संदीप देव। एक पक्षी होता है टिटहरी। उसे भविष्य की आहट खासकर अपशकुन और मृत्यु की सूचना देने वाला पक्षी माना जाता है। वह झुंड में आता है और तब तक लगातार बोलता है जब तक कि घटना-दुर्घटना न हो जाए।
अभी-अभी हमें और हमारे परिवार को यह साक्षात् अनुभव हुआ। मुझे विश्वास हो गया कि हमारे बुजुर्ग अपने अनुभव से हमें ऐसी बहुत सारी बातें बता जाते हैं, जो पुस्तकों में शायद ही मिले!
मेरे मम्मी-पिताजी हमारे हरियाणा वाले मकान पर कल तक रह रहे थे। कुछ दिन पहले की बात है, मां रोज कहती थी, आसपास टिटहरी बोल रही है। यह शुभ नहीं है। करीब एक सप्ताह से रोज टिटहरियां लगातार हमारी बिल्डिंग के बाहर के हरित क्षेत्र में बोल रही थी।
मां कहती, रात-दिन, सुबह-शाम टिटहरी बोलती रहती है। कुछ न कुछ बुरा होगा। मां बड़ी चिंतित रहती थी और अपनी चिंता वह लगातार जाहिर कर रही थी एवं भगवान से हम सबकी की भलाई के लिए प्रार्थना करती रहती थी। हमें लगता था कि यह कौन-सी बात है?
23 मार्च की शाम हमारी बिल्डिंग में हमारे ही साईड से और हमारे फ्लैट से दो फ्लैट ऊपर एक दुर्घटना घट गई। उस परिवार का लड़का हॉस्टल से घर आया था। लड़के की उम्र केवल 18 साल थी। पढ़ने में बहुत तेज था। पहली बार में ही मेडिकल निकाल लिया था। घर आते ही वह नहाने के लिए बाथरूम में घुसा और हृदयाघात हुआ या ब्रेन स्ट्रोक, गिरा और उसकी मृत्यु हो गई!
अपने माता-पिता का वह अकेला बेटा था। हमारी सोसायटी में सब दुखी थे। हमने होली नहीं मनाया। आज भी उसकी मृत्यु के सदमे से मेरा परिवार नहीं उबर पाया है। उसके परिवार का तो बहुत ही बुरा हाल है।
उसकी मृत्यु के बाद टिटहरियों का झुंड पता नहीं कहां चला गया! उसकी मृत्यु के बाद से ही टिटहरियों का बोलना बंद हो गया है। जिस साईड वह बोल रही थी, उसी साईड मृत्यु हुई है। हम रोज इसकी चर्चा करते हैं कि यह कैसा संकेत है?
फिर मेरी पत्नी Shweta Deo ने इस पर खोज कर पढ़ना आरंभ किया। फिर पता चला कि टिटहरी जमीन पर रहती है। जिन दिन वह वृक्ष पर रहने लगे समझो कि धरती पर भूकंप आने वाला है। टिटहरी कभी भी वृक्ष पर अपना घर नहीं बनाती है। वह भूमि पर ही अंडे देती है और भूमि पर ही रहती है। वह झुंड बनाकर जिस जगह बोलने लगे तो समझो उस जगह के आसपास मौत खासकर अकाल मृत्यु की परछाई उसे दिखने लगी है।
आज शहर में तो मकानों का झुंड हो गया है, इसलिए टिटहरी की आवाज सुनाई नहीं देती। लेकिन गांव अर्थात जहां थोड़ी-सी भी प्रकृति है, वहां वह दिख जाती है। मेरा हरियाणा वाला घर गांव के वातावरण में ही है।
टिटहरी को मृत्यु की आहट पहले ही हो जाती है। जिसे मृत्यु का काला साया कहा गया है, वह कुछ पशु-पक्षियों को दिख जाता है, इसलिए वह उस घर के आसपास बोलकर शायद वहां रहने वालों को सचेत करने आती हैं।
कुत्ते के बारे में तो कहा ही जाता कि उसे सूक्ष्म ऊर्जा अर्थात भूत-प्रेत आदि का पता चल जाता है और वह रोने लगता है। परंतु कुत्ते को भी 24 से 48 घंटे पहले ही अदृश्य शक्तियों का पता चलता है, लेकिन टिटहरी का यह जो साक्षात् अनुभव हमारे परिवार को हुआ है, वह तो एक सप्ताह पहले से झुंड बांध कर बोल रही थी और मृत्यु के बाद एकदम से गायब हो गई!
मां से पूछा तो उन्होंने बताया कि उन्हें इसका ज्ञान उसकी मां और दादी ने दिया था। अर्थात् मेरी नानी और नानी दादी ने। मैं इसका कोई वैज्ञानिक कारण तो नहीं जानता, परंतु आज यह अवश्य जान गया हूं कि भरतीय परंपरा में हमारे बुजुर्गों से ढेर सारा ज्ञान अगली पीढ़ी को ट्रांसफर होता था, जिसका गहरा अर्थ था! 🙏