विपुल रेगे। बंगाल चुनाव प्रचार के कवरेज के अलावा किसी व्यक्ति ने मीडिया की ख़बरों में स्थान पाया है, तो वह सचिन वझे है। एक बेहतरीन एनकाउंटर स्पेशलिस्ट रहा सचिन वझे आज कारावास की ठंडी सलाखों के पीछे खड़ा है। एनआईए वझे से पूछ रही है कि मुकेश अंबानी के घर के बाहर उसने किसके कहने पर विस्फोटक से भरी स्कॉर्पियो कार छोड़ी थी। ये प्रश्न कुछ वैसा है, जैसा आज से दस माह पूर्व रिया चक्रवर्ती से पूछा जा रहा था कि सुशांत की हत्या किसने की। वह प्रश्न आज भी अनुत्तरित खड़ा है। आशंका तो ये भी बनती है कि सैकड़ों अनुत्तरित प्रश्नों की कतार में वझे से पूछा जाने वाला प्रश्न भी शामिल हो जाएगा।
यदि सचिन वझे पूछताछ में ये उगल देता है कि किस मास्टरमाइंड के इशारे पर उसने इस आतंकी कार्रवाई को अंजाम दिया था, तो उसे पब्लिक डोमेन में लाने के लिए कितना समय लग सकता है। निश्चित ही वझे ने एनआईए की सख्त पूछताछ में कई राज़ उजागर किये होंगे। क्या वह राज़ देश के नागरिक जान पाएंगे?
जैसे हम आज तक ये नहीं जान सके कि सुशांत सिंह राजपूत केस और ठीक उसके बाद घटित बॉलीवुड ड्रग्स काण्ड में केंद्रीय एजेंसियों को क्या इनपुट्स मिले थे। अंतिम रुप से जाँच एजेंसियां देश के नागरिकों के प्रति ही उत्तरदायी होती है लेकिन भारत में कार्यरत जाँच एजेंसियों को उस उत्तरदायित्व का कोई अहसास नहीं है।
सचिन वझे प्रकरण में निश्चित रुप से कोई राजनेता या अंडरवर्ल्ड का कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति शामिल है। यदि वझे ने ऐसा कोई नाम लिया हो, जो सत्ता के गलियारों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हो, तो जान लीजिये कि ये नाम एनआईए की गुफा में हमेशा के लिए गुम हो सकता है। एक संभावना ये भी बनती है कि वझे के आका को बचाते हुए पूरा मामला एक ही आदमी पर डाल दिया जाए।
उल्लेखनीय है कि सचिन वझे के अलावा अब तक किसी और की गिरफ्तारी नहीं हुई है। वझे अकेला ये काम नहीं कर सकता था। इस काम को एक टीम ने मिलकर किया है। वह टीम कहाँ है? उस टीम का कैप्टन कहाँ है? जब से इस देश में केंद्रीय जाँच एजेंसियों का गठन किया गया, एक गलत परंपरा भी स्थापित हो गई। अब हर कोई ये मानकर चलता है कि सीबीआई या एनसीबी की जाँच कई वर्षों तक चलेगी।
जाँच चलती रहेगी लेकिन हासिल कुछ भी न होगा। ऐसे बंद हो चुके प्रकरणों की संख्या सैकड़ों में हैं, जिन पर सीबीआई जैसी अकर्मण्य एजेंसी ने हाथ आजमाया है। एजेंसियों की जाँच को अपने लाभ में बदलने का हुनर तो सारी ही सरकारों में इनबिल्ट होता है। यही कारण है कि आप लोगों तक वे नाम पहुँच ही नहीं पाते, जो अंबानी के घर के सामने विस्फोटक से भरी कार रखवा देते हैं या सुशांत सिंह राजपूत केस की जाँच को परदे के पीछे से प्रभावित करते हैं।
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अब तक मीडिया ये क्यों नहीं पूछ सका कि वझे ने अपने जिस आका का नाम बताया, वह कौन है। ऐसा लगता है इस केस को वझे तक सीमित रखने के प्रयास शुरु हो चुके हैं। बहुत से लोग नहीं चाहेंगे कि वझे के कारण पूरी टीम ही पकड़ में आ जाए। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री तो खुलकर वझे के पक्ष में खड़े हैं। महाराष्ट्र के यही मुख्यमंत्री एक फ्लॉप अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती के पक्ष में भी खुलकर सामने आए थे।
जगजाहिर है कि सुशांत सिंह राजपूत प्रकरण में उद्धव ठाकरे सरकार ने सीबीआई जाँच को प्रभावित करने की कोशिश की। तो क्या गारंटी है कि एनआईए उद्धव सरकार को दखल देने से रोक पाई हो? पिछले एक वर्ष में हमने देखा है कि मुंबई में सीबीआई, ईडी और एनसीबी कोई उपलब्धि प्राप्त नहीं कर सकी है।
अब एनआईए मैदान में है। उसकी शुरुआत ठीक वैसी ही है, जैसी सीबीआई और एनसीबी की थी। देखना रोचक होगा कि एजेंसियां, मीडिया और सरकारें किस होशियारी से सचिन वझे प्रकरण को जमीन में छह फ़ीट गड्ढा खोदकर हमेशा के लिए गाड़ देगी। पिछले सत्तर वर्षों में यहीं होता आया है। भारत के अनगिनत दुर्भाग्यों में एक दुर्भाग्य ये भी है।