श्वेता पुरोहित-
चला लक्ष्मीश्चलाः प्राणाश्चले जीवितमन्दिरे।
चलाचले च संसारे धर्म एको हि निश्चलः॥
अर्थ: “यहाँ आचार्य बताते हैं कि धन (लक्ष्मी), प्राण, और जीवन – ये सभी चलायमान और अस्थायी हैं। इस संसार में सब कुछ चंचल और अस्थिर है, केवल धर्म ही वह निश्चल तत्व है जो सदा स्थायी रहता है।”
व्याख्याः
आचार्य चाणक्य यहाँ संसार की अस्थिरता और अनित्यता की बात कर रहे हैं। उनका मुख्य संदेश है कि जिस तरह लक्ष्मी, प्राण,और जीवन अनित्य हैं, उसी प्रकार सम्पूर्ण संसार भी अनित्य है। लक्ष्मी, यानी धन समय-समय पर बदलता है। किसी के पास अधिक होता है, तो किसी के पास कम। प्राण, जीवन, और शरीर की सीमा भी समय के साथ समाप्त हो जाती है। संसार में सब कुछ चंचल और अस्थिर है। किंतु, धर्म ही वह प्रियतम तत्व है जो सदा अचल और स्थायी रहता है। धर्म की अनुसरण करने से व्यक्ति को सच्चा सुख और शांति मिलती है और वही सतत परिवर्तनशील संसार में अकेला स्थायी तत्व है जो सदा कायम रहता है। इसलिए धर्म की महत्ता को समझना और उसे अनुसरण करना ही असली समझ और बुद्धिमत्ता है।
यो ध्रुवाणि परित्यज्य ह्यध्रुवं परिसेवते ।
ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ति चाध्रुवं नष्टमेव तत् ॥
अर्थः “जो व्यक्ति स्थायी चीजों को त्यागकर अस्थायी चीजों की प्रशंसा और पूजा करता है, उसके लिए स्थायी वस्तु भी नष्ट हो जाती है, और अस्थायी वस्तु तो नष्ट हो ही जाती है। ऐसे में व्यक्ति को चतुराई से काम लेना चाहिए।”
व्याख्याः
इस श्लोक में चाणक्य जीवन की एक महत्वपूर्ण शिक्षा दे रहे हैं। जीवन में हमारे सामने बहुत सारी चीजें हैं -कुछ स्थायी (ध्रुव) और कुछ अस्थायी (अध्रुव)। स्थायी चीजें जैसे परिवार, मित्र, सदाचार, नैतिकता, और ज्ञान, जो जीवन के वास्तविक मूल्य हैं। जबकि अस्थायी चीजें जैसे धन, यश, और इंद्रिय सुख, जो समय- समय पर परिवर्तित होते रहते हैं। ऐसे में जब कोई व्यक्ति स्थायी वस्तु की अहमियत को समझता है और उस पर ध्यान केंद्रित करता है, तो वह जीवन में सतत आनंद और संतोष का अनुभव करता है। वहीं, जो व्यक्ति अस्थायी चीजों को पाने में ही अपना समय व्यर्थ करता है, उसकी निश्चित (स्थाई) चीजें भी नष्ट हो जाती हैं। और अनिश्चित चीजों को तो नष्ट होना ही है, उसमें कोई शक नहीं। ऐसे में वह अस्थाई वस्तुओं का पीछा करते- करते अपना समूल नष्ट कर बैठता है। इसलिए हमें अपने प्रयासों और संसाधनों को सही दिशा में लगाना चाहिए और जीवन के वास्तविक मूल्यों को समझकर उन्हें प्राथमिकता देनी चाहिए।