पैगंबर साहब के कार्टून से उपजा विवाद पूरे विश्व में फैल रहा है। इस्लामी आतंकवाद के इस तरह का घिनौना रूप आखिरकार सामने आना ही था। इन दिनों इस्लामी आतंकवाद की घटनाओं की लहर सी आ गई लगती है। फ्रांस के मामलों से अभी वैश्विक तनाव बरकरार है और इसी बीच रूस से भी ऐसी ही एक घटना सामने आई है।
फ्रांस में इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा सिर काटने और चाकूबाजी जैसी घटनाओं पर राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने सख्त रुख अपनाया है। उनके इस कदम का कई यूरोपीय देशों ने समर्थन दिया है जबकि भारत समेत दुनियाभर में मुस्लिमों ने फ्रांस के खिलाफ धरना प्रदर्शन कर यह जताना चाहते हैं कि इस्लामी कट्टरपंथियों की जड़े कहां तक मजबूत है।
दरअसल इस विवाद का प्रारंभ फ्रांस से शुरू हुआ। यूरोप में फ्रांस ऐसा देश है, जहां की आबादी में 10 फीसदी मुस्लिम हैं। इनमें ज्यादातर दूसरे देशों या फ्रांस के उपनिवेशों से आए लोग शामिल हैं। सीरिया और इराक में आईएस के उभरने के बाद फ्रांस इस आतंकी संगठन के निशाने पर रहा है। कई आतंकी हमलों के बाद राष्ट्रपति मैक्रों इस्लामी आतंकवाद और कट्टरपंथ से लड़ने की बात कह चुके हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि फ्रांस में इस्लामी आंतकवाद से जुड़ी घटनाएं कोई पहली बार हुआ है। इससे पहले भी फ्रांस के सबसे सुंदर शहरों में एक नीस में जब लोग अपनी फतह के उत्सव ‘बेस्तिल डे’ में रंगारंग आतिशबाजी का लुत्फ उठा रहे थे तभी हथियारों और विस्फोटकों से लैस एक भारी ट्रक सुरक्षा नाकेबंदी को तोड़कर घुसा और तबाही मचा गया। इसमें 80 से अधिक लोगों की मौत हुई थी और इस घटना को भी इस्लामी आतंकवाद से जोड़कर देखा गया।
पिछले दिनों फ्रांस में तब फिर से विवाद शुरू हुआ जब फ्रांस में पैगम्बर साहब का कार्टून क्लास में दिखाने वाले एक हिस्ट्री टीचर की हत्या कर दी गई थी। इस्लामिक बवाल यहीं नहीं रुका और नीस शहर के एक चर्च में गुरुवार को तीन लोगों की चाकू मारकर हत्या कर दी गई और जांच में पाया गया तीनों लोगों को मौत के घाट उतारने वाला इस्लामी आतंकी मूल रूप से ट्यूनीशिया का नागरिक था। वो इस तरह की वारदात को अंजाम देने के लिए इटली से फ्रांस पहुंचा था।
आरोपी की उम्र करीब 20 साल है। फ्रांस के एंटी टेरर डिपार्टमेंट के वरिष्ठ अधिकारी जीन फ्रेंकोइस रिकार्ड का कहना है कि इस्लामी आतंकी 20 सितंबर को इटली से फ्रांस आया था। 9 अक्टूबर को पेरिस पहुंचा। उसके पास एक धार्मिक ग्रंथ भी मिला। पुलिस की जवाबी कार्रवाई में वो गंभीर रूप से घायल हुआ, जबकि पेरिस में उसका इलाज चल रहा है। इस्लामी आतंकी के हमले में घायल हुए 44 साल के चौथे व्यक्ति की हालत गंभीर बनी हुई हैं। हमलावर के बारे में पहले से कोई इंटेलिजेंस इनपुट नहीं मिला था। इन दोनों घटनाओं के बाद फ्रांस में हड़कंप मच गया और फ्रांस के राष्ट्रपति ने इस्लामी आतंकवाद को रोकने के लिए कई कारगर कदम उठाए जाने की बात कही और इसके विरोध में पूरे विश्व में मुस्लिम समाज के लोग धरना प्रदर्शन पर उतर गए।
इस बीच अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने घटना की निंदा करते हुए कहा कि इस मुश्किल घड़ी में अमेरिका फ्रांस के साथ खड़ा है। जबकि यूरोपीय यूनियन ने भी कहा है कि इस तरह के हमले बर्दाश्त नहीं किए जा सकते। लेकिन इस दौरान फ्रांस का यह इस्लामिक कट्टरता इस देश में ही सीमित नहीं रहा और इसकी लहर रूस तक पहुंच गई। रूसी मीडिया बताता है कि यहां एक किशोर ने अल्लाहु अकबर कहते हुए एक पुलिसवाले को चाकू मार दिया और इसके बाद आरोपी गोली का शिकार बन गया।
इस घटना के बाद रूस में भी फ्रांस जैसी विवाद उत्पन्न हो गई है हालांकि स्थिति नहीं बिगड़ी है। रूसी मीडिया का कहना है कि घटना रूस के कुक्मोर शहर के तातार्स्तान क्षेत्र का है जो कि एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र है। यहां भी फ्रांस के खिलाफ प्रदर्शन हो रहा था। कहा जा रहा है कि हमलावर लड़के के पास पेट्रोल बम भी था।
रूसी जांच समिति ने इस घटना को लेकर बयान जारी किया और इसे आतंकवादी घटना बताया। इस आरोपी किशोर ने कुकमोर इलाके में पुलिस थाने को आग लगाने का प्रयास किया था जबकि इस हमलावर का नाम विटले अंतीपोव बताया गया है। अंतीपोव साइबेरिया के अल्टाई इलाके का है और एक हलाल कैफे में काम करता है। रूसी पुलिस को पता चला है कि इस कैफे का मालिक भी हथियारों के अवैध निर्माण और तोड़फोड़ के आरोप में 14 साल जेल की सजा काट चुका है जबकि इस घटना में घायल पुलिसकर्मी की हालत अभी भी गंभीर बनी हुई है।
फ्रांस और रूस की घटना को लेकर पूरे विश्व में इस्लामिक कट्टरता को लेकर तीखी प्रतिक्रिया हुई है। मुस्लिम देश जहां फ्रांस के साथ सभी तरह के संबंध तोड़ने की बात कर रहे हैं वही अमेरिका समेत कई अन्य देश फ्रांस के राष्ट्रपति को आतंकवाद के खिलाफ समर्थन देने की बात कही है।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी घटना को लेकर कहा, मैं फ्रांस में हाल ही में हुए आतंकी हमलों की कड़ी निंदा करता हूं। पीड़ितों और फ्रांस के लोगों के परिवारों के प्रति मेरी गहरी संवेदना हैं। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत फ्रांस के साथ खड़ा है। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है की मुस्लिम देश तथा जिन देशों में मुस्लिम रहतेे हैं उन लोगों ने फ्रांस को टारगेट करते हुए सड़क पर उतर आए हैं।
इन लोगों की मनोदशा देखनी हो तो मलेशिया के पूर्व प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद का ट्वीट देखिए, जिसने कहा था मुसलमानों को गुस्सा होने और फ्रांस के लाखों लोगों को मारने का अधिकार है। उन्होंने गुरुवार को 13 ट्वीट किए। लिखा, ‘अतीत के नरसंहार के लिए मुसलमानों को यह अधिकार है।” महातिर ने ”RESPECT OTHERS” से अपने ट्वीट की शुरुआत की। लिखा, ”एक 18 साल के चेचेन रिफ्यूजी ने क्लास में पैगंबर के कार्टून दिखाने पर फ्रेंच टीचर सैमुअल पैटी की हत्या कर दी। टीचर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रदर्शन कर रहे थे। एक मुसलमान के तौर पर मैं इस हत्या को अप्रूव नहीं करता। मैं फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन में विश्वास रखता हूं। लेकिन, मुझे नहीं लगता कि इससे किसी का अपमान किया जाना चाहिए।
भारत में भी कट्टरपंथी मुस्लिमों ने फ्रांस के विरोध के नाम पर मजहबी भावनाएं भड़काने की शरारत की। मुंबई के भिंडी बाजार में फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैक्रों की तस्वीर सड़कों पर चिपका कर उसके साथ अभद्रता की गई। जबकि भोपाल में कांग्रेस विधायक आरिफ मसूद कोरोना महामारी के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करते हुए हजारों समर्थकों समेत सड़कों पर उतरे और मजहबी उन्माद फैलाने की कोशिश की। पुलिस ने मसूद और दो सौ अज्ञात लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया है। उन्माद को हवा देने वालों में शहर काजी मुश्ताक अली नदबी, मुस्ती-ए-शहर अबुल कलाम कासमी भी शामिल थे।
जमीयत के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों की निंदा करते हुए कहा कि पैगंबर के कार्टून के प्रकाशन को अभिव्यक्ति की आजादी का नाम दिया जा रहा है, लेकिन क्या सभ्य समाज में इसे जायज ठहराया जा सकता है। चाहे मुंबई का भिंडी बाजार हो या भोपाल या फिर दिल्ली सभी जगह मुस्लिम अपनी कट्टरता को पेश कर रहे हैं और इनका दायरा लगातार बढ़ रहा है।
पाकिस्तान, बांग्लादेश से लेकर लेबनान तक दुनिया के तमाम मुल्कों में शुक्रवार को जुमे की नमाज के बाद फ्रांस के खिलाफ भारी विरोध प्रदर्शन हुए। जबकि फ्रांस में साफ कर दिया है कि इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ उनका जंग जारी रहेगा।दुनियाभर में यदि कहीं पर भी इस्लामिक आतंकवाद है तो उसके पीछे इस्लाम की सुन्नी विचारधारा के अंतर्गत वहाबी और सलाफी विचारधारा को दोषी माना जाता है। इनका मकसद यही दिखाई देता है है जिहाद के द्वारा धरती को इस्लामिक बनाना। वैसे भी इस्लामिक आतंकवाद अब किसी एक देश या प्रांत की बात नहीं रह गया है।
यह अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गठजोड़ कर चुका है और इसके समर्थन में कई मुस्लिम राष्ट्र और वामपंथी ताकतें हैं। सऊदी, सीरिया, इराक, अफगानिस्तान, कुर्दिस्तान, सूडान, यमन, लेबनान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, इंडोनेशिया और तुर्की जैसे इस्लामिक मुल्क इनकी पहानगाह हैं।
भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देशों में तो इनकी जड़ें काफी गहरी दिखाई देती है क्योंकि इनके समर्थन में कई राजनीतिक पार्टिया तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग है। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस्लामिक आतंकवाद की समस्या व उसकी जड़ के असली पोषक तत्व सिर्फ सऊदी अरब, चीन, ईरान ही नहीं हैं। इनके समर्थक गैर-मुस्लिम मुल्कों में वामपंथ, समाजसेवी और धर्मनिरपेक्षता की खोल में भी छुपे हुए हैं। जो इस्लामिक शिक्षा और प्रचार-प्रसार का काम करते हैं ।
भारत जैसे देश में अलीगढ़ और जामिया जैसे विश्वविद्यालय इस्लाम में कट्टरता को ही आगे बढ़ा रहे हैं इसका सीधा उदाहरण तब देखने को मिला जब नागरिक कानून विधेयक को लेकर दिल्ली समेत अन्य राज्यों में विरोध प्रदर्शन किए गए और दिल्ली में तो इस प्रदर्शन की आड़ में दंगे हुए जिसके चलते 53 लोगो की जान चली गई। यदि समय रहते इस्लामी आतंकवाद के खतरे को देखते हुए इस पर नकेल नहीं कसा गया तो इसकी कीमत आनेेेे वाली पीढ़ी को चुकानी पड़ सकती है।