सीरीज का संगीत उद्योग में एकाधिकार न बना रह सके। मुंबई पुलिस ने इस एंगल से भी गुलशन कुमार हत्याकांड की जांच की थी।
भारत का संगीत उद्योग हर वर्ष बढ़ता ही जा रहा है। सन 2020 में ये बढ़कर 443 मिलियन का हो गया। हिन्दी व अन्य भाषाओं के संगीत का लगभग अस्सी प्रतिशत कंटेंट फिल्मों से ही प्राप्त होता है। अगले वर्ष तक इसके 500 मिलियन तक पहुँचने की संभावनाएं दिखाई दे रही हैं। और आप जानते हैं कि संगीत और फिल्मों की पाइरेसी का बिजनेस इससे बहुत ज़्यादा है और इसी बाज़ार पर दाऊद गैंग की मजबूत पकड़ है।
पांच साल पहले तक अवैध मार्केट बहुत अधिक था लेकिन सरकार के प्रयासों के बाद अब इसमें कमी आने लगी है और यहीं बात दाऊद गैंग को चुभ गई है। संगीत उद्योग में बूम आने का एक कारण ‘एड सपोर्टिंग लाइव स्ट्रीमिंग’ भी है। टी सीरीज, सोनी म्यूजिक, ज़ी म्यूजिक, यशराज म्यूजिक यहाँ बड़े खिलाड़ी हैं। इनमे सबसे बड़ा खिलाड़ी टी सीरीज है, जिसका इस मार्केट के 35 प्रतिशत हिस्से पर कब्ज़ा है और इसके यू ट्यूब चैनल सबसे अधिक देखे जाते हैं। दाऊद गैंग का मुख्य लाभ पाइरेसी के धंधे से आता है और मुंबई अंडरवर्ल्ड लगातार इसके लिए ही काम करता है कि दाऊद की पकड़ इस धंधे से ढीली न पड़ने पाए।
ख़ास तौर से हिन्दी फिल्म संगीत का बाज़ार तेज़ी से बढ़त हासिल कर रहा है और बहुत ज़रूरी है कि पाइरेसी के सारे द्वार बंद कर दिए जाए। एक समय था जब किसी फिल्म के गाने सुनने के लिए कैसेट खरीदनी ही पड़ती थी। संगीत का सम्मान था, उसके बाज़ार का सम्मान था लेकिन धीरे-धीरे पाइरेसी सब कुछ लील गई। माना कि बाज़ार बढ़ रहा है लेकिन पाइरेसी न होती तो और भी अधिक बढ़ सकता था।
इस पाइरेसी की जड़े भारत में गहरी धंसी हुई है। अब तो वेब सीरीज भी रिलीज होने के दूसरे दिन ही एचडी क्वालिटी के साथ मार्केट में उपलब्ध हो जाती है। इतनी तेज़ गति से पाइरेसी करने की क्षमता केवल डी-कम्पनी की ही है। दुनियाभर में उसके पांच हज़ार गुर्गे कार्यरत हैं जो पाइरेसी के काम को भी अंजाम देते हैं। नदीम सैफी तो एक ऐसा मोहरा था, जिसे पिटवाकर दाऊद ने संगीत उद्योग के किले में घुसपैठ कर ली। एक प्यादे के मरने के बदले अरबों का साम्राज्य मिले तो कौन उसे मरवाना नहीं चाहेगा।