Sonali Misra. अमेजन के खिलाफ कन्फेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने यह आरोप लगाया है कि कुछ भारतीय कंपनियां अमेजन के साथ मिलकर भारतीय कानूनों के खिलाफ काम कर रही हैं।
पूरा मामला कुछ दिन पहले प्रकाश में आया जब रायटर्स की एक खोजी खबर में अमेजन के गुप्त दस्तावेजों से यह पता चला कि अमेजन ने अपने भारत के प्लेटफोर्म पर बड़े विक्रेताओं को प्राथमिकता दी है और छोटे विक्रेताओं का नुकसान किया है। अमेजन ने यह पूरी कोशिस की है कि मुनाफ़ा केवल और केवल उसीके हाथों में रहे और इसके लिए नियमों को अपने अनुसार तोड़ने में अमेजन ने कोई भी हिचक नहीं की।
इस मुद्दे पर Sandeep Deo का Video
नियम तोड़ने की यह कहानी पुरानी है। वर्ष 2019 में आउटलुक में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार कन्फेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने अमेज़न पर यह आरोप लगाया था कि उसने बाज़ार पर अधिकार स्थापित करने के लिए छेड़छाड़ की है।
वर्ष 2019 में भारत सरकार द्वारा एक नई ई-कॉमर्स पालिसी लाई गयी थी और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में कुछ नए नियम भी सरकार द्वारा लागू किए गए थे। इन नियमों के अनुसार ऑनलाइन प्लेटफॉर्म एक सिंगल विक्रेता से ऑनलाइन मार्केट प्लेस से कुल बिक्री का 25% ही ले सकते हैं, जिसे इस क्षेत्र को और पारदर्शी बनाने के लिए और सभी को मौके मिलें। नए नियमों में यह भी आवश्यक है कि एक ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म अपनी साईट पर बेचे जाने वाले सामान की “इन्वेंट्री पर स्वामित्व का प्रयोग नहीं करेगा”।
जबकि रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार इसके आतंरिक दस्तावेजों से पता चलता है कि अमेज़न उस समय प्रभावी रूप से क्लाउडटेल की इन्वेंट्री पर काम कर रहा था। बार बार जब क्लाउडटेल की बात आ रही है तो यह देखना होगा कि क्लाउडटेल क्या है और अमेजन और नारायण मूर्ति का क्या सम्बन्ध है?
दरअसल, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर ज्यादा से ज्यादा मुनाफ़ा कमाने के लिए अमेजन ने एक अप्रत्यक्ष तरीके का इस्तेमाल किया। अमेजन ने भारत में तकनीक के क्षेत्र में सबसे बड़े नाम एन आर नारायण मूर्ति के साथ मिलकर एक जॉइंट वेंचर में कदम रखा। इसका नाम रखा गया क्लाउडटेल, और इसने amazon.in पर सामान बेचना शुरू किया। इसे अगस्त 2014 में शुरू किया गया था।
इस क्लाउड टेल का अमेज़न की बिक्री में कितना हिस्सा था? यह जानकर आप चौंक जाएंगे। कंपनी के आतंरिक दस्तावेजों के अनुसार मार्च 2016 में, Amazon.in पर क्लाउडटेल की बिक्री का हिस्सा लगभग 47% था। यही कारण था कि जब नए नियमों को भारत सरकार ने लागू किया तो अमेज़न की ओर से छेड़छाड़ की गयी और कुछ सामानों को क्लाउडटेल से हटाकर किसी और विक्रेता के पास भेज दिया। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के नियम क्लाउडटेल के मामले में लागू इसलिए नहीं होते हैं क्योंकि क्लाउडटेल भारत की ही कंपनी है।
इसी के साथ दस्तावेज़ यह भी बताते हैं कि अमेजन के भारत के प्लेटफोर्म पर दो विक्रेता ऐसे हैं जिनमें अमेजन के अप्रत्यक्ष इक्विटी हित सम्मिलित थे। वर्ष 2019 की शुरुआत में प्लेटफॉर्म पर जो भी बिक्री हुई, उसमें 35% हिस्सा इन्हीं दोनों का था।
यही कारण है कि कन्फेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने फिर से अमेजन के खिलाफ अपनी आवाज़ उठाई है। आतंरिक दस्तावेज़ के अनुसार भारत में अमेजन के कुल 4,00,000 विक्रेताओं में से केवल 35 विक्रेताओं का कब्ज़ा दो तिहाई ऑनलाइन बिक्री पर है। आतंरिक दस्तावेजों में दी गयी यह जानकारी बहुत ही विस्फोटक है। छोटे कारोबारियों को बचाने के लिए मोदी सरकार द्वारा बनाए गये इस नियम को अमेजन के आंतरिक दस्तावेज में वोट बैंक को खुश करने के लिए बनाए गये नियम बताया गया है! शायद अमेजन चाहता था कि उसे खुला खेल खेलने दिया जाए, लेकिन जब मोदी सरकार ने यह खेल नहीं खेलने दिया तो वह सरकार पर ही हमलावर हो उठा है।
यह जानना बहुत जरूरी है कि कैसे अमेजन ने क्लाउडटेल और अप्परियो को भारत में बिक्री के साथ छेड़छाड़ करने के लिए इस्तेमाल किया।
जैसा पहले लिखा गया है कि कंपनी के आतंरिक दस्तावेजों के अनुसार मार्च 2016 में, Amazon.in पर क्लाउडटेल की बिक्री का हिस्सा लगभग 47% था और अमेजन की मदद से क्लाउड टेल ने कई बड़ी टेक कंपनियों के साथ रिश्ते बनाए जैसे एप्पल, वन प्लस और माइक्रोसॉफ्ट।
इनमें उनके उत्पादों को बेचने के लिए ख़ास डील भी शामिल थी। यह क्लाउडटेल और इन बड़ी कंपनियों के लिए मुनाफे की स्थिति थी क्योंकि उनकी ओर से क्लाउडटेल उनके सभी उत्पादों को अमेजन पर लिस्ट कर रही थी।
जब तक नए नियम नहीं आए थे तब तक सब ठीक चल रहा था, मगर जैसे ही नए नियम आए वैसे ही क्लाउडटेल का हिस्सा 25% की सीमा के भीतर करने के लिए बाध्य होना पड़ा।
और यहीं से प्रवेश हुआ भारतीय आईटी आउटसोर्सिंग सेक्टर में अग्रणी अशोक पटानी और अमेजन के बीच अनुबंध का। अमेजन ने स्पेशल मर्चेंट कहकर अप्परियो नाम से एक नए विक्रेता का गठन किया, जिसमे वह और अशोक पटानी साझीदार थे।
अब अमेजन के पास यह दो कंपनी थीं, जिनमें उसका हिस्सा था और आतंरिक दस्तावेजों के अनुसार क्लाउडटेल और अप्परियो दोनों के पास कुल बिक्री का 35% हिस्सा था, जिसमें अमेजन का भी हिस्सा था।
मगर इस खेल पर रोक तब लगी जब भारत सरकार ने एक बार फिर से नए नियम लागू करते हुए उन सभी विक्रेताओं को प्रतिबंधित कर दिया, जिसमें ई-टेलर्स के इक्विटी हित शामिल थे। अर्थात वर्ष 2019 में। जब यह नियम लागू हुआ तो अमेजन ने क्लाउडटेल और अप्परियो द्वारा बेचे जा रहे उत्पाद हटा दिए, मगर जल्दी ही अमेजन ने इसका भी तोड़ खोज लिया और नए नियमों का पालन करते हुए अपने इक्विटी शेयर कम कर लिए और उत्पादों को दोबारा से प्रस्तुत कर दिया।
इसी रिपोर्ट के आधार पर कन्फेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री बी सी भारतीय तथा महासचिव श्री प्रवीण खंडेलवाल ने कहा कि श्री नारायण मूर्ति के स्वामित्व वाली क्लाउडटेल और कुछ और कंपनी जैसे कि अप्परियो, दर्शिता इटेल दर्शिता मोबाइल, एसटीपीएल मोबाइल्स तथा राकेट कॉमर्स जैसी कुछ कंपनी हैं, जिनका कुल बाज़ार के 80% पर अधिकार है।
(कैट के सदस्यों ने अमेजन के जेफ़ बेजोस के जनवरी 2020 में भारत आगमन पर विरोध किया था)
हालांकि सरकार की नीति यह स्पष्ट कहती है कि ईमार्केट प्लेस पर जो भी कम्पनी अपने उत्पाद बेचती हैं उन पर मार्केटप्लेस (अमेजन) का कोई अधिकार या नियंत्रण नहीं होना चाहिए, हालांकि यह भी बात सही है कि इसके विपरीत कन्फेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के अनुसार यह सभी कंपनी अमेजन द्वारा ही नियंत्रित हो रही हैं और अमेजन ने मार्केट प्लेस का केवल धोखा किया गया है।
हकीकत यह है कि सभी ऑर्डर्स अमेजन पर जाते हैं और फिर अमेजन ही यह तय करता है कि यह आर्डर कौन पूरा करेगा। और जाहिर है कि डिलीवरी और बिक्री का काम उसी कंपनी के पास जाता है जो अमेजन की संयुक्त उपक्रम है।
pgurus में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार क्लाउडटेल के अधिकतर बोर्ड सदस्य अमेजन के ही पूर्व कर्मचारी हैं. क्लाउड टेल और इसकी होल्डिंग कंपनी प्रिओन बिजनिस सर्विसेस में मैनेजिंग डायरेक्टर से लेकर सभी सीनियर कर्मचारी अमेजन से ही आए हैं।
जब सारा खेल देखते हैं तो यह बहुत ही हैरानी से भरा हुआ दिखता है कि नारायण मूर्ती के क्लाउड टेल में प्रिओन के माध्यम से 76% हिस्सेदारी है मगर यह कंपनी क्लाउडटेल चल रही है अमेजन के पूर्व कर्मचारियों के हाथों, जिनमें शामिल हैं: अमित अग्रवाल, अमेजन, संदीप वारागंती, एमदी, पूर्व अमेजन कर्मचारी, राजेश जिंदल, एमडी प्रिओंन, पूर्व अमेजन कर्मचारी, सुमित सहाय, एमडी क्लाउडटेल, जो अमेजन में कैटेगरी लीडरशिप के पूर्व डायरेक्टर रह चुके हैं आदि। अब प्रश्न यह उठता है कि क्या नारायण मूर्ति को भारतीय नियमों के बारे में पता नहीं है? पता तो सब है, लेकिन मुनाफाखोरी में नारायणमूर्ति आदि ने नियमों को ताक पर रखकर बिजनस किया है।
कैश बैक के नाम पर बैंकों का खेल
भाटिया और खंडेलवाल कई और प्रश्नों पर अपनी आपत्ति उठाते हैं जैसे कि अमेजन और फ्लिप्कार्ट के पोर्टल से किसी भी उत्पाद को खरीदने पर बैंकों द्वारा 10% की छूट या कैशबैक देना. इन बैंको में एचडीएफसी, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, आईसीआईसीआई बैंक, कोटक महिन्द्रा बैंक और आर बीएल बैंक जैसे बैंक शामिल हैं। यह बैंक ऑनलाइन पोर्टल पर खरीदने पर तो छूट देते हैं मगर ऑफलाइन खरीदने पर क्रेडिट या डेबिट कार्ट से कोई भी छूट नहीं देते हैं
तो उनके अनुसार बैंकों का यह कदम संविधान की प्रस्तावना का उल्लंघन है जो समानता का अधिकार देती है और साथ ही यह उपभोक्ताओं को सामानों को ऑफलाइन दुकानों से सामान खरीदने को लेकर प्रतिबंधित करता है जो धारा 19 और धारा 301 का उल्लंघन है जो देश में व्यापार और वाणिज्य की आज़ादी देती हैं।
कैट के नेताओं का कहना है कि अमेजन अपने इन क़दमों से मूल्यों में छेड़छाड़, बाज़ार को अपनी शर्तों पर चलाने जैसे कई काम कर रही है जो प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के प्रेस नोट 2 का उल्लंघन है।
जबकि अमेजन का यह कहना है कि उसने कोई गलत काम नहीं किया है और सारे कदम भारत के कानूनों के दायरे में ही उठाए गए हैं। वहीं अमेजन के आतंरिक दस्तावेज़ यह भी दिखाते हैं कि विश्व के सबसे बड़े बाज़ार में अपने आधिपत्य की कामना लिए यह विदेशी कंपनी भारत के लोकप्रिय एवं विश्व के सबसे प्राचीन लोकतंत्र के बहुमत से चुने हुए प्रधानमंत्री के विषय में कितना जहरीला सोचती है। दस्तावेज़ बताते हैं:
“पीएम मोदी एक बौद्धिक या अकादमिक व्यक्ति नहीं हैं, लेकिन उनका मानना है कि एक सफल सरकार चलाने के लिए मजबूत प्रशासन और प्रशासन महत्वपूर्ण है।”
यह कहीं न कहीं उपनिवेशवादी मानसिकता का भी द्योतक है, जो भारत के बाज़ार पर अपना अधिकार चाहता है और भारत को एक बार फिर से आर्थिक गुलामी की ओर ले जाना चाहता है।
मोबाइल के बाज़ार पर इसके असर के बारे में रॉयटर्स की रिपोर्ट में लिखा है कि:
अखिल भारतीय मोबाइल रिटेलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अरविंदर खुराना ने कहा कि अमेज़न ने स्मार्टफोन निर्माताओं के साथ सौदे किए, क्लाउडटेल के साथ मिलकर वह बहुत ज्यादा छूट दे रही थी, जिसके कारण भारत के ऑफलाइन मोबाइल विक्रेताओं के सामने काफी चुनौती आईं।
“पूरा बाजार उलट पुलट गया” खुराना ने कहा, जिनके व्यापार समूह में 150,000 मोबाइल खुदरा स्टोर हैं। उन्होंने कहा, कि छोटी दुकानों पर साल-दर-साल बिक्री घट रही है। ”
वर्तमान में, फॉरेस्टर रिसर्च के अनुसार, भारत के लगभग $ 900 बिलियन डॉलर के खुदरा बाजार में ई-कॉमर्स का 4% हिस्सा है। लेकिन यह तेजी से बढ़ रहा है।
फॉरेस्टर के अनुसार जहाँ भारत में महज 10% स्मार्टफोन 2013 में ऑनलाइन बेचे जा रहे थे तो वहीं 2016 तक यह आंकड़ा 30% तक उछल गया था। 2019 तक यह 44% था। फॉरेस्टर विश्लेषक सतीश मीणा ने कहा, अमेजन और फ्लिपकार्ट ही इन सभी पर भारी थे जो ऑनलाइन स्मार्टफोन की बिक्री का लगभग 90% हिस्सा कवर करते है।
छोटे खुदरा विक्रेताओं ने रायटर को बताया कि वे ऑनलाइन दिग्गजों के साथ कदमताल करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। अहमदाबाद शहर में एक मोबाइल फोन विक्रेता ने कहा कि जब वह आईफोन 11 को 56,000 रुपये (769 डॉलर) में बेच रहा था, तो एक ग्राहक ने उसे बताया कि यह अमेज़न पर लगभग 47,000 रुपये (645 डॉलर) में मिल रहा है।
पर प्रश्न अमेजन से अधिक भारतीय व्यापारियों पर है, और वह भी उन पर जो भारत के टेक उद्योग के सबसे बड़े नामों में से एक हैं। नारायणमूर्ति जैसों से पूछा जाना चाहिए कि क्या वह अपने पार्टनर अमेजन की इस बात से सहमत हैं कि भारत के निर्वाचित प्रधानमन्त्री बौद्धिक नहीं हैं?