दलगत राजनीति का स्तर यहाँ तक आ पहुंचा है कि देश के समर्थन में प्रसिद्ध हस्तियों के बोलने को लेकर महाराष्ट्र की राज्य सरकार जाँच करवाने की बात कर रही है। सचिन तेंडुलकर और लता मंगेशकर के सिर्फ ट्वीट करने से बात यहाँ तक पहुँच गई कि महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख को भारतीय जनता पार्टी का दखल इसमें दिखाई देने लगा है।
किसान आंदोलन में विदेशी दखल के बाद भारत के ख्यात व्यक्तियों द्वारा अमेरिका को भारत के मामले में टांग न अड़ाने की नसीहत शिवसेना और उसकी सहयोगी कांग्रेस को शूल की तरह क्यों चुभ गई। अब तो कांग्रेस, शिवसेना जैसी पार्टियों को ये याद दिलाना पड़ता है कि पार्टी के समर्थन में बोलना, सरकार के समर्थन में बोलना और देश के समर्थन में बोलना नितांत भिन्न बातें हैं। विपक्ष ऐसा वर्गीकरण करने में अक्षम दिखाई देता है।
लता दीदी और सचिन ने किसान आंदोलन को लेकर एक शब्द नहीं कहा है तो अनिल देशमुख इन दोनों को इस विवाद में क्यों डाल रहे हैं? वे कहते हैं ‘हमारी इंटेलिजेंस एजेंसियां इसकी जाँच करेगी।’ ये लहजा प्रमाणित करता है कि वे जनता द्वारा दी गई कुर्सी को सिंहासन मानते हैं और महाराष्ट्र को एक किला, जो भारत से, उसकी सरकार से अलग है।
कांग्रेस और शिवसेना को एक बार संपूर्ण देश की यात्रा पर निकलना चाहिए और जानना चाहिए कि लता का स्थान इस देश के लिए क्या है। लता दीदी और सचिन देश की धरोहर हैं। उन्हें किसी भी प्रकार के विवाद से अलग रखना चाहिए। यहाँ विवाद कौन पैदा कर रहा है, ये भी देख लेना होगा।
भाजपा का दखल तो इस मामले में कहीं भी दिखाई नहीं देता और न ऐसा है कि लता जी को इस प्रकार की राय रखने के लिए विवश किया जा सके। अनिल देशमुख इस सहज स्वाभाविक प्रतिक्रिया में किसी प्रकार का षड्यंत्र देख रहे हैं। गृहमंत्री जी को इस मामले में षड्यंत्र ये कर दिखाई देता है कि देश के समर्थन में किये गए ट्वीट एक दूसरे से कॉपी किये गए हैं।
कुछ कॉपी किये गए ट्वीट्स में वे कौन से षड्यंत्र के तार देख पा रहे हैं, ये तो वहीं जानें। दरअसल किसान आंदोलन इस सरकार को अस्थिर करने का अंतिम प्रयास है। कांग्रेस संपूर्ण रुप से बुझने से पहले अपनी अंतिम लौ भयानक ढंग से दिखा रही है। सत्ता से दूरी से वह इतनी बेचैन है कि देश के महान व्यक्तित्वों को भी विवादों में ले आने में उसे कोई संकोच नहीं हो रहा है।
काश कांग्रेस सीख सकती कि जनता का मन कैसे जीता जाता है। कांग्रेस पार्टी के क्रियाकलाप उसे निरंतर जनता के मन से गिराते जा रहे हैं। किसान आंदोलन में खालिस्तान का साथ लेकर कांग्रेस ने अपना बचा-खुचा समर्थन भी खो दिया है। अजीब विडंबना है कि लोकमत से जीतकर आई सरकार के लिए पिछले छह वर्ष में एक भी दिन सुकून के साथ नहीं बीता है। कांग्रेस ने इन वर्षों में रचनात्मक विपक्ष की भूमिका निभाने के बजाय उपद्रव ही किये हैं।
मैंने पिछली बार लिखा था कि सचिन और लता जी को इस खेल में नहीं उतरना चाहिए था। ट्वीटर वॉर एक ऐसा खेल है, जिसे सभी राजनीतिक दल अपने हिसाब से खेल रहे हैं। इस खेल में भाषाई मर्यादा जैसा कुछ नहीं होता। ये निरी आभासी गुंडई है। इसमें सभी दलों ने अपने गुंडे उतार दिए हैं। लता जी एक संवेदनशील व्यक्तित्व की मालिक हैं। उनको लेकर जिस तरह के ट्वीट और कमेंट किये जा रहे हैं, वह मन को चोट पहुंचाने वाले हैं। महाराष्ट्र में बहुत कुछ घट रहा है लेकिन उसकी ख़बर देशमुख जी को नहीं होती।
हिन्दू समाज को सड़ा हुआ कहने वाले शरजील उस्मानी पर प्रकरण तो दर्ज होता है लेकिन उसे गिरफ्तार करने की ताकत और नीयत महाराष्ट्र सरकार में दिखाई नहीं देती। एक नौसैनिक को पालघर लाकर हत्या कर दी जाती है। ड्रग्स का दैत्य मुंबई के फिल्म उद्योग को निगल ही चुका है। कोरोना से लड़ाई में ये सरकार नाकाम रही।
कितना कुछ है महाराष्ट्र में करने के लिए गृहमंत्री जी लेकिन आप तो सचिन और लता दीदी के पीछे ही पड़ गए हो। क्यों न आपकी इंटेलिजेंस एजेंसियां पालघर में हुई नौसैनिक की हत्या की जाँच करती। क्यों नहीं आप राज्य में चल रहे ड्रग्स के कारोबार की जाँच करवाते। अनिल देशमुख और उनके मुखिया एक तथ्य की अनदेखी कर रहे हैं। वे महाराष्ट्र के नागरिकों को प्रजा समझ बैठे हैं। महाराष्ट्र आपको चुनाव में जवाब देगा।