आईएसडी नेटवर्क। 5 अक्टूबर 1993 को तत्कालीन गृह सचिव एन.एन वोहरा ने अपनी रिपोर्ट सरकार के सामने रख दी। इसके ठीक सात माह पूर्व कुख्यात गैंगस्टर दाऊद इब्राहिम ने अपने लोगों से मुंबई में तेरह सीरियल बम धमाके करवाए थे। धमाकों को अंजाम देने वाला दाऊद भाग निकला।
धमाकों के 22 वर्ष बाद इस प्रकरण के एक अन्य दोषी टाइगर मेमन के भाई याकूब को सन 2015 में फांसी दे दी गई थी। वोहरा रिपोर्ट में क्या था, ये देश आज भी जानना चाहता है। उस रिपोर्ट को देश के सामने आने से रोका गया। वोहरा ने रिपोर्ट तीन माह में तैयार करके सरकार को सौंप दी लेकिन सरकार ने उसे दो साल तक सदन में पेश ही नहीं किया।
सन 1995 में विपक्षी दलों के दबाव में इसके कुछ अंश सार्वजनिक किये गए थे लेकिन पूरी रिपोर्ट की देश आज भी प्रतीक्षा कर रहा है। जब आउटलुक ने इसके अंश छापे तो इसमें एनसीपी नेता शरद पवार का नाम आया। शरद पवार ने आउटलुक पर 100 करोड़ का मुकदमा ठोंक दिया था। वह 14 फरवरी 1996 का दिन था जब आउटलुक के पत्रकार राजेश जोशी ने वोहरा कमेटी की रिपोर्ट के डिटेल्स दुनिया के सामने रख दिए थे।
इस रिपोर्ट को मुंबई के आज के परिदृश्य से जोड़कर देखा जा सकता है। मुंबई में जिस तरह से पुलिस-प्रशासन ने आपातकाल जैसे हालात बना दिए हैं, सरकार को वोहरा कमेटी की रिपोर्ट सार्वजानिक कर देनी चाहिए। ताकि दुनिया राजनीति और अंडरवर्ल्ड के गठजोड़ का सच जान सके।
आउटलुक में लिखे गए राजेश जोशी के लेख के अनुसार
पवार के लिए कयामत का समय
सीक्रेट पेपर्स के अनुसार शरद पवार पर आरोप हैं कि उनके रिश्ते ऐसे हवाला एजेंट्स से हैं, जिनकी सीधी लिंक मोस्ट वांटेड सरगना दाऊद इब्राहिम से जुड़ी हुई है।
नेक्सस
सन 1993 के बम धमाकों के बाद गृह मंत्रालय ने एक विस्तृत जांच जो जानकारी एकत्रित की, उसमे कांग्रेस के नेताओं के लिंक अंडरवर्ल्ड के साथ जुड़ते दिखाई दिए। इस जाँच की रिपोर्ट वोहरा कमिटी को सौंप दी गई। इस नेक्सस में एक त्रिकोण था। राजनीति, अंडरवर्ल्ड और प्रशासनिक सरंक्षण से ये त्रिकोण पूर्ण होता था।
महाराष्ट्र में ये ट्री इस प्रकार था
दाऊद इब्राहिम: शरद पवार, सलीम जकारिया और जावेद खान ( ये दोनों पूर्व मंत्री हैं और पवार के करीबी)
मोहम्मद डोसा : मदन बाफना(पूर्व मंत्री)
पी.राज कोहली: अरुण मेहता (पूर्व गृह मंत्री)
हाजी अहमद : डी.वी. पाटिल और जावेद
खान-खान ब्रदर्स: अरुण मेहता, सलीम ज़करिया (पूर्व मंत्री)
टाइगर मेमन : जावेद खान
गुजरात
अब्दुल लतीफ़: चिमनभाई पटेल (पूर्व मंत्री)
रतिलाल देवा नाविक : कादिर पीरज़ादा (पीसीसी वाइस प्रेजिडेंट)
इज्जु शेख, हाज़ी: अहमद पटेल (एआईसीसी जनरल सेक्रेटरी)
हस्सना दादा: सीडी पटेल (गृह मंत्री) ठाकुर नायर ( आपूर्ति मंत्री)
अमर सुभानिया : चिमनभाई पटेल
रामभाई गदवई: अशोक लाल (खेल मंत्री), संतोष बेन जडेजा (विधायक) ये पहले जनता दल में थी। बाद में कांग्रेस जॉइन कर ली। संतोष बेन को माफिया क्वीन के नाम से जाना जाता है।
पिछले साल की ही बात है, जब इसे बुझा पटाखा कहा गया था। अब लग रहा है कि ये एक और राजनीतिक पटाखा है, जो सुलगने का इंतज़ार कर रहा है। राजनीतिक-अंडरवर्ल्ड नेक्सस की बारह पेज की ये रिपोर्ट जब संसद के पटल पर रखी गई, तो विपक्ष ने एक साथ मिलकर तीव्र विरोध किया और आरोप लगाया कि ये रिपोर्ट अधूरी है।
विपक्ष ने कहा कि रिपोर्ट में राजनीतिज्ञों का कोई ज़िक्र नहीं है। इस बात को महीनों बीत गए और जनता की याददाश्त से ये बात पूरी तरह निकल गई, तब इस मामले में एक महत्पूर्ण डेवलपमेंट हुआ। मिनिस्ट्री ऑफ़ होम अफेयर्स की ओर से कुछ महत्वपूर्ण कागज़ कमिटी को सौंपे गए और किसी तरह आउटलुक मैगजीन तक पहुंचा दिए गए। आउटलुक ने राजनीतिज्ञों और अंडरवर्ल्ड की इस छुपी हुई लिंक पर प्रकाश डाला। जानकारी के मुताबिक ये पैसा चुनावों के लिए दिया गया था।
मिनिस्ट्री ऑफ़ होम अफेयर्स की रिपोर्ट में छुपा बैठा था सच
एमएचए की रिपोर्ट आरोप लगा रही थी कि भारत में सक्रिय दाऊद इब्राहिम के सहयोगियों और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री के बीच एक नेक्सस निश्चित रुप से काम कर रहा था। रिपोर्ट के मुताबिक हवाला का रैकेट चलाने वाला मूलचंद शाह उर्फ़ चौकसी जैन केस में भी शामिल था और दाऊद इब्राहिम के बहुत नज़दीक माना जाता था।
जाँच में पाया गया कि चौकसी ने दिसंबर 1979 से अक्टूबर 1992 के बीच 72 करोड़ रुपये शरद पवार को ट्रांसफर किये। पवार के अलावा और भी कई कांग्रेसी नेताओं के नाम उस लिस्ट में थे, जिनको चौकसी ने पैसा दिया था। रिपोर्ट के मुताबिक दिसंबर 1979 से लेकर फरवरी 1980 के बीच 7 करोड़ पहुंचाए।
ये पैसे किसी छुपे हुए व्यक्ति द्वारा रिसीव किये गए थे। रिपोर्ट में विशेष रूप से उल्लेखित था कि चौकसी और दाऊद की बहुत गहरी निकटता थी। मूलचंद शाह उर्फ़ चौकसी मुंबई के कुछ प्रभावशाली लोगों और मिडिल ईस्ट में सुरक्षित ढंग से पैसा पहुंचा रहा था। शरद पवार को चौकसी ने अगला पेमेंट 1991 के मई माह में किया था। रिपोर्ट के अनुसार ये पैसा मिडिल ईस्ट के एक देश से हवाला चैनल के जरिये पहुंचाया गया था।
सिर्फ हवाला के जरिये ही नहीं बल्कि और भी स्त्रोतों से शरद पवार के पास पैसा पहुंचाया जा रहा था। 1990 के सितंबर में पप्पू कल्याणी(कालानी) ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की ओर से चौकसी को 20 करोड़ रूपये विदेश में ट्रांसफर करने के लिए दिए थे। एक 50 करोड़ का दुसरा अमाउंट भी चौकसी ने मुख्यमंत्री की ओर से ट्रांसफर किया था। ये डील एक वकील के माध्यम से की गई थी।
ये पैसा भी किसी मिडिल ईस्ट के देश से आया था। मूलचंद शाह उर्फ़ चौकसी को 4 मई 1993 को टाडा के तहत गिरफ्तार कर लिया गया था। उस पर आरोप था कि मुंबई बम धमाकों के लिए टाइगर मेमन को उसने 2.5 करोड़ दिए थे।
मुंबई बम धमाकों से पहले शरद पवार के संपर्क में था चौकसी
रिपोर्ट के अनुसार चौकसी मुंबई के बम धमाकों से कुछ माह पहले तक शरद पवार के संपर्क में था। अक्टूबर 1992 में एक बड़ा ट्रांजिक्शन देखने में आया। चौकसी ने शरद पवार के भतीजे के अकाउंट में दस करोड़ ट्रांसफर किये।
मुंबई बम धमाकों के अभियुक्त उस्मान घानी से पूछताछ के दौरान उसने बताया कि मुंबई के प्रभावशाली और उजले नाम वाले लोग उसके कांटेक्ट में हैं। ये लोग हवाला के जरिये विदेशों में पैसे के लेनदेन में उसकी सहायता करते थे।
रिपोर्ट में मुंबई के शीर्ष राजनीतिज्ञों और कुछ फ़िल्मी सितारों के नाम भी थे। रिपोर्ट के अनुसार दिलीप कुमार, फिरोज खान और मुंबई का बनर्जी नामक वकील भी उस्मान घानी के संपर्क में थे। उस्मान ने इनके पैसों का भी ट्रांजिक्शन किया था। उस्मान मुंबई के एक बहुत शीर्ष राजनीतिज्ञ के साथ सीधे संपर्क में था।
रिपोर्ट के अनुसार हवाला आपरेटर चौकसी करोड़ों के जैन हवाला घोटाले में भी शामिल था। चौकसी के अलावा दिल्ली के रहने वाले एक हवाला डीलर शंभूदयाल शर्मा उर्फ़ गुप्ता जी का नाम भी रिपोर्ट में आया है। सन 1991 में शर्मा गिरफ्तार हुआ और सीबीआई की पूछताछ के बाद जैन हवाला घोटाले का पता चला।
इसी से पूछताछ के बाद सीबीआई ने जे के जैन के घर छापेमारी की थी। एमएचए की रिपोर्ट के मुताबिक शर्मा एक दशक से राजनीतिज्ञों का पैसा हवाला में चला रहा था। मई 1985 में शर्मा का नाम पहली बार सामने आया। रिपोर्ट के मुताबिक आंतरिक सुरक्षा मंत्री अरुण नेहरू को 2.5 करोड़ का पेमेंट करने में उसने चौकसी की मदद की थी।
चौकसी भारत के विरुद्ध षड्यंत्र करने वाले संगठनों को भी धन उपलब्ध करवा रहा था
जाँच के बाद एमएचए की रिपोर्ट में निकलकर आया कि चौकसी मुंबई के लेमिंग्टन रोड पर रहता था। ये राजस्थान के जालौर जिले का रहने वाला था। उसके पिता टेक्सटाइल बिजनेस के लिए मुंबई आए थे लेकिन चौकसी हीरो के व्यापार की ओर मुड़ गया।
चौकसी को जाँच एजेंसियों ने कई बार घेरने की कोशिश की लेकिन वह क़ानूनी तरीकों और राजनीतिक संपर्कों के बल पर बहुत समय तक बचता रहा। 1989 के मार्च में चौकसी के खिलाफ COFEPOSA (Conservation of Foreign exchange and Prevention of Smuggling Activities) के तहत डिटेंशन आर्डर इश्यू किया गया लेकिन 1990 में ये आदेश महाराष्ट्र सरकार ने वापस ले लिया।
एमएचए की रिपोर्ट में लिखा गया कि राज्य के गृह मंत्री अरुण मेहता के कहने पर ये आदेश वापस लिया गया। अरुण मेहता और कुछ नेताओं को 2.5 करोड़ दिए गए थे। ये बात नोट में लिखी हुई है। प्रवर्तन निदेशालय और Marine and Preventive Wing मुंबई द्वारा भी 1990 में केस दर्ज किये गए लेकिन वह जमानत का लाभ लेकर बच निकला।
वह हमेशा जमानत के दम पर, राजनीतिक संपर्कों से और पैसों की ताकत से बचकर निकलने में सफल हुआ। रिपोर्ट में लिखा गया है कि चौकसी से कभी विस्तृत पूछताछ नहीं की जा सकी क्योंकि केंद्र और राज्य में में उसके हमदर्द बैठे हुए थे। चौकसी 1991 में पुनः पकड़ा गया।
हवाला डीलर शंभुदयाल शर्मा की गिरफ्तारी के दौरान पता चला कि चौकसी कश्मीर में भारत के विरुद्ध षड्यंत्र करने वाले संगठनों को भी धन उपलब्ध करवा रहा था। जब चौकसी को मुंबई पुलिस ने अंदर डालकर पूछताछ शुरु की तो उसका कहना था कि उसके ऊँचे राजनीतिक सम्पर्कों के चलते उससे पूछताछ नहीं की जा सकती
राज्य के गृहमंत्री अपराधी की सिफारिश करते थे
जाँच के बाद एमएचए की रिपोर्ट में निकलकर आया कि चौकसी मुंबई के लेमिंग्टन रोड पर रहता था। ये राजस्थान के जालौर जिले का रहने वाला था। उसके पिता टेक्सटाइल बिजनेस के लिए मुंबई आए थे लेकिन चौकसी हीरो के व्यापार की ओर मुड़ गया।
चौकसी को जाँच एजेंसियों ने कई बार घेरने की कोशिश की लेकिन वह क़ानूनी तरीकों और राजनीतिक संपर्कों के बल पर बहुत समय तक बचता रहा। 1989 के मार्च में चौकसी के खिलाफ COFEPOSA (Conservation of Foreign exchange and Prevention of Smuggling Activities) के तहत डिटेंशन आर्डर इश्यू किया गया लेकिन 1990 में ये आदेश महाराष्ट्र सरकार ने वापस ले लिया।
एमएचए की रिपोर्ट में लिखा गया कि राज्य के गृह मंत्री अरुण मेहता के कहने पर ये आदेश वापस लिया गया। अरुण मेहता और कुछ नेताओं को 2.5 करोड़ दिए गए थे। ये बात नोट में लिखी हुई है। प्रवर्तन निदेशालय और Marine and Preventive Wing मुंबई द्वारा भी 1990 में केस दर्ज किये गए लेकिन वह जमानत का लाभ लेकर बच निकला। वह हमेशा जमानत के दम पर, राजनीतिक संपर्कों से और पैसों की ताकत से बचकर निकलने में सफल हुआ।
अहमद पटेल और चिमनभाई पटेल का नाम भी शामिल था
रिपोर्ट के मुताबिक उसने इस केस में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का नाम लिया था।दाऊद के धंधों का एक केंद्र गुजरात में भी था। विशेष रुप से उसके सारे काम तटवर्ती गुजरात से होते थे। एमएचए की रिपोर्ट के अनुसार गुजरात के कई नेता इस अंडरवर्ल्ड से लिंक बनाए हुए थे। उनमे पूर्व मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल और एआईसीसी जनरल सेक्रेटरी अहमद पटेल का नाम भी शामिल था।
आज देश फिर से मांग कर रहा है कि ये रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए। आज देश को महाराष्ट्र के हालात देखकर समझ आ रहा है कि वर्षों पूर्व वोहरा कमिटी की रिपोर्ट पटल पर क्यों नहीं आने दी जा रही थी। कांग्रेस पार्टी और उसके अंडरवर्ल्ड कनेक्शन के बारे में देश जान न सके, इसलिए ये सारा प्रपंच रचा गया था।
देश को जानना चाहिए कि उस ज़माने में एक हवाला डीलर अपने राजनीतिक सम्पर्कों की धमकी पुलिस को देकर बच निकलता था। महाराष्ट्र में लगाया जा रहा अघोषित आपातकाल वोहरा कमिटी रिपोर्ट को पुनः प्रासंगिक बना गया है।
बहुत बहुत धन्यवाद
मोदी जी please जागिये। अपने व्यक्तित्व को सार्थक कीजिये। ये देश के दुश्मन हैं। महाराष्ट्र मे power abuse का हाल देख रहें हैं। Selective victimization! Can it be allowed? हर जगह politics के interests आड़े नही आने चाहियें। You are different. Let Pawar & every person like Pawar who is found to have criminal nexus or invovled in criminal activities & transactions be taken to task by & under law. बहुत उम्मीद है देश को आपसे। इस रिपोर्ट से बड़ा और क्या base/proof होगा action के लिए?