Sonali Misra. राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण, जिसका गठन पर्यावरणीय मामलों को देखने के लिए वर्ष 2010 में राष्ट्रीय हरित ट्रिब्यूनल अधिनियम 2010 के अंतर्गत हुआ था और जिसका उद्देश्य था कि वन एवं पर्यावरण संरक्षण को देखना और प्रदूषण आदि से सम्बन्धित मामलों को देखना. परन्तु यह देखा गया कि इसकी स्थापना के बाद से ही हिन्दू त्योहारों पर पर्यावरण विरोधी होने का भी ठप्पा लगता गया और उन पर तरह तरह की रोक लगती गईं.
ट्रिब्यूनल सिविल प्रक्रिया संहिता, १९०८ के अंतर्गत प्रक्रियाओं के प्रति बाध्य नहीं होगा, बल्कि इनका दिशा निर्देश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत करेंगे. परन्तु प्राकृतिक न्याय के नाम पर हिन्दुओं पर एक और कानूनी पहरा लगा दिया गया, और यहाँ पर दीपावली को लेकर सबसे ज्यादा शोर होने लगा. बार बार यह शोध सामने आए कि पटाखों का कोई भी असर प्रदूषण पर नहीं होता है, फिर भी दीपावली को निशाना बनाया गया
वर्ष 2001 में उच्चतम न्यायालय ने पटाखों को लेकर कुछ नियम जारी किए. और यह विशेषकर केवल दीपावली को ध्यान में रखते हुए ही जारी किए गए थे. वर्ष 2001 में उच्चतम न्यायालय ने शाम छ बजे से रात दस बजे तक पटाखे चलाने की अनुमति दी थी. और साथ ही यह भी राज्य शिक्षण संस्थानों एवं सभी राज्यों एवं संघ शासित राज्यों में स्कूल के प्रधानाचार्यों को निर्देश दिए गए कि वह अपने विद्यार्थियों को वायु और ध्वनि प्रदूषण के बुरे प्रभावों के विषय में शिक्षित करें.
उसके बाद वर्ष 2005 में उच्चतम न्यायालय ने पटाखों के प्रयोग को सीमित कर दिया था और उनके प्रयोग के लिए दस बजे तक की समय सीमा का निर्धारण कर दिया था. इसे ही न्यायालय द्वारा बार बार दोहराया गया. वर्ष 2005 के निर्णय में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि पटाखों के कारण होने वाले ध्वनि प्रदूषण को पब्लिक न्यूसेंस के रूप में माना जा सकता है और वह भारतीय पेनल कोड की धारा 268, 290 और 291 के अंतर्गत दंडनीय हो सकती है.
और उच्चतम न्यायालय ने यह भी बताया था कि चूंकि पटाखों के आयात, निर्यात, प्रयोग, बिक्री और परिवहन के लिए कोई अलग से क़ानून नहीं है इसलिए इनके खिलाफ वर्ष 1884 के विस्फोटक अधिनियम के अंतर्गत ही कोई निर्णय लिया जाएगा, जिसमें हर प्रकार के विस्फोटक सम्मिलित हैं.
https://www.thehindu.com/news/cities/Madurai/no-bursting-crackers-after-10-pm/article5304114.ece
न्यायालय ने टिप्पणी करते हुए कहा था कि पटाखों का निगमन पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 और ध्वनि प्रदूषण नियम 2000 के अंतर्गत होता है, परन्तु इसके विषय में अधिक लोगों को पता नहीं है.
वर्ष 2017 में केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की पटाखों पर प्रदूषण की रिपोर्ट में अन्य बातों के अतिरिक्त तीन गैर सरकारी संगठनों की रिपोर्ट का उल्लेख है, जिसमें वायु और ध्वनि प्रदूषण के बिगड़ने की बात की गयी है, और इन तीनों ही संगठनों पर एक दृष्टि डालते हैं. पहला है आवाज़ फाउंडेशन, जो वर्ष 2013 से भी पहले से पटाखों पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए प्रयासरत हैं और इसकी संयोजक हैं सुमैयरा अब्दुलाई, और जो पटाखों पर पूर्णतया प्रतिबन्ध के अब्द ग्रीन पटाखों पर भी प्रतिबन्ध लगाना चाहती हैं.
और उन्होंने वर्ष 2020 में प्रधानमंत्री, और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को भी पत्र लिखा कि कोई ग्रीन क्रैकर नहीं है!
पर प्रदूषण के प्रति इतनी जागरूक होने के बावजूद, बकरीद पर होने वाले जल प्रदूषण के विषय में आवाज़ फाउंडेशन ने कोई आवाज़ नहीं उठाई है.
एक मुस्लिम एनजीओ इतना शक्तिशाली है कि वह उस सरकार के राज्य में हिन्दुओं के पर्व को सूना कर सकता है, जो हिन्दुओं की सरकार कही जाती है और हिन्दुओं के मत पर जीत कर आई है! किसने किसी सुमैयरा को याह अधिकार दे दिया कि वह हिन्दुओं के पर्व को प्रदूषित करने के लिए आ जाए. पर भारत में हो रहा है.
इस सरकार के आने के बाद हिन्दुओं को लगा था कि वह अपने त्यौहार मना पाएंगे, परन्तु उन्हें यह नहीं पता था कि उनके त्यौहार इस सरकार में भी किसी सुमैयरा के एनजीओ से हार जाएँगे!
आवाज़ फाउंडेशन के बाद केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने दो और गैर सरकारी संगठनों का उल्लेख किया है, और उनमें से एक है शायद बंगाल का ओम बिरंगना रिलीजियस सोसाइटी और तीसरी रिपोर्ट थी ध्वनि प्रदूषण पर गोवा की द सिटीजन कमिटी की रिपोर्ट!
कई और रिपोर्ट के साथ केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में उल्लिखित इन तीनों ही एनजीओ द्वारा तैयार की गयी रिपोर्ट के आधार पर उच्चतम न्यायलय ने और फिर बाद में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पटाखों पर रोक लगा दी गयी.
यह माना जा सकता था कि जब यूपीए द्वारा नियुक्त जज से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती थी कि वह हिन्दुओं के पक्ष को सुनेगा! पर वर्ष 2018 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के जज बदल गए और हिन्दुओं के मन में क्षीण आशा जागी कि अब उनका त्यौहार बच जाएगा, पर वर्ष 2018 के बाद तो दीपावली मनाना ही दूभर हो गया. जुलाई 2018 में जस्टिस आदर्श कुमार गोयल, जो सुप्रीम कोर्ट से 6 जुलाई को रिटायर हुए थे उन्हें सरकार द्वारा 9 उलाई को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल का जज नियुक्त किया गया.
वर्ष 2018 में उच्चतम न्यायालय ने हरे पटाखे अनुमत किए और वर्ष 2019 में भी हरे पटाखों का शोर हुआ और वर्ष 2020 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पटाखों पर पूरी तरह से प्रतिबन्ध लगा दिया और केवल दिल्ली और एनसीआर में ही नहीं बल्कि उन सभी शहरों में जहाँ पर हवा की गुणवत्ता खराब थी.
दीपावली और पटाखे! फिर से हिंदूवादी सरकार में “सन्नाटे से भरी दीवाली”
और यह निर्णय इन्डियन सोशल रेस्पोंसिबलिटी नेटवर्क की याचिका सुनते हुए लिया गया था, जिन्होनें यह याचिका दायर की थी कि कोविड 19 के मद्देनजर हवा की गुणवत्ता को और खराब न किया जाए.
और इसी एनजीओ की याचिका में लिखा था कि “ग्रीन क्रैकर्स भी स्थिति का उपाय नहीं है, धुंआ लोगों का गला चोक करेगा और गैस चैंबर जैसी स्थिति हो जाएगी!”
क्या संयोग है कि एक ओर आवाज़ फाउंडेशन है, जिसकी सुमैयरा हिन्दुओं को ग्रीन क्रैकर्स भी नहीं चलाने देना चाहती हैं और वह सरकार को लिखती है और इधर कथित रूप से हिन्दुओं की सरकार का ही एक ट्रिब्यूनल जिसके प्रमुख की नियुक्ति सरकार द्वारा हुई है, और वह एनजीओ जिसके सदस्य भी उसी पार्टी के हैं, जो सरकार में हैं, सब मिलकर दीपावली के पटाखा बैन पर सारे तर्क लेकर टूट पड़े हैं!