कल दशहरा बीत गया और जैसा जाहिर था कि एक बार फिर राम जी को नीचा दिखाने के कुप्रयास के साथ यह दिवस समाप्त हुआ. यह तय ही था कि आज ही फिर से राम जी को स्त्री विरोधी तय किया जाएगा और फिर से रावण का गुणगान होगा। दरअसल यह जो कार्य शुरू हुआ, उसके मूल में राम के बहाने से पूरे हिन्दू पुरुषों को नीचा और स्त्री विरोधी दिखाने की कोशिश थी और यह कोशिश सफल भी हुई। स्त्री विमर्श पर तमाम आंसू बहाने वाली औरतें कितनी पढ़ी लिखी हैं, यह उनकी कविताएँ ही पढ़कर पता लग जाता है। जिन लोगों ने रामायण नहीं पढ़ी वह औरतें अहल्या की पीड़ा पर लिखती हैं। एक कविता पर नजर डालिए। यह पोषमपा नामक वेबसाइट पर प्रख्यात कवि प्रेमशंकर रघुवंशी द्वारा लिखी गयी है,
“अपने ही मर्द द्वारा
बनाया गया पत्थर उसे,
अपने ही मर्द ने
छोड़ दिया,
जानवरों के बीच वन में!”
ऐसी ही एक कविता है, किसी सुमन कुमारी की उस पर नजर डालिए
अहल्या पत्थर बनायी जाती है
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करनी किसी की भी हो,सतायी नारी जाती है ।
हवस हो इन्द्र की,अहल्या पत्थर बनायी जाती है ।।
और ऐसी ही एक वेबसाइट है कविताकोश, उसमें एक कविता पर नजर डालिए। देखिये कवियत्री अंजू शर्मा क्या कहती हैं
किन्तु
शापित नहीं होना है मुझे,
क्योंकि मैं नकारती हूँ
उस विवशता को
जहाँ सदियाँ गुजर जाती हैं
एक राम की प्रतीक्षा में,
इस बार मुझे सीखना है
फर्क
इन्द्र और गौतम की दृष्टि का
वाकिफ हूँ मैं शाप के दंश से
पाषाण से स्त्री बनने
की पीड़ा से,
तो वहीं रामायण को मिथकीय मानने वाली उत्तिमा केशरी एक कविता अहल्या एक रासायनिक पदार्थ” में पितृसत्ता को लक्ष्य बनाते हुए लिखती हैं
तीर्थ को क्या गए कि
इंद्र ने छल से कर लिया तुम्हें वरण
तुमनेही तो कहा था अहल्या कि हे गौतम ऋषि
तुम तो किरण विज्ञान के ज्ञाता हो
तम के पार जाने की क्षमता है तुममें
क्योंकि तुम गौतम हो!
मैं तो एक रासायनिक पदार्थ हूं
तुम्हारे प्रयोगशाला के
इंद्र है सूरज मंडल के अंतस की किरण
और श्राप दिया, यही तो थी उनकी खोज/जब तक पूरी नहीं हुई खोज
मैं प्रयोगशाला में स्थापित रही।
आखिर कब करोगे प्राण प्रतिष्ठा
इस रासायनिक पदार्थ में?
उतर दो न
हे महामानव गौतम ऋषि’
इन कविताओं को पढ़कर आपको क्या लगेगा, यही न कि अहल्या के साथ अत्याचार हुआ, और उनकी कोई गलती नहीं थी। परन्तु रामकथा में सबसे प्रमाणिक वाल्मीकि और कम्ब रामायण दोनों ही रामायण इस प्रकरण में कुछ भी ऐसा नहीं बताती हैं कि इंद्र ने बलात्कार किया था। दरअसल इंद्र एक ऐसे देव रहे थे जो हिन्दू जनमानस में एक चेतना का संसार कर सकते थे, तो उनके चरित्र को डायलूट किया गया और उसके बाद कोढ़ में खाज की तरह कुकुरमुत्ते की तरह उगी हुई यह कविताएँ हैं। वैसे तो कविताएँ असंख्य होंगी, नहीं होंगी तो अहल्या का उल्लेख होगा, परन्तु इनमें से किसी भी रचनाकार ने न ही वाल्मीकि रामायण और न ही काम्ब रामायण पढने की इच्छा जगाई! जबकि वाल्मीकि रामायण में वाल्मीकि जी यह स्पष्ट लिखते हैं
तस्य अन्तरम् विदित्वा तु सहस्राक्षः शची पतिः ।
मुनि वेष धरो भूत्वा अहल्याम् इदम् अब्रवीत् ॥
ऋतु कालम् प्रतीक्षन्ते न अर्थिनः सुसमाहिते ।
संगमम् तु अहम् इच्छामि त्वया सह सुमध्यमे ॥
अर्थात
आश्रम में मुनि को अनुपस्थित देखकर शचीपति इंद्र ने गौतम का रूप धारण कर अहल्या से कहा
कि कामी पुरुष ऋतुकाल की प्रतीक्षा नहीं करते! हे सुन्दरी हम आज तुम्हारे साथ समागम करना चाहते हैं।
यह है इंद्र की बात! अब देखिये कि अहल्या क्या कहती हैं
मुनि वेषम् सहस्राक्षम् विज्ञाय रघुनंदन ।
मतिम् चकार दुर्मेधा देव राज कुतूहलात् ॥
अथ अब्रवीत् सुरश्रेष्ठम् कृतार्थेन अंतरात्मना ।
कृतार्था अस्मि सुरश्रेष्ठ गच्छ शीघ्रम् इतः प्रभो ॥
अर्थात हे रघुनंदन, मुनिवेश धारण किए हुए इंद्र को पहचानकर भी दुष्ट अहल्या ने प्रसन्नतापूर्वक इंद्र के साथ कौतुहल वश भोग किया। और फिर वह इंद्र से बोलीं कि हे इंद्र मेरा मनोरथ पूरण हुआ, अत: हे इंद्र, मेरा मनोरथ पूर्ण हुआ, अब तुम यहाँ से शीघ्र चले जाओ!
इसका अर्थ यह है कि अहल्या ने यह पहचान लिया था कि यह गौतम नहीं है, इंद्र हैं, अत: फिर इंद्र द्वारा छल या बलात्कार की बात ही नहीं है। कविताकोश पर जो कविता है, कि
इस बार मुझे सीखना है
फर्क
इन्द्र और गौतम की दृष्टि का,
ऐसा लगता है कि लेखिका ने अहल्या को पढ़ा ही नहीं है, उसे शाप किस बात का मिला है? क्या एक पति को यह भी अधिकार नहीं कि वह अपनी पत्नी को एक पराए पुरुष के साथ सम्बन्ध बनाते हुए देखे और यह कहते हुए चला जाए कि तुम यही पर पश्चाताप करो, और मेरे शाप के प्रभाव से तुम अदृश्य रहोगी। इसे मानवीय रूप में उस समय की स्थिति से समझ सकते हैं कि एक सामाजिक दंड था जिसमें उन्होंने कहा कि तुम इसी स्थान पर हजारों वर्ष तक वास करोगी, और तुम्हारा भोजन केवल पवन होगा!
यदि आज कोई पति अपनी स्त्री को इस प्रकार के आचरण में लीन देखे तो उसकी प्रतिक्रिया क्या होगी? हम रोज़ ही अखबारों में पढ़ते हैं। यह तो हमारा सनातन था जिसमें पति अकेले रहने का श्राप देकर चला गया, परन्तु क्या ऐसा किसी मजहब या रेलिजन में है? शिवाजी के साथ लड़ने के लिए अफजल खान जब गया था तो उसने अपने हरम की सभी ६३ औरतों को मौत के घाट उतार दिया था। इनके लिए जो अकबर महान है, उसने ही हरम को संस्थागत रूप दिया था. हरम में लड़कों को हिजड़ा बनाकर रखा जाता था, और उन्हीं के माध्यम से राजनीति खेली जाती थी. जो लोग अकबर को अपना आदर्श मानते हैं, वह उन गौतम ऋषि पर उंगली उठाते हैं, जिन्होनें अपनी पत्नी की इस गलती के लिए भी खुद घर से बाहर जाना चुना, न कि पत्नी को बाहर निकालना!
क्योंकि सनातन में चेतना का विस्तार है। पति को भी यह ज्ञात है कि यह कौतुहल पूर्वक किया गया अपराध है, अत: वह अपनी पत्नी को घर से नहीं निकालते, जैसा आज की स्थिति में कोई भी पुरुष करेगा? या फिर शरियत में इसकी क्या सजा है, मुझे नहीं पता! मगर इनके मजहब के ठेकेदारों के वीडियो सुन कर इतना तो पता चल गया है कि औरत इनके लिए खेती है, उसमें चाहे जैसे घुसो! और इस समय के सेक्युलर क़ानून के अनुसार भी एक चरित्रहीन स्त्री को गुजारा भत्ता देने के लिए उसका पति बाध्य नहीं है। मगर उस समय एक ऋषि पति ने अपनी पत्नी को घर से नहीं निकाल दिया बल्कि पश्चाताप के लिए वहीं छोड़ गए तपस्या करने के लिए और स्वयं चले गए!
जो पहली कविता है उसमें कितना झूठ कहा गया है कि
अपने ही मर्द ने
छोड़ दिया,
जानवरों के बीच वन में!”
गौतम वन में स्वयं गए थे, अहल्या को नगर स्थित आश्रम में छोड़कर!
पढ़े लिखे बेवक़ूफ़ यह लोग कितनी छद्मता और झूठ पर रहते हैं, और जहर की खेती करते हैं इन्हें नहीं पता!
उन्होंने नहीं कहा कि मेरे घर से निकल जाओ! अहल्या ने वह कदम क्षणिक आवेश में उठाया था। यह वही कौतुहल रहा होगा जो कुंती के हाथों में जब ऋषि दुर्वासा द्वारा दिए गए वरदान के कारण उत्पन्न हुआ! परन्तु सनातनी समाज में स्त्री के कौतुहल पूर्ण सम्बन्धों की भी क्षमा है एवं तपस्या के उपरान्त जब श्री राम उनके चरण छूते हैं तो जैसे उन्हें सामाजिक स्वीकृति प्राप्त होती है। क्योंकि उस आश्रम में इतने वर्षों से कोई आया नहीं है, अत: वह अकेली रह रही हैं। समाज जानता है कि इन्होनें अपने पति के साथ छल किया, पति ने नहीं किया! इसलिए वह सभी आते नहीं हैं।
फिर महर्षि वाल्मीकि आगे कहते हैं कि
राघवौ तु ततः तस्याः पादौ जगृहतुः मुदा
स्मरंती गौतम वचः प्रतिजग्राह सा च तौ ॥
पाद्यम् अर्घ्यम् तथा आतिथ्यम् चकार सुसमाहिता ।
प्रतिजग्राह काकुत्स्थो विधि दृष्टेन कर्मणा
अर्थात श्री रामचंद्र और लक्ष्मण ने अहल्या के पैर छुए, अहल्या ने भी गौतम ऋषि की बातों को याद किया और वह उनके चरणों में गिर पड़ीं!
उस समय अयोध्या के राजकुमारों का कितना नाम था, जिन्होंने राक्षसों का वध किया था, ऋषियों को भयहीन किया था, ऐसे राजकुमार आकर स्वयं एक ऐसी स्त्री के चरण छू रहे हैं, तो क्या यह सामाजिक स्वीकृति नहीं थी? और अहल्या ने जैसे ही उनका स्वागत सत्कार किया वैसे ही ऋषि गौतम भी वहां आ गए!
इसे और समझते हैं। जरा सोचिये कि एक प्रतिष्ठित व्यक्ति की पत्नी कौतुहल वश किसी पर पुरुष से सम्बन्ध बना ले और समाज उसे देख ले, तो समाज की प्रतिक्रिया क्या होगी? क्या वह उस प्रतिष्ठित व्यक्ति के पौरुष पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगाएगा? और यदि उस स्त्री को जिससे जानते बूझते यह गलती हुई है, वह पश्चाताप करें क्योंकि वह चरित्रहीन नहीं है, बस वह आकर्षण था,और वह उसमें बह गईं, परन्तु उन्हें अपनी भूल अब ज्ञात हो गयी है। और फिर जब तक कोई ऐसा व्यक्ति नहीं आता जिसकी प्रतिष्ठा सम्पूर्ण विश्व में है, और वह आकर उन्हें सामाजिक स्वीकृति देता है, उसे ही उद्धार की संज्ञा दी गयी और उसके बाद गौतम ऋषि आए और वहां पर उनके साथ तपस्या करने लगे।
ऊपर जो मैंने कविताएँ बताई हैं, अब बताइए उनके ज्ञान पर हंसा जाए या रोया जाए? क्या यह कथित बुद्धिजीवी जरा भी पढ़ते नहीं हैं? क्या जिसने रामचरित मानस पढ़ा उसके कालखंड को समझा या नहीं? उस समय राम के भगवान रूप की आवश्यकता थी। सबसे प्रमाणिक वाल्मीकि रामायण ही मानी जाती है, तो ऐसे में अहल्या पर लिखने वाली इन औरतों ने अपने अल्पज्ञान का विस्तार करने का भी नहीं सोचा!
मुझे हैरानी होती है इस अल्पज्ञान पर! अपनी जड़ों से कटे हुए इन कथित लेखक लेखिकाओं पर, जिन्होनें पढ़ा नहीं, बस लिख दिया, लिख इसलिए दिया क्योंकि इन्हें इनकी पहचान से नफरत करना सिखाया गया और उन्होंने यह नफरत पूरी की पूरी यही उड़ेल दी!
उत्तिमा केशरी अपनी कविता में जब यह पूछती हैं कि
आखिर कब करोगे प्राण प्रतिष्ठा
इस रासायनिक पदार्थ में?
तो वह अपने अल्पज्ञान का परिचय देती हैं क्योंकि महर्षि गौतम ने तो सामाजिक स्वीकृति के बाद अहल्या को अपना ही लिया था।
आज दशहरा है, राम को कोसने वाली टीम अपने अल्पज्ञान जैसी कविताओं के साथ जागृत हो गयी है, वह पूरी सोशल मीडिया पर छा गयी है! ऐसे में जैसे राम जी ने ताड़का का वध किया था, वैसे ही इन झूठी लेखिकाओं का पर्दाफाश करना है। इनकी एजेंडा वाली कविता को जनता के बीच लाना है। और हम इन्हें बुद्धिजीवी कहते हैं! क्या हिंदी साहित्य के नाम पर उलटासीधा छापने वाली इन वेबसाईट पर सम्पादक नामक लोग नहीं हैं? या जो भी हैं वह पूरी तरह से अज्ञानी हैं, जिनकी आँखें बंद हैं, आँखें बंद हैं अशिक्षा से, आँखें बंद हैं अज्ञानता से?
क्या क्रांतिकारी कविता लिखने वाले हर समय झूठ फैलाते हैं महज हमारे भीतर आत्महीनता भरने के लिए?
आप बताएं दोस्तों, आपको क्या लगता है?
#pseudointellectuals #TruthofRamanayana
बहुत बढिया
बेहतरीन लिखा।यही वास्तविक स्थिति थी।वैसे भी अल्पज्ञानी तोड़ मरोड़कर बातों का अर्थ निकाल कर विद्वान बनने का कुत्सित प्रयास करते हैं।
सटीक विवेचना के लिए साधुवाद !
बहुत बढ़िया रचना।
उम्दा लेख। ??