विपुल रेगे। जीवन एक यात्रा है। इस यात्रा का कोई न कोई विराम अवश्य होता है। विराम लगने से पूर्व जो एक गाढ़ी लकीर खींच देता है, उसे मिटाने में समय के प्रबल वेग को कुछ समय लगता है। मनुष्य के कर्म ही उस गाढ़ी रेखा को खींचते हैं। हम चले जाते हैं लेकिन हमारी बनाई लकीर कुछ समय तक पटल पर रहती है और हमारे निशाँ बताती है। बुधवार को रेडियो की एक आवाज़ हमसे विदा हो गई। विख्यात रेडियो अनाउंसर अमीन सयानी का 91 वर्ष की आयु में निधन हो गया। अमीन सयानी भी एक गाढ़ी और लंबी लकीर खींच गए हैं। वे भारतीय रेडियो के शुरुआती दिनों की ‘आवाज़’ थे।
अमीन सयानी की एक मौलिक स्वाभाविक शैली थी। सन 1952 से 1988 तक रेडियो के द्वारा भारतीयों से रुबरु होते रहे। वे जब अपने श्रोताओं से बात करते थे, तो श्रोताओं को महसूस होता कि घर का कोई व्यक्ति उनसे बात कर रहा है। श्रोताओं के दिल में घर बनाने का एक और कारण अमीन की शिरी जुबान और उनका विनम्र व्यवहार था। सन 1952 से उनका नाम रेडियो सीलोन पर ‘बिनाका गीत माला’ के द्वारा घर-घर पहुँचने लगा। रेडियो सीलोन के बाद विविध भारती पर अमीन का शो बदस्तूर जारी रहा।
आज के युवा यकीन नहीं कर सकते कि रेडियो के ज़रिये एक ऐसा व्यक्ति सितारा बन गया, जिसकी आवाज़ ही लोगों तक पहुँचती थी, उसे लोगों ने कभी देखा ही नहीं था। मुंबई में जन्म लेने वाले अमीन ने ऑल इंडिया रेडियो से अपना कॅरियर शुरु किया था। उन्होंने अपने कॅरियर में 54,000 से ज्यादा रेडियो कार्यक्रम किये, जो कि एक रिकॉर्ड है। विज्ञापनों के लिए भी अमीन ने अपनी आवाज़ दी। लगभग 19,000 जिंगल्स के लिए आवाज़ देने का अनोखा कीर्तिमान उनके नाम दर्ज है। रेडियो का दौर बीता जा रहा है और उससे जुड़े रचनात्मक लोग अपनी यात्रा समाप्त कर जा रहे हैं। अमीन ने लोकप्रियता और सफलता से भरपूर जीवन जिया। वे अंत समय तक रचनात्मक बने रहे। क्रिएटिविटी से तो उनकी साँसे जुड़ी हुई थी।
जब अमीन ने अपना 88वा जन्मदिन मनाया तो पत्रकार प्रदीप सरदाना ने उनसे मुलाक़ात की थी। उस समय अमीन ने कहा था ‘अब काम नहीं कर पा रहा हूँ। मेरा एक कान तो पहले ही खराब था। अब दूसरे कान से भी कम सुनाई देता है। वह भी मेरी तरह बूढ़ा हो गया है।’ उस इंटरव्यू में अमीन ने कहा था कि वे अपनी आत्मकथा लिखना चाहते हैं। हालाँकि वे अपनी आत्मकथा नहीं लिख सके। पता नहीं वे इसे कहाँ से शुरु करते। अमीन का परिवार स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ा था, जब वे केवल सात वर्ष के थे। बचपन में स्वास्थ्य ख़राब होने के कारण पढ़ाई करने में दिक्क़ते उठाई।
क्या वे अपनी आत्मकथा में बताते कि रेडियो सीलोन पर पहले ही कार्यक्रम के बाद श्रोताओं ने उन्हें नौ हज़ार पत्र भेज दिए थे। सोचिये प्रति सप्ताह पचास हज़ार पत्र एक व्यक्ति के नाम आ रहे हैं। आज के दौर में इस प्रसिद्धि की तुलना फॉलोइंग, लाइक्स और शेयर के जंजाल से करें तो वे पचास हज़ार पत्र बहुत भारी पड़ेंगे। अमीन ने अपनी आत्मकथा का नाम भी सोच रखा था ‘माय लाइफ– गार्लेंड ऑफ़ सांग्स’ यानी मेरा जीवन -गीतों की माला। हाँ उनका जीवन ‘गीतों की माला’ ही था।
भारत की गर्माती, अलसाती दोपहरों में अमीन सयानी की आवाज़ फिल्मी गीतों के साथ दौड़ती फिरती थी। खेत के रहट से होती हुई वह कुँए में उतर जाती या बरगद की छाँव में पसर जाती। अब अमीन नहीं है। कुछ देर पहले वे जा चुके हैं। उन्होंने जो ‘गाढ़ी लकीर’ खींची है, वह उनकी आवाज़ में पैबस्त हो गई है। एक दिन वक्त इस आवाज़ को भी मिटा देगा लेकिन गाढ़ी लकीरे मिटाने में उसे कई दशकों का समय लगता है। अलविदा अमीन सयानी