राजस्थान के पूज्यनीय कृष्ण मृग शिकार प्रकरण में जोधपुर कोर्ट द्वारा बड़ी राहत मिलने के बाद सलमान ख़ान बेहद ख़ुश हैं। उन्होंने इसके लिए अपने प्रशंसकों का धन्यवाद किया है। वैसे इसके लिए उन्हें जोधपुर न्यायालय को बड़ा सा थैंक्स कहना चाहिए। राजस्थान सरकार ने सलमान ख़ान के विरुद्ध दो अपील दायर की थी लेकिन कोर्ट ने दोनों को खारिज़ कर सलमान ख़ान को बड़ी सी राहत दे दी है। दरअसल कोर्ट ने सलमान से उन हथियारों के लाइसेंस मांगे थे, जो उन्होंने शिकार में प्रयोग किये थे।
सलमान ने झूठा हलफ़नामा देकर कहा कि लाइसेंस कहीं खो गया है। लाइसेंस की गुमशुदगी की रिपोर्ट उन्होंने बांद्रा थाने में दर्ज कराई थी। बाद में पता चला कि सलमान का लाइसेंस नहीं खोया था। उनके लाइसेंस का आवेदन तो मुंबई पुलिस कमिश्नर के पास विचाराधीन है। साफ़ है कि हिरण का शिकार अवैध हथियार से किया गया था।
इस बात का खुलासा होने पर कोर्ट में पब्लिक प्रॉसिक्यूटर ने सलमान पर कोर्ट को गुमराह करने और झूठ बोलने का आरोप भी लगाया। ये साफ़ धोखाधड़ी का केस था। इसमें सुपरस्टार को सात साल की सज़ा हो सकती थी। भारतीय न्याय व्यवस्था किस तरह प्रसिद्ध व्यक्तियों के आभामंडल के आगे घुटने टेक देती है, ये केस उसका प्रत्यक्ष उदाहरण है।
जज साहब से कैसे पूछा जाए कि किस आधार पर उन्होंने सलमान ख़ान के खिलाफ दायर दोनों अपीलों को खारिज कर दिया, जबकि राज्य सरकार ने ठोस आधार पर ये अपील दायर की थी। ऐसे लचर फैसले ही न्यायिक व्यवस्था को अपमानित कर रहे हैं। सुपरस्टार इस बात से चिंतित थे कि यदि कोर्ट ने उनके विरुद्ध निर्णय सुना दिया तो वे अपनी फिल्म ‘टाइगर-3’ की शूटिंग के लिए इस्तांबुल कैसे जाएंगे।
पिछली बार पेशी से बचने के लिए उन्होंने कोविड कंडीशन का सहारा ले लिया था। सलमान ख़ान ऐसे अबूझ फैसले के बाद प्रशंसकों का धन्यवाद देते हैं। वे लिखते हैं ‘मेरे साथ रहने के लिए धन्यवाद।’ सुपरस्टार किस मुगालते में जी रहे हैं, पता नहीं। उनकी वह तूफानी फैन फॉलोइंग तो जाने कबसे हवा हो चुकी है।
ऐसे आपराधिक प्रकरण में ट्रिक से राहत पाने के मामले में कौन प्रशंसक इस आदमी के साथ होगा, पता नहीं। तो ये आदमी अपने प्रभाव और पैसे का इस्तेमाल कर फिर से बच निकला है। एक ऐसा प्रकरण, जिसमे इसके बचने का कोई रास्ता नहीं था। इसके पास राहत पाने का कोई ठोस आधार नहीं था।
सर्वोच्च न्यायालय ऐसे निर्णयों पर संज्ञान लेना कब शुरु करेगा, जिनमे ऐसे आधारहीन संदिग्ध निर्णय दिए गए हैं। जज साहब कोई ईश्वरीय प्रतिनिधि तो है नहीं, जो उनके निर्णयों की जाँच न की जाए। एक अपराधी को कोर्ट को गुमराह करने के मामले में इसलिए राहत दे दी गई क्योंकि वह एक फिल्म स्टार है।
फिर वही बात याद आती है कि जब इस देश में एक आम आदमी न्याय के लिए तरस गया हो, तो बेचारे निरीह काले हिरण को कौन न्याय देगा। भारतीय न्यायिक व्यवस्था बिश्नोई समाज की अपराधी है। सर्वोच्च न्यायालय को संभवतः ये जानकारी नहीं होगी कि जोधपुर कोर्ट ने न्याय को ही फांसी लगा दी है।
न्याय सिर्फ होना नहीं दिखना भी चाहिए