स्वघोषित डेटा साइंटिस्ट गौरव प्रधान के खिलाफ एक महिला ने विभिन्न धाराओं में यौन उत्पीड़न संबंधित जो FIR दर्ज कराया है, उसी के आधार पर पुलिस ने जांच कर गौरव के खिलाफ अदालत में Chargesheet दाखिल की है। इस FIR को खारिज कराने के लिए गौरव प्रधान अदालत भी गया था, जहां अदालत ने उस पर लगे आरोप को संज्ञेय अपराध की श्रेणी में बताते हुए उस पर दर्ज FIR को निरस्त करने से साफ मना कर दिया था।
इसके बावजूद गौरव प्रधान के समर्थकों की ओर से लगातार झूठ फैलाया जा रहा है कि उसके ‘जीपी सर’ दर्ज FIR निरस्त किया जा चुका है/स्टे मिल चुका है- जो यह दिखाता है कि यह स्वघोषित डाटा साइंटिस्ट अपने ‘ब्रेनवॉश समर्थकों’ के जरिए अपने पक्ष में झूठ फैलाने की कोशिश में जुटा हुआ है, ताकि अपनी छवि को बचा सके।
इंडिया स्पीक्स डेली द्वारा गौरव प्रधान के खिलाफ एक महिला द्वारा दर्ज प्राथमिकी और उस प्राथमिकी के आधार पर दायर चार्जशीट की सत्यता सामने आते ही गौरव प्रधान ने अपने समर्थकों के लिए एक लिंक जारी किया यह कहते हुए कि उसके खिलाफ केस पर स्टे मिल चुका है। जब इस लिंक को क्लिक करते हैं तो सेक्युरिटी कोड के साथ यह लिंक खुलता है, जिसमें यह स्पष्ट लिखा है कि न्यायालय गौरव प्रधान पर दर्ज FIR को निरस्त करने में किसी भी प्रकार का
हस्तक्षेप नहीं करेगा।
Link: https://elegalix.allahabadhighcourt.in/elegalix/WebShowJudgment.do
दरअसल गौरव प्रधान की ओर से खुद पर दर्ज FIR को निरस्त कराने के लिए एक याचिका दायर की गयी थी, जिसमें कहा गया था कि गाजियाबाद के विजय नगर थाने में दर्ज मुकदमा संख्या-982 वर्ष 2017, जो आईपीसी की धारा 354(क्)/504/506 के तहत दर्ज है, उसे आईटी अधिनियम की धारा 66 ए के साथ पढा जाए और याची (अर्थात गौरव प्रधान) को इस FIR के कारण तत्काल गिरफ्तार न किया जाए।
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याचिका में गौरव प्रधान ने कहा कि उसके खिलाफ दुर्भावना के कारण उक्त महिला ने झूठे आरोप लगाकर FIR दर्ज कराए हैं। उसने एक पुराने जजमेंट का हवाला देते हुए यह भी कहा कि यह एफआईआर आईटी अधिनियम की धारा 66 ए के अंतर्गत दर्ज की गयी है, जिसे माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा पहले ही वर्ष 2015 में श्रेया सिंघल बनाम केंद्र सरकार के मामले में रद्द किया जा चुका है।
अदालत ने 27 जुलाई 2017 के अपने आदेश में इस पर कहा कि IPC की धारा 354(क्)/504/506 के अंतर्गत दर्ज मामले में प्रथम दृष्टि में संज्ञेय अपराध का बोध होता है, इसीलिए अदालत दर्ज FIR में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करना चाहता। अतः अदालत इस FIR को निरस्त करने की अनुमति नहीं दे सकता है।
अदालत ने यह जरुर कहा कि हां तब तक के लिए याचिकाकर्ता को इस मामले में गिरफ्तार न किया जाए, जब तक कि याचिकाकर्ता के खिलाफ पुलिस द्वारा सीआरपीसी की धारा 173 (2) के अंतर्गत न्यायालय के सम्मुख रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की जाती है। अदालत ने साफ कहा है कि हम चाहेंगे कि यह जांच अपनी अंतिम परिणति तक पहुंचे।
गौरव प्रधान और उसके गटर छाप चेले आधे अधूरे फैक्ट को पब्लिक फोरम में डाल कर लोगों को भ्रमित करने के धंधे में जुटे हुए हैं। भले ही अदालत ने गौरव की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी हो, लेकिन अदालत ने यह साफ-साफ कहा है कि गौरव प्रधान पर दर्ज मामला संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है, इसलिए उस पर दर्ज FIR को रद्द नहीं किया जा सकता है। इसीलिए झूठ फैलाने के पूर्व गौरव प्रधान और उसके समर्थक यह जान लें कि इस झूठ पर उनके खिलाफ कंटेप्ट ऑफ कोर्ट भी बन सकता है। जब तक गौरव प्रधान के पक्ष में अदालत का फैसला नहीं आ जाता तब तक वह एक चार्जशीटेड अभियुक्त है, और फिलहाल यही उसकी सच्चाई है।